करवा चौथ ,कार्तिक मास कि चतुर्थी के दिन विवाहित महिलाओं द्वारा करवा चौथ बुधवार, नवम्बर 4. 2020 को
करवा चौथ पूजा मुहूर्त . 17 . 36 से 18.52
अवधि . 01 घण्टा 16 मिनट्स
करवा चौथ व्रत समय . 06.18 से 20 . 22
अवधि . 14 घण्टे 04 मिनट्स
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय . 20.22
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ . नवम्बर 04, 2020 को 03.24 . बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त . नवम्बर 05. 2020 को 05.14 . बजे सुबह
बजे करवा चौथ का व्रत किया जाता है। करवा का अर्थात मिट्टी के जल-पात्र कि पूजा कर चंद्रमा को अर्ध्य देने का महत्व हैं। इसीलिए यह व्रत करवा चौथ नाम से जाना जाता हैं। इस दिन पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिये मंगलकामना और स्वयं के अखंड सौभाग्य रहने कि कामना करती हैं।
“जो चंद्रमा में पुरुषरूपी ब्रह्मा कि उपासना करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसे लंबी और पूर्ण आयु कि प्राप्ति होती हैं।,,
करवा चौथ : पूजन सामग्री की सूची
करवा चौथ एक नारी पर्व है। इस व्रत को सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं। इस व्रत में प्रमुखतः गौरी व गणेश का पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन सामग्री का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
1. चंदन 2. शहद 3. अगरबत्ती 4. पुष्प 5. कच्चा दूध 6. शक्कर 7. शुद्ध घी
8. दही 9. मिठाई 10. गंगाजल 11. कुंकू 12. अक्षत (चावल) 13. सिंदूर
14. मेहंदी 15. महावर 16. कंघा 17. बिंदी 18. चुनरी 19. चूड़ी 20. बिछुआ
21. मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन 22. दीपक 23. रुई 24. कपूर 25. गेहूं
26. शक्कर का बूरा 27. हल्दी 28. पानी का लोटा
29. गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
30. लकड़ी का आसन 31. चलनी 32. आठ पूरियों की अठावरी 33. हलुआ
34. दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इत्यादि।
करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। ॐ नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे जब रात्री को चंद्रमा निकल आये तब चंद्रमा को अर्घ्य देवें व ‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चंद्रमा का पूजन करें तथा छननी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें। चंद्रदर्शन के बाद अपने से बडों यानी सासु, ससुर, जेठ, जेठानियां, पति व अन्य बडे-बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें। हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले
“जो चंद्रमा में पुरुषरूपी ब्रह्मा कि उपासना करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसे लंबी और पूर्ण आयु कि प्राप्ति होती हैं।,,
करवा चौथ : पूजन सामग्री की सूची
करवा चौथ एक नारी पर्व है। इस व्रत को सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं। इस व्रत में प्रमुखतः गौरी व गणेश का पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन सामग्री का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
1. चंदन 2. शहद 3. अगरबत्ती 4. पुष्प 5. कच्चा दूध 6. शक्कर 7. शुद्ध घी
8. दही 9. मिठाई 10. गंगाजल 11. कुंकू 12. अक्षत (चावल) 13. सिंदूर
14. मेहंदी 15. महावर 16. कंघा 17. बिंदी 18. चुनरी 19. चूड़ी 20. बिछुआ
21. मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन 22. दीपक 23. रुई 24. कपूर 25. गेहूं
26. शक्कर का बूरा 27. हल्दी 28. पानी का लोटा
29. गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
30. लकड़ी का आसन 31. चलनी 32. आठ पूरियों की अठावरी 33. हलुआ
34. दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इत्यादि।
करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। ॐ नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे जब रात्री को चंद्रमा निकल आये तब चंद्रमा को अर्घ्य देवें व ‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चंद्रमा का पूजन करें तथा छननी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें। चंद्रदर्शन के बाद अपने से बडों यानी सासु, ससुर, जेठ, जेठानियां, पति व अन्य बडे-बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें। हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले
Gyanchand Bundiwal
Astrologer and Gemologist.
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