Thursday 16 October 2014

दीवाली पूजन पर लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने

दीवाली पूजन पर लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है। लक्ष्मी आ जाने के बाद बुद्धि विचलित न हो इसके लिए लक्ष्मी के साथ गणपति भगवान की भी पूजा की जाती है। देवताओं के खजांची हैं भगवान कुबेर इसलिए दीपावली की रात में इनकी पूजा भी होती है। ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पूजा के बिना प्रसन्न नहीं होती है। इसलिए विष्णु की भी पूजा होती है। दीपावली की रात मां काली और सरस्वती की भी पूजा लक्ष्मी जी के साथ होती है क्योंकि लक्ष्मी, काली और सरस्वती मिलकर आदि लक्ष्मी बन जाती हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होने के बाद भक्त को कभी धन की कमी नहीं होती। भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल संपत्ति देने वाली हैं। दीपावली की रात लक्ष्मीजी के विधिवत पूजन से हमारे सभी दुख और कष्ट दूर होते हैं। लक्ष्मी पूजन की संक्षिप्त विधि निम्न प्रकार से है: लक्ष्मी पूजन की सामग्री: महालक्ष्मी पूजन में केशर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, सूखे, मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, दीपक, रूई तथा कलावा नारियल और तांबे का कलश चाहिए। इसमें मां लक्ष्मी को कुछ वस्तुएं बेहद प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वह शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इसलिए इनका उपयोग जरूर करें। वस्त्र : लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है। पुष्प : कमल व गुलाब फ : श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े सुगंध : केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र अनाज : चावल, घर में शुद्धता पूर्ण बनी केसर की मिठाई, हलवा, शिरा का नैवेद्य प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल पूजा की तैयारी: एक चौकी पर माता लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि लक्ष्मी जी की दाईं दिशा में श्रीगणेश रहें और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो बड़े दीपकों में से एक में घी व दूसरे में तेल डालें। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। एक छोटा दीपक गणेशजी के पास रखें। मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से इस पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बीच सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें 1. ग्यारह दीपक 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक। इन थालियों के सामने यजमान बैठें। परिवार के सदस्य उनके बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे। पूजा की विधि पवित्रिकरण: सबसे पहले पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके खुद का तथा पूजन सामग्री का जल छिड़ककर पवित्रिकरण करें और साथ में मंत्र पढ़ें। ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा। यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥ पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥ आचमन: ऊं केशवाय नम:, ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें- ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ ऊँ महालक्ष्म्यै नम: मंत्र जप के साथ महालक्ष्मी के समक्ष आचमनी से जल अर्पित करें। शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें चन्‍दनस्‍य महत्‍पुण्‍यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्‍यम् लक्ष्‍मी तिष्‍ठतु सर्वदा। संकल्प: संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प करें कि हे महालक्ष्मी मैं आपका पूजन कर रहा हूं। गणपति पूजन: किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है। इसलिए आपको भी सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा करनी चाहिए। हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। तना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें। पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें। नवग्रहों का पूजन: हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में चावल और फूल लेकर नवग्रह का ध्यान करें :- ओम् ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशि भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: सर्वे ग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु।। नवग्रह देवताभ्यो नम: आहवयामी स्थापयामि नम:। षोडशमातृका पूजन: इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए। सोलह माताओं की पूजा के बाद मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए। गणेशजी, लक्ष्मीजी व अन्य देवी-देवताओं का विधिवत षोडशोपचार पूजन, श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त व पुरुष सूक्त का पाठ करें और आरती उतारें। पूजा के उपरांत मिठाइयां, पकवान, खीर आदि का भोग लगाकर सबको प्रसाद बांटें। कलश पूजन: ऊं कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित: मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।इसके बाद तिजोरी या रुपए रखने के स्थान पर स्वास्तिक बनाएं और श्लोक पढ़ें- मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ध्वज: मंगलम् पुंडरीकाक्ष: मंगलायतनो हरि:। लक्ष्मी पूजन: ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।। इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें। हाथ में अक्षत लेकर बोलें ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’ इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। पूजन के बाद लक्ष्मी जी की आरती करना न भूलें। आरती के बाद प्रसाद का भोग लगाएं। इसी वक्त दीप का पूजन करें। दीपक पूजन: दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है। हृदय में भरे हुए अज्ञान और संसार में फैले हुए अंधकार का शमन करने वाला दीपक देवताओं की ज्योर्तिमय शक्ति का प्रतिनिधि है। इसे भगवान का तेजस्वी रूप मान कर पूजा जाना चाहिए। भावना करें कि सबके अंत:करण में सद्ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो रहा है। बीच में एक बड़ा घृत दीपक और उसके चारों ओर ग्यारह, इक्कीस, अथवा इससे भी अधिक दीपक, अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुसार तिल के तेल से प्रज्ज्वलित करके एक परात में रख कर आगे लिखे मंत्र से ध्यान करें। दीप पूजन करने के बाद पहले मंदिर में दीपदान करें और फिर घर में दीए सजाएं। दीवाली की रात लक्ष्मी जी के सामने घी का दीया पूरी रात जलना चाहिए। मां वैभव लक्ष्मी की आरती ऊँ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता. तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता. सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता दुर्गा रुप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता. जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्घि-सिद्घि धन पाता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभदाता. कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता जिस घर में तुम रहती, सब सद्गुण आता. सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता. खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता शुभ-गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता. रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता !!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !!! श्री महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता. उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

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