लक्ष्मी पूजन कार्तिक कृष्ण अमावस्या को लक्ष्मी पूजन और राजा बलि के राज्योत्सव के रूप में मनाने की परंपराएं आदिकाल से ही चली आ रही हैं। आदिकाल में भगवान विष्णु ने सभी देवताओं को दैत्यों की कैद से मुक्त कराया था और उन्हें क्षीर-सागर पर लाकर आश्वस्त किया था। लक्ष्मीजी ने निर्भय होकर कमल-पुष्प की शैय्या पर विश्राम किया था इसीलिए इस दिन जो कमल पुष्पों के द्वारा सुंदर सेज या आसन बनाकर लक्ष्मीजी का पूजन करता है, उस पर लक्ष्मीजी अति प्रसन्न होती हैं। लक्ष्मीजी को कमल पुष्प प्रिय होने से इनका नाम “पद्मा” भी प़ड गया। एक अन्य प्रसिद्ध प्रसंग के अनुसार भगवान राम भी रावण का संहार करके इसी दिन वनवास की अवधि पूर्ण कर अयोध्या आए थे और उनके आगमन पर पूरी सजावट और दीपों से सुंदर वितान निर्मित किये गये थे। इसी उपलक्ष्य में देशभर में आज भी साज और सज्जा की परंपराएं प्रचलित हैं।
इस दिन लक्ष्मीजी का पूजन कर भाँति-भाँति के व्यंजनों से भोग लगाया जाता है। घर में उत्सव स्वरूप घी और तेल के दीपक जलाये जाते हैं। विष्णु पुराण में आया है -
“”तदह्नि पद्म शय्यां य: पद्मा सौख्य विवृद्धये। कुर्यातस्य गृहं मुक्त्वा तत्पद्मा क्वापि व व्रजेत्।।
न कुर्वन्ति नरा इत्थं लक्ष्म्या ये सुख सुप्तिकाम्। धन चिन्ता विहिनास्ते कथं रात्रौ स्वपन्ति हि।।”"
अर्थात् कमल पुष्पों व दीपकों से जो महालक्ष्मी जी को पूजता है उसके घर को छो़डकर लक्ष्मीजी कभी नहीं जाती परंतु जो इस प्रकार लक्ष्मीजी का पूजन नहीं करते वे नित्य ही धन की चिंता से युक्त होकर सोते हैं। नये कप़डे पहनकर और विविध श्रृंगारिक पदार्थो को उपयोग में लेकर लक्ष्मी पूजा करनी चाहिए।
सायंकाल में एक तेल के दीपक को अपने सिर के ऊपर घुमाकर, उस दीपक को चौराहे, मंदिर, वृक्ष के नीचे, पर्वत पर, घर के बाहर मुख्य द्वार पर या चबूतरे पर रखने से अरिष्टों का निवारण होता है।
इस दिन आधी रात के समय सूप (छाज़डा) को बाँस की डण्डी से बजाते हुए घर के चौक की झाडू लगाकर कचरे को घर के बाहर फेंकते हुए प्रार्थना की जाती है कि – “”अलक्ष्मी हमारे घर से बाहर निकल जाये और लक्ष्मीजी स्थायी रूप से निवास करें।”"
दीपावली की रात्रि को कालरात्रि माना गया है। श्री विद्यार्णव तंत्र में कालरात्रि को महाशक्ति का एक रूप माना गया है तथा कालरात्रि शक्ति को श्रीविद्या का एक अंग कहा गया है। आदि शंकराचार्य श्रीविद्या के परम उपासक थे। कालरात्रि देवी को “गणेश्वरी देवी” भी कहा गया है जो कि ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करती हैं।
दीपावली की रात में रात्रि 12 बजे से 2 बजे तक के समय को अर्थात् तृतीय प्रहर मध्य को “महानिशा” काल कहते हैं। इस समय (सिंह लग्न में) लक्ष्मी आराधना व पूजा करने का अत्यधिक महत्व होता है। सामान्यतया दीपावली को प्रदोष काल में श्रीलक्ष्मी जी का, गणेश जी, सरस्वती, कुबेर और वरूण आदि देवताओं के साथ पूजन किया जाता है परंतु “महानिशा” काल में देवी लक्ष्मीजी का भगवान नारायण के साथ अर्थात् “लक्ष्मी-नारायण” भगवान का संयुक्त पूजन पुरूष सूक्त व श्रीसूक्त के मंत्रों के साथ करना अत्यंत शुभ होता है।
पौराणिक मान्यताएं रही हैं कि – “”कार्तिक अमावस्या को मध्य रात्रि में देवी लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान नारायण के साथ गरू़ड पर सवार होकर विश्व-भ्रमण के लिए निकलती हैं तथा जिस घर में अपना पूजन होते हुए देखती हैं, उस घर पर कृपा कर देती हैं इसीलिए इस रात्रि में लक्ष्मी नारायण भगवान का पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।”"
दीपावली की रात्रि में निम्न मंत्र का जाप अत्यधिक शुभ होता है।
मंत्र : ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।।
विधि : दीपावली को प्रदोष काल में जबकि परंपरागत रूप से लक्ष्मी पूजन कर लिया जाता है तो उसके बाद यह व्यवस्था करनी चाहिए, पूजा का दीपक अखण्ड रहे और प्रात:काल तक चलता रहे। तब एक चाँदी की थाली में या बहीखाते में सीधे हाथ की तरफ वाले पृष्ठ पर अष्टगंध या कुंकुम से इस मंत्र को लिखना चाहिए और चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप से पूजना चाहिए और मावे का भोग लगाना चाहिए परंतु पूजा करते समय सावधानी रखनी चाहिए कि लिखा हुआ मंत्र मिटे नहीं। पूजन के बाद संपूर्ण रात्रि में इस मंत्र का कुल 12,000 (बारह हजार) बार जाप करें। इस अनुष्ठान से माँ लक्ष्मी अतिप्रसन्न होती हैं और जाप करने वाले को धन-दौलत और सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। परिवार के सभी लोग सामूहिक रूप से मंत्र का जाप कर इस संख्या को पूरी कर सकते हैं।
व्यापारिक घाटा मिटाने के लिए मंत्र : ऊँ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीमेव कुरू कुरू वांछितमेव ह्रीं ह्रीं नम:।
यदि व्यापार में लगातार घाटा चल रहा हो, दुकान ठीक से नहीं चलती हो तथा धन के आवागमन में लगातार रूकावटें आती हों तो इस मंत्र को प्रयोग में लेना चाहिए।
दीपावली की रात्रि में चाँदी के पत्र पर अथवा भोजपत्र पर अष्टगंध से इस मंत्र को शुद्ध वर्तनी में लिख लेना चाहिए। महालक्ष्मी का सुंदर चित्र, लाल कप़डे के आसन पर रखकर, अखंड दीपक जलाकर पूजन करें और पूजा के बाद इस मंत्र का 10,000 बार (100 माला) जाप करें। जाप परिवार के अन्य सदस्य भी कर सकते हैं। सभी की जाप संख्या गिनती में शामिल होती हैं। इस प्रकार यह मंत्र चैतन्य हो जाता है फिर प्रतिदिन लक्ष्मीजी का पूजन करते हुए, दीपक व धूपबत्ती जलाकर तथा मावे का यथाशक्ति मात्रा में भोग लगाकर, इस मंत्र का 108 बार जाप करते रहें तो घाटे में चल रहा व्यापार धीरे-धीरे लाभ में आने लगता है। लगभग 41 दिनों में इसके प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।
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श्री घंटाकर्ण-द्रव्य प्राप्ति मंत्र
मंत्र - ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं ऊँ घंटाकर्ण महावीर लक्ष्मीं पूरय पूरय सुख सौभाग्यं कुरू कुरू स्वाहा।
विधि - स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर इस मंत्र को भोजपत्र पर सुंदर और स्पष्ट अक्षरों में केसर-चंदन से लिख लेवें और पूजन करके इस मंत्र का दीपावली के समय तीन दिन तक अलग-अलग संख्या में जाप करें। जैन धर्म में इस मंत्र की ब़डी उपयोगिता है।
धन तेरस के दिन 40 माला, रूप चौदस (नरक चतुर्दशी) को 42 माला एवं दीपावली को 43 माला जाप करें और फिर भोजपत्र पर लिखे मंत्र को अपनी तिजोरी में रख लेवें। जाप उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही करना चाहिये तथा सफेद वस्त्र, सफेद ऊनी आसन व लाल माला को प्रयोग में लेना चाहिये।
ऎसा करने से अगला वर्ष धन प्राप्ति की दृष्टि से बहुत अच्छा जाता है। व्यापार की वृद्धि होती है। इस प्रकार दीपावली की परम पुनीत महारात्रि में अपनी कामना के अनुरूप मंत्र प्रयोग में लेने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और कामनाओं की पूर्ति करती हैं।
इस दिन लक्ष्मीजी का पूजन कर भाँति-भाँति के व्यंजनों से भोग लगाया जाता है। घर में उत्सव स्वरूप घी और तेल के दीपक जलाये जाते हैं। विष्णु पुराण में आया है -
“”तदह्नि पद्म शय्यां य: पद्मा सौख्य विवृद्धये। कुर्यातस्य गृहं मुक्त्वा तत्पद्मा क्वापि व व्रजेत्।।
न कुर्वन्ति नरा इत्थं लक्ष्म्या ये सुख सुप्तिकाम्। धन चिन्ता विहिनास्ते कथं रात्रौ स्वपन्ति हि।।”"
अर्थात् कमल पुष्पों व दीपकों से जो महालक्ष्मी जी को पूजता है उसके घर को छो़डकर लक्ष्मीजी कभी नहीं जाती परंतु जो इस प्रकार लक्ष्मीजी का पूजन नहीं करते वे नित्य ही धन की चिंता से युक्त होकर सोते हैं। नये कप़डे पहनकर और विविध श्रृंगारिक पदार्थो को उपयोग में लेकर लक्ष्मी पूजा करनी चाहिए।
सायंकाल में एक तेल के दीपक को अपने सिर के ऊपर घुमाकर, उस दीपक को चौराहे, मंदिर, वृक्ष के नीचे, पर्वत पर, घर के बाहर मुख्य द्वार पर या चबूतरे पर रखने से अरिष्टों का निवारण होता है।
इस दिन आधी रात के समय सूप (छाज़डा) को बाँस की डण्डी से बजाते हुए घर के चौक की झाडू लगाकर कचरे को घर के बाहर फेंकते हुए प्रार्थना की जाती है कि – “”अलक्ष्मी हमारे घर से बाहर निकल जाये और लक्ष्मीजी स्थायी रूप से निवास करें।”"
दीपावली की रात्रि को कालरात्रि माना गया है। श्री विद्यार्णव तंत्र में कालरात्रि को महाशक्ति का एक रूप माना गया है तथा कालरात्रि शक्ति को श्रीविद्या का एक अंग कहा गया है। आदि शंकराचार्य श्रीविद्या के परम उपासक थे। कालरात्रि देवी को “गणेश्वरी देवी” भी कहा गया है जो कि ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करती हैं।
दीपावली की रात में रात्रि 12 बजे से 2 बजे तक के समय को अर्थात् तृतीय प्रहर मध्य को “महानिशा” काल कहते हैं। इस समय (सिंह लग्न में) लक्ष्मी आराधना व पूजा करने का अत्यधिक महत्व होता है। सामान्यतया दीपावली को प्रदोष काल में श्रीलक्ष्मी जी का, गणेश जी, सरस्वती, कुबेर और वरूण आदि देवताओं के साथ पूजन किया जाता है परंतु “महानिशा” काल में देवी लक्ष्मीजी का भगवान नारायण के साथ अर्थात् “लक्ष्मी-नारायण” भगवान का संयुक्त पूजन पुरूष सूक्त व श्रीसूक्त के मंत्रों के साथ करना अत्यंत शुभ होता है।
पौराणिक मान्यताएं रही हैं कि – “”कार्तिक अमावस्या को मध्य रात्रि में देवी लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान नारायण के साथ गरू़ड पर सवार होकर विश्व-भ्रमण के लिए निकलती हैं तथा जिस घर में अपना पूजन होते हुए देखती हैं, उस घर पर कृपा कर देती हैं इसीलिए इस रात्रि में लक्ष्मी नारायण भगवान का पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।”"
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मंत्र : ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।।
विधि : दीपावली को प्रदोष काल में जबकि परंपरागत रूप से लक्ष्मी पूजन कर लिया जाता है तो उसके बाद यह व्यवस्था करनी चाहिए, पूजा का दीपक अखण्ड रहे और प्रात:काल तक चलता रहे। तब एक चाँदी की थाली में या बहीखाते में सीधे हाथ की तरफ वाले पृष्ठ पर अष्टगंध या कुंकुम से इस मंत्र को लिखना चाहिए और चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप से पूजना चाहिए और मावे का भोग लगाना चाहिए परंतु पूजा करते समय सावधानी रखनी चाहिए कि लिखा हुआ मंत्र मिटे नहीं। पूजन के बाद संपूर्ण रात्रि में इस मंत्र का कुल 12,000 (बारह हजार) बार जाप करें। इस अनुष्ठान से माँ लक्ष्मी अतिप्रसन्न होती हैं और जाप करने वाले को धन-दौलत और सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। परिवार के सभी लोग सामूहिक रूप से मंत्र का जाप कर इस संख्या को पूरी कर सकते हैं।
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यदि व्यापार में लगातार घाटा चल रहा हो, दुकान ठीक से नहीं चलती हो तथा धन के आवागमन में लगातार रूकावटें आती हों तो इस मंत्र को प्रयोग में लेना चाहिए।
दीपावली की रात्रि में चाँदी के पत्र पर अथवा भोजपत्र पर अष्टगंध से इस मंत्र को शुद्ध वर्तनी में लिख लेना चाहिए। महालक्ष्मी का सुंदर चित्र, लाल कप़डे के आसन पर रखकर, अखंड दीपक जलाकर पूजन करें और पूजा के बाद इस मंत्र का 10,000 बार (100 माला) जाप करें। जाप परिवार के अन्य सदस्य भी कर सकते हैं। सभी की जाप संख्या गिनती में शामिल होती हैं। इस प्रकार यह मंत्र चैतन्य हो जाता है फिर प्रतिदिन लक्ष्मीजी का पूजन करते हुए, दीपक व धूपबत्ती जलाकर तथा मावे का यथाशक्ति मात्रा में भोग लगाकर, इस मंत्र का 108 बार जाप करते रहें तो घाटे में चल रहा व्यापार धीरे-धीरे लाभ में आने लगता है। लगभग 41 दिनों में इसके प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।
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श्री घंटाकर्ण-द्रव्य प्राप्ति मंत्र
मंत्र - ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रौं ऊँ घंटाकर्ण महावीर लक्ष्मीं पूरय पूरय सुख सौभाग्यं कुरू कुरू स्वाहा।
विधि - स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर इस मंत्र को भोजपत्र पर सुंदर और स्पष्ट अक्षरों में केसर-चंदन से लिख लेवें और पूजन करके इस मंत्र का दीपावली के समय तीन दिन तक अलग-अलग संख्या में जाप करें। जैन धर्म में इस मंत्र की ब़डी उपयोगिता है।
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ऎसा करने से अगला वर्ष धन प्राप्ति की दृष्टि से बहुत अच्छा जाता है। व्यापार की वृद्धि होती है। इस प्रकार दीपावली की परम पुनीत महारात्रि में अपनी कामना के अनुरूप मंत्र प्रयोग में लेने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और कामनाओं की पूर्ति करती हैं।