Thursday, 17 September 2015

जय गणेश गणेश जी को दुर्वा प्रिय है

जय गणेश     गणेश जी को दुर्वा प्रिय है इसलिए हम सुबह उठ कर ताज़ी हवा में घास पर चलते है और दुर्वा को स्पर्श करते हुए उन्हें तोड़ते है और फिर अर्पित करते है. इस सबका हमारे चित्त , मन , बुद्धि , संस्कार और शरीर पर बहुत सकारात्मक असर होता है.
दूब के आचमन से देवता, दूब आच्‍छादित मैदानों पर भ्रमण से मनुष्य और भोजन के रूप में पशु इसको पाकर प्रसन्न रहते हैं।
पौराणिक संदर्भों से ज्ञान होता है कि क्षीर सागर से उत्पन्न होने के कारण भगवान विष्णु को यह अत्यंत प्रिय रही और क्षीर सागर से जन्म लेने के कारण लक्ष्मीजी की छोटी बहन कहलाई।
विष्च्यवादि सर्व देवानां, दुर्वे त्वं प्रीतिदायदा।
क्षीरसागर सम्भूते, वंशवृद्धिकारी भव।।
अमृत निकलने के बाद अमृत कलश को सर्वप्रथम इसी दूब पर रखा गया था, जिसके फलस्वरूप यह दूब भी अमृत तुल्य होकर अमर हो गयी। दूब घास विष्णु का ही रोम है, अतः सभी देवताओं में यह पूजित हुई और अग्र पूजा के अधिकारी भगवान गणेश को अति प्रिय हुई।
श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया। जब उनके पेट में जलन होने लगी, तब ऋषि कश्यप ने २१ दुर्वा की गाँठ उन्हें खिलाई और इससे उनकी पेट की ज्वाला शांत हुई।
गौरीपूजन, गणेश पूजन में दुर्वा दल से आचमन अ‍त्यंत शुभ माना गया है।

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बलवर्धक दुर्वा कालनेमि राक्षस का प्राकृतिक भोजन थी। इसके सेवन से वह अति बलशाली हो गया था।



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