वक्रतुण्ड गणेश कवचम् श्री गणेशाय नमः ।
मौलिं महेशपुत्रोऽव्याद्भालं पातु विनायकः ।
त्रिनेत्रः पातु मे नेत्रे शूर्पकर्णोऽवतु श्रुती ॥ १॥
हेरम्बो रक्षतु घ्राणं मुखं पातु गजाननः ।
जिह्वां पातु गणेशो मे कण्ठं श्रीकण्ठवल्लभः ॥ २॥
स्कन्धौ महाबलः पातु विघ्नहा पातु मे भुजौ ।
करौ परशुभृत्पातु हृदयं स्कन्दपूर्वजः ॥ ३॥
मध्यं लम्बोदरः पातु नाभिं सिन्दूरभूषितः ।
जघनं पार्वतीपुत्रः सक्थिनी पातु पाशभृत् ॥ ४॥
जानुनी जगतां नाथो जङ्घे मूषकवाहनः ।
पादौ पद्मासनः पातु पादाधो दैत्यदर्पहा ॥ ५॥
एकदन्तोऽग्रतः पातु पृष्ठे पातु गणाधिपः ।
पार्श्वयोर्मोदकाहारो दिग्विदिक्षु च सिद्धिदः ॥ ६॥
व्रजतस्तिष्ठतो वापि जाग्रतः स्वपतोऽश्नतः ।
चतुर्थीवल्लभो देवः पातु मे भुक्तिमुक्तिदः ॥ ७॥
इदं पवित्रं स्तोत्रं च चतुर्थ्यां नियतः पठेत् ।
सिन्दूररक्तः कुसुमैर्दूर्वया पूज्य विघ्नपम् ॥ ८॥
राजा राजसुतो राजपत्नी मन्त्री कुलं चलम् ।
तस्यावश्यं भवेद्वश्यं विघ्नराजप्रसादतः ॥ ९॥
समन्त्रयन्त्रं यः स्तोत्रं करे संलिख्य धारयेत् ।
धनधान्यसमृद्धिः स्यात्तस्य नास्त्यत्र संशयः ॥ १०॥
अस्य मन्त्रः ।
ऐं क्लीं ह्रीं वक्रतुण्डाय हुं ।
रसलक्षं सदैकाग्र्यः षडङ्गन्यासपूर्वकम् ।
हुत्वा तदन्ते विधिवदष्टद्रव्यं पयो घृतम् ॥ ११॥
यं यं काममभिध्यायन् कुरुते कर्म किञ्चन ।
तं तं सर्वमवाप्नोति वक्रतुण्डप्रसादतः ॥ १२॥
भृगुप्रणीतं यः स्तोत्रं पठते भुवि मानवः ।
भवेदव्याहतैश्वर्यः स गणेशप्रसादतः ॥ १३॥
*!!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !! ॥ इति गणेशरक्षाकरं स्तोत्रं समाप्तम् ॥
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Thursday, 17 September 2015
जय श्री गणेश वक्रतुण्ड गणेश कवचम् श्री गणेशाय नमः
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