रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम.
तू राम भजन कर प्राणी, तेरी दो दिनकी जिन्दगानी ॥
काया-माया बादल छाया,मूरख मन काहे भरमाया ।
उड़ जायेगा साँसका पंछी, फिर क्या है आनी-जानी ॥तू० ॥१॥
जिनके घरमें माँ नहीं है, बाबा करे ना प्यार;
ऐसे दीन अनथोंका है, राम-नाम आधार।
मुख बोल रामकी बानी, मनवा बोल रामकी बानी ॥तू० ॥२॥
सजन सनेही सुखके संगी, दुनियाकी है चाल दुरंगी ।
तू राम भजन कर प्राणी, तेरी दो दिनकी जिन्दगानी ॥
काया-माया बादल छाया,मूरख मन काहे भरमाया ।
उड़ जायेगा साँसका पंछी, फिर क्या है आनी-जानी ॥तू० ॥१॥
जिनके घरमें माँ नहीं है, बाबा करे ना प्यार;
ऐसे दीन अनथोंका है, राम-नाम आधार।
मुख बोल रामकी बानी, मनवा बोल रामकी बानी ॥तू० ॥२॥
सजन सनेही सुखके संगी, दुनियाकी है चाल दुरंगी ।
नाच रहा है काल शीश पै, चेत-चेत अभिमानी ॥तू० ॥३॥
जिसने राम-नाम गुन गाया, उसको लगे न दुखकी छाया ।
निर्धनका धन राम-नाम है, मैं हूँ राम दिवानी
जिसने राम-नाम गुन गाया, उसको लगे न दुखकी छाया ।
निर्धनका धन राम-नाम है, मैं हूँ राम दिवानी