Sunday, 2 December 2012

jai shri ram


श्रीरामचंद्र, कृपालु, भजुमन, हरण भवभय दारूणम।
श्रीरामचंद्र, कृपालु, भजुमन, हरण भवभय दारूणम।
नव कंज लोचन, कंज मुख कर, कंज पद कंजारूणम।
कंदर्प अगणित, अमित छवि नव, नील नीरद सुंदरम।
पटपीत मार्न, तड़ित रूचि शुचि, नौमि जनक सुतावरम।
भजु दीनबंधु, दिनेश दानव, दैत्य वंश निकंदम।
रघुनंद आनंद, कंद कौशल, चंद दशरथ नंदनम।
शिर मुकुट कुंडल, तिलक चारू, उदार अंग विभूषणम।
आजानु भुज, शर चाप धर, संग्राम जित खरदूषणम।
इति वदति, तुलसीदास शंकर, शेषमणि मन रंजनम।
मम हृदय कंज, निवास कुरू, कामादि खलदल गंजनम।
मन जाहि, राचेउ मिलहि सो, वर सहज सुन्दर सांवरो।
करूणा निधान, सुजान शील, स्नेह जानत रावरो।
एहि भांति गौरी, असीस सुन सिय, सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानी, पूजि पुनि-पुनि, मुद्रित मन मंदिर चली।

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