लाल देह लाली लसै, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता ।
हाथ व्रज और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे ।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन ।
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना ।
काल अकाल
जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी ।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता ।
हाथ व्रज और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे ।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन ।
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना ।
काल अकाल
जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी ।
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी ।
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे ।
शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे ।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै ।
सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना ।
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा ।
रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा ।
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता ।
हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए ।
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुख दरिद्र बंधन प्रकटाने ।
तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा ।
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुख स्वप्न विनाशा ।
शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे ।
विपति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा ।
मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी ।
श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई ।
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई ।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी ।
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे ।
शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे ।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै ।
सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना ।
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा ।
रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा ।
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता ।
हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए ।
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुख दरिद्र बंधन प्रकटाने ।
तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा ।
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुख स्वप्न विनाशा ।
शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे ।
विपति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा ।
मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी ।
श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई ।
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई ।