चैत्र नवरात्रि घटस्थापना मंगलवार, अप्रैल 13, 2021 को
पहला नवरात्र, मां शैलपुत्री की पूजा, गुड़ी पड़वा, नवरात्रि आरंभ, घटस्थापना, हिंदू नव वर्ष की शुरुआत।
घटस्थापना मुहूर्त - 05:56 से 10:08 अवधि - 04 घण्टे 12 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 11:49 से 12:39 अवधि - 00 घण्टे 50 मिनट्स
घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 12, 2021 को 08:00 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त - अप्रैल 13, 2021 को 10:16 बजे
नवरात्रि का पहला दिन 13 अप्रैल 2021 शैलपुत्री
नवरात्रि का दूसरा दिन 14 अप्रैल 2021 ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि का तीसरा दिन 15 अप्रैल 2021 चंद्रघंटा
नवरात्रि का चौथा दिन 16 अप्रैल 2021 कूष्मांडा
नवरात्रि का पांचवां दिन 17 अप्रैल 2021स्कंदमाता
नवरात्रि का छठा दिन 18 अप्रैल 2021 कात्यायनी
नवरात्रि का सातवां दिन 19 अप्रैल 2021 कालरात्रि
नवरात्रि का आठवां दिन 20 अप्रैल 2021 महागौरी
नवरात्रि का नौवां दिन 21 अप्रैल 2021 सिद्धिदात्री
नवरात्रि का दसवां दिन 22 अप्रैल 2021 व्रत पारण
चैत्र नवरात्र दस महाविद्याओं के होते हैं, यदि कोई इन महाविद्याओं के रूप में
शक्ति की उपासना करे, तो जीवन धन-
धान्य, राज्य सत्ता, ऐश्वर्य से भर जाता है। गुप्त नवरात्र में
की गई मंत्र साधना निष्फल
नहीं जाती।
सिद्धिदायक हैं
धान्य, राज्य सत्ता, ऐश्वर्य से भर जाता है। गुप्त नवरात्र में
की गई मंत्र साधना निष्फल
नहीं जाती।
सिद्धिदायक हैं
मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गु# नवरात्र
से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं।
श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के
साथ ही शत्रु संहार के लिए गु# नवरात्र में अनेक
प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते
हैं।
इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज
ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य
की प्राप्ति होती है। "दुर्गावरिवस्या"
नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पड़ने वाले मानव
को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं
बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ
माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक
सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। "शिवसंहिता"
के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और
आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए
भी श्रेष्ठ है।
विवाह बाधा करें दूर
कुमारी कन्याओं को भी अच्छे वर
की प्राप्ति के लिए इन
नौ दिनों माता कात्यायनी की पूजा-
उपासना करनी चाहिए। "दुर्गास्तवनम्" जैसे प्रामाणिक
प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का 108 बार
जप करने से कुमारी कन्या का विवाह
शीघ्र ही योग्य वर से संपन्न
हो जाता है।
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम:।।
इसी तरह जिन पुरूषों के विवाह में विलंब
हो रहा हो उन्हें भी लाल
पुष्पों की माला देवी को चढ़ाकर इस मंत्र
के 108 बार जप पूरे नौ दिन तक करने चाहिए-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
देवी की महिमा अपार
शास्त्र कहते हैं कि आदिशक्ति का अवतरण सृष्टि के आरंभ में
हुआ था। कभी सागर
की पुत्री सिंधुजा-लक्ष्मी
तो कभी पर्वतराज हिमालय
की कन्या अपर्णा-पार्वती। तेज, द्युति,
दीप्ति, ज्योति, कांति, प्रभा और चेतना और
जीवन शक्ति संसार में
जहां कहीं भी दिखाई
देती है,
वहां देवी का ही दर्शन होता है।
ऋषियों की विश्व-दृष्टि तो सर्वत्र
विश्वरूपा देवी को ही देखती है,
इसलिए माता दुर्गा ही महाकाली,
महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप
में प्रकट होती है। देवीभागवत में
लिखा है कि देवी ही ब्रह्मा, विष्णु
तथा महेश का रूप धर संसार का पालन और संहार
करती हैं।
जगन्माता दुर्गा सुकृती मनुष्यों के घर संपत्ति,
पापियों के घर में अलक्ष्मी, विद्वानों-वैष्णवों के
ह्वदय में बुद्धि व विद्या, सज्जनों में श्रद्धा व
भक्ति तथा कुलीन महिलाओं में लज्जा एवं मर्यादा के
रूप में निवास करती है। मार्कण्डेयपुराण कहता है
कि "हे देवि! तुम सारे वेद-शास्त्रों का सार हो। भगवान् विष्णु के
ह्वदय में निवास करने
वाली मां लक्ष्मी-शशिशेखर भगवान्
शंकर की महिमा बढ़ाने वाली मां तुम
ही हो।"
महानवमी को पूर्णाहुति
गुप्त नवरात्र में संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए
अष्टमी और नवमी को आवश्यक रूप से
देवी के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है।
माता के संमुख "जोत दर्शन" एवं कन्या भोजन करवाना चाहिए।
नारीरूप में पूजित देवी
कूर्मपुराण में धरती पर देवी के बिंब के
रूप में स्त्री का पूरा जीवन
नवदुर्गा की मूर्ति के रूप से बताया है। जन्म
ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री",
कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" व विवाह से
पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से "चंद्रघंटा"
कहलाती हंै। नए जीव को जन्म देने
के लिए गर्भधारण करने से "कूष्मांडा" व संतान को जन्म देने के
बाद वही स्त्री "स्कंदमाता"
होती है। संयम व साधना को धारण करने
वाली स्त्री "कात्यायनी" व
पतिव्रता होने के कारण पति की अकाल मृत्यु
को भी जीत लेने से "कालरात्रि"
कहलाती है। संसार का उपकार करने से
"महागौरी" व धरती को छोड़कर स्वर्ग
प्रयाण करने से पहले संसार को सिद्धि का आशीर्वाद
देने वाली "सिद्धिदात्री"
मानी जाती है।
नवरात्र में घट स्थापना
शा स्त्रीय मान्यता के अनुसार स्वच्छ
दीवार पर सिंदूर से
देवी की मुख-
आकृति बना ली जाती है।
सर्वशुद्धा माता दुर्गा की जो तस्वीर मिल
जाए, वही चौकी पर स्थापित कर
दी जाती है, परंतु
देवी की असली प्रतिमा तो "घट"
है। घट पर घी-सिंदूर से कन्या चिह्न और
स्वस्तिक बनाकर उसमें देवी का आह्वान
किया जाता है। देवी के दायीं ओर जौ व
सामने हवनकुंड। नौ दिनों तक नित्य
देवी का आह्वान फिर स्नान, वस्त्र व गंध आदि से
षोडशोपचार पूजन। नैवेद्य में पतासे और नारियल
तथा खीर। पूजन और हवन के बाद
"दुर्गास शती" का पाठ करना श्रेष्ठ है। साथ
ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने के
लिए नवदुर्गा के प्रत्येक रूप की प्रतिदिन पूजा-
स्तुति करनी चाहिए।
दस महाविद्या व कामना मंत्र
सर्व प्रथम गुप्त नवरात्रों की प्रमुख
देवी सर्वेश्वर्यकारिणी माता को धूप,
दीप, प्रसाद अर्पित करें। रुद्राक्ष
की माला से प्रतिदिन ग्यारह माला ॐ
ह्नीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै
नमो नम:।’ मंत्र का जप करें। पेठे का भोग लगाएं। इसके बाद
मनोकामना के अनुसार निम्न में से किसी मंत्र का जप
करें। यह क्रम नौ दिनों तक गुप्त रूप से जारी रखें।
काली : लम्बी आयु, ग्रह जनित
दुष्प्रभाव, कालसर्प, मांगलिक प्रभाव, अकाल मृत्यु का भय
आदि के लिए काली की साधना करें।
मंत्र- ‘क्रीं ह्नीं ह्नुं दक्षिणे कालिके
स्वाहा:।’
हकीक की माला से नौ माला जप प्रतिदिन
करें।
तारा : तीव्र बुद्धि, रचनात्मकता, उच्च शिक्षा के लिए
मां तारा की साधना नीले कांच
की माला से बारह माला मंत्र जप प्रतिदिन करें।
मंत्र- ‘ह्नीं स्त्रीं हुम फट।’
त्रिपुर सुंदरी : व्यक्तित्व विकास, स्वस्थ्य और
सुन्दर काया के लिए त्रिपुर
सुंदरी देवी की साधना करें।
रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। दस माला मंत्र जप
अवश्य करें।
मंत्र- ‘ऐं ह्नीं श्रीं त्रिपुर
सुंदरीयै नम:।’
भुवनेश्वरी: भूमि, भवन, वाहन सुख के लिए
भुवनेश्वरी देवी की आराधना करें।
स्फटिक की माला से ग्यारह माला प्रतिदिन जप करें।
मंत्र-‘ह्नीं भुवनेश्वरीयै
ह्नीं नम:।’
छिन्नमस्ता : रोजगार में सफलता, नौकरी,
पदोन्नति आदि के लिए
छिन्नमस्ता देवी की आराधना करें।
रुद्राक्ष की माला से दस माला प्रतिदिन जप करें।
मंत्र- ‘श्रीं ह्नीं ऐं वज्र वैरोचानियै
ह्नीं फट स्वाहा’।
त्रिपुर भैरवी : सुन्दर
पति या पत्नी प्राप्ति, शीघ्र विवाह, प्रेम
में सफलता के लिए मूंगे की माला से पंद्रह माला मंत्र
का जप करें।
मंत्र-
‘ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:।’
धूमावती : तंत्र, मंत्र, जादू टोना,
बुरी नजर, भूत प्रेत, वशीकरण,
उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण
जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के
लिए देवी घूमावती के मंत्र
की नौ माला का जप
मोती की माला से करें।
मंत्र- ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:।’
बगलामुखी: शत्रु पराजय, कोर्ट
कचहरी में विजय, प्रतियोगिता में सफलता के लिए
हल्दी या पीले कांच
की माला से आठ माला मंत्र का जप करें।
मंत्र- ‘ह्नीं बगुलामुखी देव्यै
ह्नी ॐ नम:।’
मातंगी : संतान, पुत्र आदि की प्राप्ति के
लिए स्फटिक की माला से बारह माला मंत्र जप करें।
मंत्र-‘ह्नीं ऐं
भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:।’
कमला : अखंड धन-धान्य प्राप्ति, ऋण मुक्ति और
लक्ष्मी जी की के लिए
देवी कमला की साधना करें। कमल गट्टे
की माला से दस माला प्रतिदिन मंत्र का जप करें।
मंत्र- ‘हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:।’
से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं।
श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के
साथ ही शत्रु संहार के लिए गु# नवरात्र में अनेक
प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते
हैं।
इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज
ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य
की प्राप्ति होती है। "दुर्गावरिवस्या"
नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पड़ने वाले मानव
को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं
बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ
माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक
सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। "शिवसंहिता"
के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और
आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए
भी श्रेष्ठ है।
विवाह बाधा करें दूर
कुमारी कन्याओं को भी अच्छे वर
की प्राप्ति के लिए इन
नौ दिनों माता कात्यायनी की पूजा-
उपासना करनी चाहिए। "दुर्गास्तवनम्" जैसे प्रामाणिक
प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का 108 बार
जप करने से कुमारी कन्या का विवाह
शीघ्र ही योग्य वर से संपन्न
हो जाता है।
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम:।।
इसी तरह जिन पुरूषों के विवाह में विलंब
हो रहा हो उन्हें भी लाल
पुष्पों की माला देवी को चढ़ाकर इस मंत्र
के 108 बार जप पूरे नौ दिन तक करने चाहिए-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
देवी की महिमा अपार
शास्त्र कहते हैं कि आदिशक्ति का अवतरण सृष्टि के आरंभ में
हुआ था। कभी सागर
की पुत्री सिंधुजा-लक्ष्मी
तो कभी पर्वतराज हिमालय
की कन्या अपर्णा-पार्वती। तेज, द्युति,
दीप्ति, ज्योति, कांति, प्रभा और चेतना और
जीवन शक्ति संसार में
जहां कहीं भी दिखाई
देती है,
वहां देवी का ही दर्शन होता है।
ऋषियों की विश्व-दृष्टि तो सर्वत्र
विश्वरूपा देवी को ही देखती है,
इसलिए माता दुर्गा ही महाकाली,
महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप
में प्रकट होती है। देवीभागवत में
लिखा है कि देवी ही ब्रह्मा, विष्णु
तथा महेश का रूप धर संसार का पालन और संहार
करती हैं।
जगन्माता दुर्गा सुकृती मनुष्यों के घर संपत्ति,
पापियों के घर में अलक्ष्मी, विद्वानों-वैष्णवों के
ह्वदय में बुद्धि व विद्या, सज्जनों में श्रद्धा व
भक्ति तथा कुलीन महिलाओं में लज्जा एवं मर्यादा के
रूप में निवास करती है। मार्कण्डेयपुराण कहता है
कि "हे देवि! तुम सारे वेद-शास्त्रों का सार हो। भगवान् विष्णु के
ह्वदय में निवास करने
वाली मां लक्ष्मी-शशिशेखर भगवान्
शंकर की महिमा बढ़ाने वाली मां तुम
ही हो।"
महानवमी को पूर्णाहुति
गुप्त नवरात्र में संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए
अष्टमी और नवमी को आवश्यक रूप से
देवी के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है।
माता के संमुख "जोत दर्शन" एवं कन्या भोजन करवाना चाहिए।
नारीरूप में पूजित देवी
कूर्मपुराण में धरती पर देवी के बिंब के
रूप में स्त्री का पूरा जीवन
नवदुर्गा की मूर्ति के रूप से बताया है। जन्म
ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री",
कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" व विवाह से
पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से "चंद्रघंटा"
कहलाती हंै। नए जीव को जन्म देने
के लिए गर्भधारण करने से "कूष्मांडा" व संतान को जन्म देने के
बाद वही स्त्री "स्कंदमाता"
होती है। संयम व साधना को धारण करने
वाली स्त्री "कात्यायनी" व
पतिव्रता होने के कारण पति की अकाल मृत्यु
को भी जीत लेने से "कालरात्रि"
कहलाती है। संसार का उपकार करने से
"महागौरी" व धरती को छोड़कर स्वर्ग
प्रयाण करने से पहले संसार को सिद्धि का आशीर्वाद
देने वाली "सिद्धिदात्री"
मानी जाती है।
नवरात्र में घट स्थापना
शा स्त्रीय मान्यता के अनुसार स्वच्छ
दीवार पर सिंदूर से
देवी की मुख-
आकृति बना ली जाती है।
सर्वशुद्धा माता दुर्गा की जो तस्वीर मिल
जाए, वही चौकी पर स्थापित कर
दी जाती है, परंतु
देवी की असली प्रतिमा तो "घट"
है। घट पर घी-सिंदूर से कन्या चिह्न और
स्वस्तिक बनाकर उसमें देवी का आह्वान
किया जाता है। देवी के दायीं ओर जौ व
सामने हवनकुंड। नौ दिनों तक नित्य
देवी का आह्वान फिर स्नान, वस्त्र व गंध आदि से
षोडशोपचार पूजन। नैवेद्य में पतासे और नारियल
तथा खीर। पूजन और हवन के बाद
"दुर्गास शती" का पाठ करना श्रेष्ठ है। साथ
ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने के
लिए नवदुर्गा के प्रत्येक रूप की प्रतिदिन पूजा-
स्तुति करनी चाहिए।
दस महाविद्या व कामना मंत्र
सर्व प्रथम गुप्त नवरात्रों की प्रमुख
देवी सर्वेश्वर्यकारिणी माता को धूप,
दीप, प्रसाद अर्पित करें। रुद्राक्ष
की माला से प्रतिदिन ग्यारह माला ॐ
ह्नीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै
नमो नम:।’ मंत्र का जप करें। पेठे का भोग लगाएं। इसके बाद
मनोकामना के अनुसार निम्न में से किसी मंत्र का जप
करें। यह क्रम नौ दिनों तक गुप्त रूप से जारी रखें।
काली : लम्बी आयु, ग्रह जनित
दुष्प्रभाव, कालसर्प, मांगलिक प्रभाव, अकाल मृत्यु का भय
आदि के लिए काली की साधना करें।
मंत्र- ‘क्रीं ह्नीं ह्नुं दक्षिणे कालिके
स्वाहा:।’
हकीक की माला से नौ माला जप प्रतिदिन
करें।
तारा : तीव्र बुद्धि, रचनात्मकता, उच्च शिक्षा के लिए
मां तारा की साधना नीले कांच
की माला से बारह माला मंत्र जप प्रतिदिन करें।
मंत्र- ‘ह्नीं स्त्रीं हुम फट।’
त्रिपुर सुंदरी : व्यक्तित्व विकास, स्वस्थ्य और
सुन्दर काया के लिए त्रिपुर
सुंदरी देवी की साधना करें।
रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। दस माला मंत्र जप
अवश्य करें।
मंत्र- ‘ऐं ह्नीं श्रीं त्रिपुर
सुंदरीयै नम:।’
भुवनेश्वरी: भूमि, भवन, वाहन सुख के लिए
भुवनेश्वरी देवी की आराधना करें।
स्फटिक की माला से ग्यारह माला प्रतिदिन जप करें।
मंत्र-‘ह्नीं भुवनेश्वरीयै
ह्नीं नम:।’
छिन्नमस्ता : रोजगार में सफलता, नौकरी,
पदोन्नति आदि के लिए
छिन्नमस्ता देवी की आराधना करें।
रुद्राक्ष की माला से दस माला प्रतिदिन जप करें।
मंत्र- ‘श्रीं ह्नीं ऐं वज्र वैरोचानियै
ह्नीं फट स्वाहा’।
त्रिपुर भैरवी : सुन्दर
पति या पत्नी प्राप्ति, शीघ्र विवाह, प्रेम
में सफलता के लिए मूंगे की माला से पंद्रह माला मंत्र
का जप करें।
मंत्र-
‘ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:।’
धूमावती : तंत्र, मंत्र, जादू टोना,
बुरी नजर, भूत प्रेत, वशीकरण,
उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण
जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के
लिए देवी घूमावती के मंत्र
की नौ माला का जप
मोती की माला से करें।
मंत्र- ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:।’
बगलामुखी: शत्रु पराजय, कोर्ट
कचहरी में विजय, प्रतियोगिता में सफलता के लिए
हल्दी या पीले कांच
की माला से आठ माला मंत्र का जप करें।
मंत्र- ‘ह्नीं बगुलामुखी देव्यै
ह्नी ॐ नम:।’
मातंगी : संतान, पुत्र आदि की प्राप्ति के
लिए स्फटिक की माला से बारह माला मंत्र जप करें।
मंत्र-‘ह्नीं ऐं
भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:।’
कमला : अखंड धन-धान्य प्राप्ति, ऋण मुक्ति और
लक्ष्मी जी की के लिए
देवी कमला की साधना करें। कमल गट्टे
की माला से दस माला प्रतिदिन मंत्र का जप करें।
मंत्र- ‘हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:।’
रात्री का वैज्ञानिक रहस्य
रात्रि का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य क्या है
रात्रि का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य क्या है
नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है। भारत के प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते हैं ।
भारतीय मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (प्रथम तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि कर विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं । सामान्य भक्त ही नहीं बड़े-बड़े धर्मधुरंधर पंडित और साधु- महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागकर साधना करना नहीं चाहते हैं । न तो कोई आलस्य को त्यागना चाहता है ओर ना ही विधिवत कर्म ही करना चाहता है । अपने आप को आस्तिक दिखाने का दिखावा (एक प्रकार का मनोरंजन के जैसे) करते हैं बस । बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं उनको भी कुछ लोग तान्त्रिक या अन्य निम्नतर की संज्ञा देकर अपमानित करने की नीयत के धनी बैठे हैं । भारतीय मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया है । रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं । आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है ।
हमारे ऋषि – मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे। दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है । इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता – जागता उदाहरण है । कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है। वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं , उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है । इसीलिए हमारे ऋषि – मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है । रात्री के समय मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर – दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है । यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है । जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ साधना करते हुए अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य ही होती है ।
नवरात्र या नवरात्रि ? संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं । नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है। नवरात्र क्या है ? पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
नौ दिन या रात ? अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है। हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है । इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है । इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं ।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है ।
भारतीय मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (प्रथम तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि कर विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं । सामान्य भक्त ही नहीं बड़े-बड़े धर्मधुरंधर पंडित और साधु- महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागकर साधना करना नहीं चाहते हैं । न तो कोई आलस्य को त्यागना चाहता है ओर ना ही विधिवत कर्म ही करना चाहता है । अपने आप को आस्तिक दिखाने का दिखावा (एक प्रकार का मनोरंजन के जैसे) करते हैं बस । बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं उनको भी कुछ लोग तान्त्रिक या अन्य निम्नतर की संज्ञा देकर अपमानित करने की नीयत के धनी बैठे हैं । भारतीय मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया है । रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं । आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है ।
हमारे ऋषि – मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे। दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है । इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता – जागता उदाहरण है । कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है। वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं , उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है । इसीलिए हमारे ऋषि – मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है । रात्री के समय मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर – दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है । यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है । जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ साधना करते हुए अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य ही होती है ।
नवरात्र या नवरात्रि ? संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं । नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है। नवरात्र क्या है ? पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
नौ दिन या रात ? अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है। हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है । इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है । इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं ।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है ।
नवरात्रि मै करे नवराण मंत्र की साधना
शास्त्रों मै 4 नवरात्रि का वर्णन है 2 गुप्त नवरात्रि है ओर 2 दृष्टया नवरात्रि है इस बार चेत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि पारम्ब हो रही है ।नवरात्रि एक ऐसी पल है जहाँ हम भगवती से जुड़कर उनका साणेध्य प्राप्त कर सकते है उनकी कृपा प्राप्त कर सकते है ।जिस तरह से एक बालक गर्भ मै 9 महीने रहता है उसके बाद ही वो गर्भ से निकलकर जीवन मै पूर्ण उत्साह ,पूर्ण निरोगता ,ओर पूर्ण उमंग से जीवन जीता है ये ऊर्जा उसे माँ की गर्भ मै ही मिलती है उसी तरह से ये 9 रात्रि मै माँ की ऊर्जा माँ की सणेध्ये प्राप्त करने की है जीसेय हम भी अपना जीवन पूर्णता के साथ पूर्ण ऊर्जा से जी सके
नवराण मंत्र सभी मँत्रों मै ऊतम मंत्र है की ये स्वयमभूथ मंत्र है जिस तरह से प्रणव ॐ मंत्र स्वयमभूथ है उसी तरह ये भी स्वयमभूथ मंत्र है। बहौत से लौग पूछते है किस तरह से इस नवराण मंत्र का उचारण करना चाहये तो सबसे पहेले मै सभी कॊ बता दूँ की इस मंत्र मै आगेय मै ॐ नही लगेँगा की जैसा बोला की ये स्वय्म्भुत है वही 3 बीज मंत्र मै आखिरी मै लगेँगा ना की ।
नवराण मंत्र की साधना सभी ने की है वो कोई सिद्ध हो या कोई भगवान का अवतार नवराण मंत्र की साधना सभी ने की है की ये साधना सभी द्रुश्टी से पूर्णता देती है इसके कई लाभ बताये गये है शस्त्रों मै जो निम्लिक्थ है 1 - अगर आपके शादी सुधा जीवन मै उमंग नही है ,आप संतान हीन है तो एक बार साधना ज़रूर करे
2 - जीवन मै सभी शत्रुऔ के नाश हेतु ये शेर्स्त साधना है चाइय वो शत्रु गुप्त हो ये प्रतेक्स शत्रु ,आप प्रत्यक्ष शत्रुऔ कॊ देख सकते लीकीन उनका क्या जो आपसे मित्रता का दिखावा करके मन मै शत्रु भाव रखे हुवे है
3 -वही ये साधना पूर्ण चेतना जागरण की करती है
4 -ये साधना के प्रताप से आपके जीवन मै आने वाली सभी धन के अभाव का नाश करके आपके धन के नये नये रास्ते खोल देती है
विनियोग : ॐ अस्ये श्री नवराण मंत्रअसस्य ब्रम्हा विष्णु रुद्र ऋषिय गायत्रीविष्णुअनुषपछनदाशी ,श्री महाकाली महालक्ष्मी महसरस्वती देवता ,ऐम बीजम ह्रीम शक्ति ,क्लीम कील्कम ,श्री महाकाली महालक्ष्मी महसरस्वती प्रीतिअर्थे जापे विनियोग :
वही विनियोग के बाद ऋषिन्यास , करनयश ,हृदय न्यास ,ओर मंत्र ध्यान रहता है
नवराण मंत्र की साधना इसकी पूर्ण अनुष्ठान 9 दिन मै करना है जो बहौत आसानी से हो जाता है ,वही इस साधना मै "शक्ति यंत्र " वो भी अभिमंत्रित होना बहौत ज़रूरी है की यंत्र मै ही देवता का वास होता है ओर बिना यंत्र के ये साधना मतलब अधूरी मानी जाती है
शास्त्रों मै 4 नवरात्रि का वर्णन है 2 गुप्त नवरात्रि है ओर 2 दृष्टया नवरात्रि है इस बार चेत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि पारम्ब हो रही है ।नवरात्रि एक ऐसी पल है जहाँ हम भगवती से जुड़कर उनका साणेध्य प्राप्त कर सकते है उनकी कृपा प्राप्त कर सकते है ।जिस तरह से एक बालक गर्भ मै 9 महीने रहता है उसके बाद ही वो गर्भ से निकलकर जीवन मै पूर्ण उत्साह ,पूर्ण निरोगता ,ओर पूर्ण उमंग से जीवन जीता है ये ऊर्जा उसे माँ की गर्भ मै ही मिलती है उसी तरह से ये 9 रात्रि मै माँ की ऊर्जा माँ की सणेध्ये प्राप्त करने की है जीसेय हम भी अपना जीवन पूर्णता के साथ पूर्ण ऊर्जा से जी सके
नवराण मंत्र सभी मँत्रों मै ऊतम मंत्र है की ये स्वयमभूथ मंत्र है जिस तरह से प्रणव ॐ मंत्र स्वयमभूथ है उसी तरह ये भी स्वयमभूथ मंत्र है। बहौत से लौग पूछते है किस तरह से इस नवराण मंत्र का उचारण करना चाहये तो सबसे पहेले मै सभी कॊ बता दूँ की इस मंत्र मै आगेय मै ॐ नही लगेँगा की जैसा बोला की ये स्वय्म्भुत है वही 3 बीज मंत्र मै आखिरी मै लगेँगा ना की ।
नवराण मंत्र की साधना सभी ने की है वो कोई सिद्ध हो या कोई भगवान का अवतार नवराण मंत्र की साधना सभी ने की है की ये साधना सभी द्रुश्टी से पूर्णता देती है इसके कई लाभ बताये गये है शस्त्रों मै जो निम्लिक्थ है 1 - अगर आपके शादी सुधा जीवन मै उमंग नही है ,आप संतान हीन है तो एक बार साधना ज़रूर करे
2 - जीवन मै सभी शत्रुऔ के नाश हेतु ये शेर्स्त साधना है चाइय वो शत्रु गुप्त हो ये प्रतेक्स शत्रु ,आप प्रत्यक्ष शत्रुऔ कॊ देख सकते लीकीन उनका क्या जो आपसे मित्रता का दिखावा करके मन मै शत्रु भाव रखे हुवे है
3 -वही ये साधना पूर्ण चेतना जागरण की करती है
4 -ये साधना के प्रताप से आपके जीवन मै आने वाली सभी धन के अभाव का नाश करके आपके धन के नये नये रास्ते खोल देती है
विनियोग : ॐ अस्ये श्री नवराण मंत्रअसस्य ब्रम्हा विष्णु रुद्र ऋषिय गायत्रीविष्णुअनुषपछनदाशी ,श्री महाकाली महालक्ष्मी महसरस्वती देवता ,ऐम बीजम ह्रीम शक्ति ,क्लीम कील्कम ,श्री महाकाली महालक्ष्मी महसरस्वती प्रीतिअर्थे जापे विनियोग :
वही विनियोग के बाद ऋषिन्यास , करनयश ,हृदय न्यास ,ओर मंत्र ध्यान रहता है
नवराण मंत्र की साधना इसकी पूर्ण अनुष्ठान 9 दिन मै करना है जो बहौत आसानी से हो जाता है ,वही इस साधना मै "शक्ति यंत्र " वो भी अभिमंत्रित होना बहौत ज़रूरी है की यंत्र मै ही देवता का वास होता है ओर बिना यंत्र के ये साधना मतलब अधूरी मानी जाती है
साधक को नवरात्र में क्या करना चाहिए ?
यदि किसी कारण विशेष के लिए पूजा कर रहे हो तो स्वयं को श्रृंगार, मौजमजा, काम से दूर करें रखें। निश्चित समय में पूजा पाठ करें तथा निश्चित संख्या में जप करें।
जप अवश्य करें। जप के समय मुंह पूर्व या दक्षिण दिशा में हो।
पूजा के लिए लाल फूल, रोली, चंदन, फल दूर्वा, तुलसीदल व कोई प्रसाद अवश्य लें।
नवरात्र के प्रथम दिन देवी का आवाह्न करें और नियमित पूजा करें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रतिदिन करें और इसका नियम समझ कर करें।
क्या कुछ ऐसी बाते भी हैं, जो हम इन दिनों में न करें ?
आवश्यकता से अधिक भोजन न करें।
मां को भोग लगाये बना भोजन नहीं करें। प्रतिदिन गाय, मंदिर, अर्चकों तथा आठ वर्ष से छोटी बच्चियों के लिए भोजन अवश्य निकालें।
तामसिक भोजन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें।
खट्टे भोजन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें।
चमड़े की चीजों का प्रयोग न करें।
संध्या पूजन अवश्य करें और पूजा के उपरांत भूखा नहीं रहना चाहिए।
विशिष्ठ गृहस्थ कर्म नहीं करना चाहिए।
झूठ नहीं बोलना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती का गलत पाठ नहीं करें।
माता की ज्योति को पीठ नहीं दिखाएं।
कलश स्थापना के उपरांत पूरे नौ दिन घर को अकेला न छोड़े।
बाहर के जूते-चप्पल उस स्थान से दूर रखें जहां माता तथा कलश स्थापना की हुई है।
तामसिक भोजन न करने वाले लोगों को घर में न आने दें।
माता की पूजा में आडम्बर न करें।
नवरात्र में व्रत व साधना हमें शक्ति, भक्ति, संपन्नता और ज्ञान से परिपूर्ण करती है। लेकिन आम लोग इतनी बड़ी बातें नहीं समझते कि उनकी रोजमर्रा जिंदगी में नवरात्र क्या बदलाव लाते हैं।
मानसिक बल प्राप्त करने के लिए ये 9 दिन बहुत उत्तम होते हैं। जिन लगों को शनि व राहु के कारण समस्याएं हो रही हैं, व भी अपनी पीड़ा ले मुक्ति पा सकते हैं बशर्ते आप सही उपासना रते हैं और कलश स्थापना करते हैं। झूठे मुकदमे में फंस गये हैं तो मुक्ति मिलेगी। यदि आपको महसूस होता है कि आप या आपका परिवार तंत्र से प्रभावित है तो भी सही तरीके से की गई पूजा आपको निजात दिला सकती है।
संतान वह भी उच्च कोटि की संतान प्राप्ति के लिए भी इन दिनों में की गई साधना रंग लाती है।
यदि किसी कारण विशेष के लिए पूजा कर रहे हो तो स्वयं को श्रृंगार, मौजमजा, काम से दूर करें रखें। निश्चित समय में पूजा पाठ करें तथा निश्चित संख्या में जप करें।
जप अवश्य करें। जप के समय मुंह पूर्व या दक्षिण दिशा में हो।
पूजा के लिए लाल फूल, रोली, चंदन, फल दूर्वा, तुलसीदल व कोई प्रसाद अवश्य लें।
नवरात्र के प्रथम दिन देवी का आवाह्न करें और नियमित पूजा करें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रतिदिन करें और इसका नियम समझ कर करें।
क्या कुछ ऐसी बाते भी हैं, जो हम इन दिनों में न करें ?
आवश्यकता से अधिक भोजन न करें।
मां को भोग लगाये बना भोजन नहीं करें। प्रतिदिन गाय, मंदिर, अर्चकों तथा आठ वर्ष से छोटी बच्चियों के लिए भोजन अवश्य निकालें।
तामसिक भोजन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें।
खट्टे भोजन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें।
चमड़े की चीजों का प्रयोग न करें।
संध्या पूजन अवश्य करें और पूजा के उपरांत भूखा नहीं रहना चाहिए।
विशिष्ठ गृहस्थ कर्म नहीं करना चाहिए।
झूठ नहीं बोलना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती का गलत पाठ नहीं करें।
माता की ज्योति को पीठ नहीं दिखाएं।
कलश स्थापना के उपरांत पूरे नौ दिन घर को अकेला न छोड़े।
बाहर के जूते-चप्पल उस स्थान से दूर रखें जहां माता तथा कलश स्थापना की हुई है।
तामसिक भोजन न करने वाले लोगों को घर में न आने दें।
माता की पूजा में आडम्बर न करें।
नवरात्र में व्रत व साधना हमें शक्ति, भक्ति, संपन्नता और ज्ञान से परिपूर्ण करती है। लेकिन आम लोग इतनी बड़ी बातें नहीं समझते कि उनकी रोजमर्रा जिंदगी में नवरात्र क्या बदलाव लाते हैं।
मानसिक बल प्राप्त करने के लिए ये 9 दिन बहुत उत्तम होते हैं। जिन लगों को शनि व राहु के कारण समस्याएं हो रही हैं, व भी अपनी पीड़ा ले मुक्ति पा सकते हैं बशर्ते आप सही उपासना रते हैं और कलश स्थापना करते हैं। झूठे मुकदमे में फंस गये हैं तो मुक्ति मिलेगी। यदि आपको महसूस होता है कि आप या आपका परिवार तंत्र से प्रभावित है तो भी सही तरीके से की गई पूजा आपको निजात दिला सकती है।
संतान वह भी उच्च कोटि की संतान प्राप्ति के लिए भी इन दिनों में की गई साधना रंग लाती है।
नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाएं मगर पहले ध्यान रखें ये 4 बातें
नवरात्रि में माता दुर्गा के समक्ष नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। मान्यता के अनुसार माता के सामने एक-एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
मान्यता के अनुसार मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।
अर्थात - घी युक्त दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाई ओर रखनी चाहिए।
- अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाडऩा हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें।
-यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।
नवरात्रि में माता दुर्गा के समक्ष नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। मान्यता के अनुसार माता के सामने एक-एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
मान्यता के अनुसार मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।
अर्थात - घी युक्त दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाई ओर रखनी चाहिए।
- अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाडऩा हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें।
-यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।
नवरात्रों में माँ दुर्गा के जो भक्त वर्ष में दो बार माँ की विधि सहित पूजा अर्चना करते हैं वो जाने अनजाने नवदुर्गा की भक्ति से नवग्रहों को स्वत: ही शांत कर लेते हैं आइये जाने – बुध – कन्या , शुक्र -स्त्री , चंदर – माता ये तीनो रूप स्त्रीलिंग होने से ‘माँ जगम्बा’ के ही माने जाते हैं और पूजन विधि तो साक्षात् नवग्रह शांति है जहाँ कुम्भ स्थापित करके खेत्री बीजी जाती है वहां ये नज़ारा साक्षात् है
ध्यान से देखे तो (घडा -बुध) (जौं – राहु) (जल – चन्द्रमा) (अखंड ज्वाला – मंगल) (लाल दुप्पटा – केतु) (माँ का वस्त्र और देसी घी-शुक्र) (काले चने – शनि) (मीठा हलवा – मंगल) (पूजन विधि और माँ का शेर – गुरु) (दिन/रात की अखंड ज्योति सेवा – सूर्य और शनि) (नारियल – राहु का सर) और अंत में कंजक पूजन और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले पंडित जी दोनों को भेंट और दक्षिणा देना ‘बुध’ और ‘गुरु’ को प्रसन्न करना आदि आदि….ये सारी विधि ऋषि मार्कण्डेय द्वारा माँ की भक्ति करते हुए समस्त संसार को प्रदान की गयी है और जो भक्त इस विधि से पूजन-अर्चन करता है उसकी जन्म पत्रिका के नवग्रह स्वयं ही माँ दुर्गा के शक्ति आशीर्वाद से शांत हो कर शुभ प्रभाव देने लग जाते हैं
ध्यान से देखे तो (घडा -बुध) (जौं – राहु) (जल – चन्द्रमा) (अखंड ज्वाला – मंगल) (लाल दुप्पटा – केतु) (माँ का वस्त्र और देसी घी-शुक्र) (काले चने – शनि) (मीठा हलवा – मंगल) (पूजन विधि और माँ का शेर – गुरु) (दिन/रात की अखंड ज्योति सेवा – सूर्य और शनि) (नारियल – राहु का सर) और अंत में कंजक पूजन और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले पंडित जी दोनों को भेंट और दक्षिणा देना ‘बुध’ और ‘गुरु’ को प्रसन्न करना आदि आदि….ये सारी विधि ऋषि मार्कण्डेय द्वारा माँ की भक्ति करते हुए समस्त संसार को प्रदान की गयी है और जो भक्त इस विधि से पूजन-अर्चन करता है उसकी जन्म पत्रिका के नवग्रह स्वयं ही माँ दुर्गा के शक्ति आशीर्वाद से शांत हो कर शुभ प्रभाव देने लग जाते हैं
नवरात्रि पर्व ,काल (समय) चक्र के विभाग अनुसार पूरे एक दिन-रात में चार संधिकाल होते हैं. जिनको हम प्रात:काल, मध्यान्ह काल, सांयकाल और मध्यरात्रि काल कहते हैं. जब हमारा एक वर्ष हो जाता है, तब देव-असुरों का एक दिन-रात होता है. जिसे कि ज्योतिष शास्त्र में दिव्यकालीन अहोरात्र कहा गया है. ये दिन-रात छ:-छ: माह के होते हैं. इन्ही को हम उतरायण और दक्षिणायन के नाम से जानते हैं. यहाँ 'अयन' का अर्थ है---मार्ग. (उतरायण=उत्तरी ध्रुव से संबंधित मार्ग, जो कि देवों का दिन और दक्षिणायन=दक्षिणी ध्रुव से संबंधित मार्ग, जिसे देवों की रात्रि कहा जाता है)
जिस प्रकार मकर और कर्क वृ्त से अयन(मार्ग) परिवर्तन होता है, उसी प्रकार मेष और तुला राशियों से उत्तर गोल तथा दक्षिण गोल का परिवर्तन होता है. एक वर्ष में दो अयन परिवर्तन की संधि और दो गोल परिवर्तन की संधियाँ होती है. कुल मिलाकर एक वर्ष में चार संधियाँ होती हैं. इनको ही नवरात्री के पर्व के रूप में मनाया जाता है.
1. प्रात:काल (गोल संधि) चैत्री नवरात्र
2. मध्यान्ह काल (अयन संधि) आषाढी नवरात्र
3. सांयकाल (गोल संधि) आश्विन नवरात्र
4. मध्यरात्रि (अयन संधि) पौषी नवरात्र
उपरोक्त इन चार नवरात्रियों में गोल संधि की नवरात्रियाँ चैत्र और आश्विन मास की हैं, जो कि दिव्य अहोरात्र के प्रात:काल और सांयकाल की संधि में आती हैं----इन्हे ही विशेष रूप से मनाया जाता है. हालाँकि बहुत से लोग हैं, जिनके द्वारा अयन संधिगत (आषाढ और पौष) मास की नवारत्रियाँ भी मनाई जाती हैं, लेकिन विशेषतय: यह समय तान्त्रिक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है---गृ्हस्थों के लिए गोल संधिगत नवरात्रियों का कोई विशेष महत्व नहीं है.
जिन चान्द्रमासों में नवरात्रि पर्व का विधान है, उनके क्रमश: चित्रा, पूर्वाषाढा, अश्विनी और पुष्य नक्षत्रों पर आधारित हैं. वैदिक ज्योतिष में नाक्षत्रीय गुणधर्म के प्रतीक प्रत्येक नक्षत्र का एक देवता कल्पित किया हुआ है. इस कल्पना के गर्भ में विशेष महत्व समाया हुआ है, जो कि विचार करने योग्य है.
भारतीय ज्योतिष शास्त्र कालचक्र की संधियों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ है. प्राचीन युगदृ्ष्टा ऋषि-मुनियों नें विभिन्न तौर-तरीकों से अभिनव रूपकों में प्रकृ्ति के सूक्ष्म तत्वों को समझाने के तथा उनसे समाज को लाभान्वित करने के अपनी ओर से विशेष प्रयास किए हैं. संधिकाल में सौरमंडल के समस्त ग्रह पिण्डों की रश्मियों का प्रत्यावर्तन तथा संक्रमण पृ्थ्वी के समस्त प्राणियों को प्रभावित करता है. अत: संधिकाल में दिव्यशक्ति की आराधना, संध्या उपासना आदि करने का ये विधान बनाया गया है.
अयन, गोल तथा ऋतुओं के परिवर्तन मानव मस्तिष्क को आंदोलित करते हैं. मानव मस्तिष्क, जो कि अनन्त शक्ति स्त्रोतों का अक्षय भंडार है. उसमें जहाँ संसार के निर्माण करने की स्थिति है, वहीं संहार करने की शक्ति भी केन्द्रित है. यही कारण है कि त्रिगुणात्मक महाकाली, महासरस्वती और महादुर्गा हमारी आराध्य रही हैं.
यह पर्व रात्रि प्रधान इसलिए है कि शास्त्रों में "रात्रि रूपा यतोदेवी दिवा रूपो महेश्वर:" अर्थात दिन को शिव(पुरूष)रूप में तथा रात्रि को शक्ति(प्रकृ्ति)रूपा माना गया है. एक ही तत्व के दो स्वरूप हैं, फिर भी शिव(पुरूष)का अस्तित्व उसकी शक्ति(प्रकृ्ति) पर ही आधारित है.
सो, इस बात को समझने की जरूरत है कि अखिल पिण्ड ब्राह्मंड के समस्त संकेत के पारखी ऋषि-मुनियों नें नैसर्गिक सुअवसरों को परख कर हमें विशेष रूप से संस्कारित बनाने का प्रयास किया है. त्रिविध ताप नाश की इस पुनीत पर्व की गरिमा को समझते हुए हमें दिव्यशक्ति की आराधना, उपासना करते हुए पूर्ण मर्यादासहित(मन को विषय भोगों से दूर रख) नवरात्रि पूजन करना आवश्यक है. यह समय किसी धर्म, जाति या सम्प्रदाय विशेष से सम्बन्धित न होकर मानव मात्र के लिए कल्याणप्रद है
1. प्रात:काल (गोल संधि) चैत्री नवरात्र
2. मध्यान्ह काल (अयन संधि) आषाढी नवरात्र
3. सांयकाल (गोल संधि) आश्विन नवरात्र
4. मध्यरात्रि (अयन संधि) पौषी नवरात्र
उपरोक्त इन चार नवरात्रियों में गोल संधि की नवरात्रियाँ चैत्र और आश्विन मास की हैं, जो कि दिव्य अहोरात्र के प्रात:काल और सांयकाल की संधि में आती हैं----इन्हे ही विशेष रूप से मनाया जाता है. हालाँकि बहुत से लोग हैं, जिनके द्वारा अयन संधिगत (आषाढ और पौष) मास की नवारत्रियाँ भी मनाई जाती हैं, लेकिन विशेषतय: यह समय तान्त्रिक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है---गृ्हस्थों के लिए गोल संधिगत नवरात्रियों का कोई विशेष महत्व नहीं है.
जिन चान्द्रमासों में नवरात्रि पर्व का विधान है, उनके क्रमश: चित्रा, पूर्वाषाढा, अश्विनी और पुष्य नक्षत्रों पर आधारित हैं. वैदिक ज्योतिष में नाक्षत्रीय गुणधर्म के प्रतीक प्रत्येक नक्षत्र का एक देवता कल्पित किया हुआ है. इस कल्पना के गर्भ में विशेष महत्व समाया हुआ है, जो कि विचार करने योग्य है.
भारतीय ज्योतिष शास्त्र कालचक्र की संधियों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ है. प्राचीन युगदृ्ष्टा ऋषि-मुनियों नें विभिन्न तौर-तरीकों से अभिनव रूपकों में प्रकृ्ति के सूक्ष्म तत्वों को समझाने के तथा उनसे समाज को लाभान्वित करने के अपनी ओर से विशेष प्रयास किए हैं. संधिकाल में सौरमंडल के समस्त ग्रह पिण्डों की रश्मियों का प्रत्यावर्तन तथा संक्रमण पृ्थ्वी के समस्त प्राणियों को प्रभावित करता है. अत: संधिकाल में दिव्यशक्ति की आराधना, संध्या उपासना आदि करने का ये विधान बनाया गया है.
अयन, गोल तथा ऋतुओं के परिवर्तन मानव मस्तिष्क को आंदोलित करते हैं. मानव मस्तिष्क, जो कि अनन्त शक्ति स्त्रोतों का अक्षय भंडार है. उसमें जहाँ संसार के निर्माण करने की स्थिति है, वहीं संहार करने की शक्ति भी केन्द्रित है. यही कारण है कि त्रिगुणात्मक महाकाली, महासरस्वती और महादुर्गा हमारी आराध्य रही हैं.
यह पर्व रात्रि प्रधान इसलिए है कि शास्त्रों में "रात्रि रूपा यतोदेवी दिवा रूपो महेश्वर:" अर्थात दिन को शिव(पुरूष)रूप में तथा रात्रि को शक्ति(प्रकृ्ति)रूपा माना गया है. एक ही तत्व के दो स्वरूप हैं, फिर भी शिव(पुरूष)का अस्तित्व उसकी शक्ति(प्रकृ्ति) पर ही आधारित है.
सो, इस बात को समझने की जरूरत है कि अखिल पिण्ड ब्राह्मंड के समस्त संकेत के पारखी ऋषि-मुनियों नें नैसर्गिक सुअवसरों को परख कर हमें विशेष रूप से संस्कारित बनाने का प्रयास किया है. त्रिविध ताप नाश की इस पुनीत पर्व की गरिमा को समझते हुए हमें दिव्यशक्ति की आराधना, उपासना करते हुए पूर्ण मर्यादासहित(मन को विषय भोगों से दूर रख) नवरात्रि पूजन करना आवश्यक है. यह समय किसी धर्म, जाति या सम्प्रदाय विशेष से सम्बन्धित न होकर मानव मात्र के लिए कल्याणप्रद है
अपनी राशि अनुसार पूजा चुने
मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
मेष मेष राशि के जातक शक्ति उपासना के लिए द्वितीय महाविद्या तारा की साधना करें। ज्योतिष के अनुसार इस महाविद्या का स्वभाव मंगल की तरह उग्र है। मेष राशि वाले महाविद्या की साधना के लिए इस मंत्र का जप करें।
मंत्र ह्रीं स्त्रीं हूं फट् ।
वृषभ वृषभ राशि वाले धन और सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री विद्या यानि षोडषी देवी की साधना करें और इस मंत्र का जप करें।
मंत्र ऐं क्लीं सौ: ।
मिथुन अपना गृहस्थ जीवन सुखी बनाने के लिए मिथुन राशि वाले भुवनेश्वरी देवी की साधना करें। साधना मंत्र इस प्रकार है।
मंत्र ऐं ह्रीं ।
कर्क इस नवरात्रि पर कर्क राशि वाले कमला देवी का पूजन करें। इनकी पूजा से धन व सुख मिलता है। नीचे लिखे मंत्र का जप करें।
मंत्र ऊं श्रीं ।
सिंह ज्योतिष के अनुसार सिंह राशि वालों को मां बगलामुखी की आराधना करना चाहिए। जिससे शत्रुओं पर विजय मिलती है।
मंत्र ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम: ।
कन्या आप चतुर्थ महाविद्या भुवनेश्वरी देवी की साधना करें आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी।
मंत्र ऐं ह्रीं ऐं
तुला तुला राशि वालों को सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए षोडषी देवी की साधना करनी चाहिए।
मंत्र ऐं क्लीं सौ: ।
वृश्चिक वृश्चिक राशि वाले तारा देवी की साधना करें। इससे आपको शासकीय कार्यों में सफलता मिलेगी।
मंत्र श्रीं ह्रीं स्त्रीं हूं फट् ।
धनु धन और यश पाने के लिए धनु राशि वाले कमला देवी के इस मंत्र का जप करें।
मंत्र श्रीं ।
मकर मकर राशि के जातक अपनी राशि के अनुसार मां काली की उपासना करें।
मंत्र क्रीं कालीकाये नम: ।
कुंभ कुंभ राशि वाले भी काली की उपासना करें इससे उनके शत्रुओं का नाश होगा।
मंत्र क्रीं कालीकाये नम: ।
मीन इस राशि के जातक सुख समृद्धि के लिए कमला देवी की उपासना करें।
मंत्र- श्री कमलाये नम:। Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.
मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
मेष मेष राशि के जातक शक्ति उपासना के लिए द्वितीय महाविद्या तारा की साधना करें। ज्योतिष के अनुसार इस महाविद्या का स्वभाव मंगल की तरह उग्र है। मेष राशि वाले महाविद्या की साधना के लिए इस मंत्र का जप करें।
मंत्र ह्रीं स्त्रीं हूं फट् ।
वृषभ वृषभ राशि वाले धन और सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री विद्या यानि षोडषी देवी की साधना करें और इस मंत्र का जप करें।
मंत्र ऐं क्लीं सौ: ।
मिथुन अपना गृहस्थ जीवन सुखी बनाने के लिए मिथुन राशि वाले भुवनेश्वरी देवी की साधना करें। साधना मंत्र इस प्रकार है।
मंत्र ऐं ह्रीं ।
कर्क इस नवरात्रि पर कर्क राशि वाले कमला देवी का पूजन करें। इनकी पूजा से धन व सुख मिलता है। नीचे लिखे मंत्र का जप करें।
मंत्र ऊं श्रीं ।
सिंह ज्योतिष के अनुसार सिंह राशि वालों को मां बगलामुखी की आराधना करना चाहिए। जिससे शत्रुओं पर विजय मिलती है।
मंत्र ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम: ।
कन्या आप चतुर्थ महाविद्या भुवनेश्वरी देवी की साधना करें आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी।
मंत्र ऐं ह्रीं ऐं
तुला तुला राशि वालों को सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए षोडषी देवी की साधना करनी चाहिए।
मंत्र ऐं क्लीं सौ: ।
वृश्चिक वृश्चिक राशि वाले तारा देवी की साधना करें। इससे आपको शासकीय कार्यों में सफलता मिलेगी।
मंत्र श्रीं ह्रीं स्त्रीं हूं फट् ।
धनु धन और यश पाने के लिए धनु राशि वाले कमला देवी के इस मंत्र का जप करें।
मंत्र श्रीं ।
मकर मकर राशि के जातक अपनी राशि के अनुसार मां काली की उपासना करें।
मंत्र क्रीं कालीकाये नम: ।
कुंभ कुंभ राशि वाले भी काली की उपासना करें इससे उनके शत्रुओं का नाश होगा।
मंत्र क्रीं कालीकाये नम: ।
मीन इस राशि के जातक सुख समृद्धि के लिए कमला देवी की उपासना करें।
मंत्र- श्री कमलाये नम:। Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.