Saturday 6 July 2019

देवी भुवनेश्वरी से सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

देवी भुवनेश्वरी से सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य।
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देवी भुवनेश्वरी अपने अन्य नमो से भी प्रसिद्ध हैं :
१. मूल प्रकृति, देवी इस स्वरूप में स्वयं प्रकृति रूप में विद्यमान हैं, समस्त प्रकृति स्वरूप इन्हीं का रूप हैं। 
२. सर्वेश्वरी या सर्वेशी, देवी इस स्वरूप में, सम्पूर्ण चराचर जगत की ईश्वरी या मालकिन है। 
३. सर्वरूपा, देवी इस स्वरूप में, ब्रह्मांड के प्रत्येक तत्व में विद्यमान है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड इन्हीं का स्वरूप हैं।
४. विश्वरूपा, संपूर्ण विश्व का स्वरूप, इन्हीं देवी भुवनेश्वरी के रूप में हैं।
५. जगन-माता, सम्पूर्ण जगत, तीनो लोको की देवी जन्म दात्री है माता हैं।
६. जगत-धात्री, देवी इस रूप में सम्पूर्ण जगत को धारण तथा पालन पोषण करती हैं।
काली और भुवनेशी प्रकारांतर से अभेद है काली का लाल वर्ण स्वरूप ही भुवनेश्वरी हैं। दुर्गम नमक दैत्य के अत्याचारों से संतृप्त हो, सभी देवताओं तथा ब्राह्मणों ने हिमालय पर जा कर सर्वकारण स्वरुपा देवी भुवनेश्वरी की ही आराधना की थी। सभी देवताओं तथा ब्राह्मणों के आराधना से संतुष्ट हो, देवी अपने हाथों में बाण, कमल पुष्प तथा शाक-मूल धारण किये हुए प्रकट हुई थी। देवी ने अपने नेत्रों से सहत्रो अश्रु जल धारा प्रकट की तथा इस जल से सम्पूर्ण भू-मंडल के समस्त प्राणी तृप्त हुए। समुद्रो तथा नदीओ में जल भर गया तथा समस्त वनस्पति सिंचित हुई। अपने हतो में धारण की हुई, शक फल मूलो से इन्होंने सम्पूर्ण प्राणिओ का पोषण किया, तभी से ये शाकम्भरी नाम से भी प्रसिद्ध हुई। इन्होंने ही दुर्गमासुर नमक दैत्य का वध किया तथा समस्त जगत को भय मुक्त, परिणाम स्वरूप देवी का दुर्गा नाम प्रसिद्ध हुआ।
भुवनेश्वरी अवतार धारण कर सम्पूर्ण जगत का निर्माण तथा सञ्चालन, तथा भगवान् विष्णु, 'ब्रह्मा' तथा शिव को जल प्रलय के पश्चात् अपना कार्य भर प्रदान करना।
श्रीमद देवी भागवत पुराण के अनुसार, जनमेजय द्वारा, व्यास जी से भगवान 'ब्रह्मा', विष्णु, शंकर तथा आदि शक्ति, अम्बा जी से उनके सम्बन्ध तथा विश्व के उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे जाने पर, व्यास जी द्वारा जो वर्णन प्रस्तुत किया गया वो निन्नलिखित हैं। एक बार व्यास जी के मन में इसी तरह की जिज्ञासा जागृत हुई थी, तथा उन्होंने नारद जी से अपनी जिज्ञासा के निवारण हेतु प्रार्थना की। नारद जी के मन में भी ऐसी ही जिज्ञासा जागृत हुई थी, की पृथ्वी या इस सम्पूर्ण चराचर जगत का सृष्टि कर्ता कौन हैं ? तदनंतर नारद जी, 'ब्रह्मा' लोक में गमन कर अपने पिता 'ब्रह्मा जी' से प्रश्न किया।
नारद जी द्वारा पूछे जाने पर कि, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई ? 'ब्रह्मा', विष्णु तथा महेश में से किसके द्वारा इस चराचर ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई हैं, सर्वश्रेष्ठ ईश्वर कौन हैं ?
'ब्रह्मा जी' द्वारा उत्तर दिया गया कि, प्राचीन काल में जल प्रलय होने पर, केवल पञ्च महाभूतों की उत्पत्ति होने पर, उनका ('ब्रह्मा जी') कमल से आविर्भूत हुआ। उस समय सर्वत्र केवल जल ही जल था, सूर्य, चन्द्र, पर्वत इत्यादि स्थूल जगत लुप्त था तथा चारो ओर केवल जल ही जल था, कमलकर्णिका पर आसन जमाये वे विचरने लगे। उन्हें ये ज्ञात नहीं था की इस महा सागर के जाल में उन का प्रादुर्भाव कैसे हुआ, उनका निर्माण करने वाला तथा पालन करने वाला कौन हैं। एक बार, 'ब्रह्मा जी' ने दृढ़ निश्चय किया की वो अपने कमल के आसन के मूल आधार देखेंगे, जिस से उन्हें मुल भूमि मिल जाएगी। तदनंतर उनके द्वारा जल में उत्तर कर पद्म के मूल को ढूंढने का प्रयास किया गया परन्तु वो अपने आसन कमल के मूल तक नहीं पहुँच पाये। आकाशवाणी हुई की, तपस्या करो, तदनंतर 'ब्रह्मा जी' ने कमल के आसन पर बैठ हजारों वर्ष तक तपस्या की। कुछ काल पश्चात् पुनः आकाशवाणी हुई सृजन करो, परन्तु 'ब्रह्मा जी' समझ नहीं पाये की किसकी सृजन करे, कैसे करे। उनके सोचते सोचते, उन के सन्मुख मधु तथा कैटभ नाम के दो महा दैत्य आये, जो उन से युद्ध करना चाहते थे तथा जिसे देख 'ब्रह्मा जी' डर गए। तदनंतर 'ब्रह्मा जी' अपने आसन कमल के नाल का आश्रय ले महासागर में उतरे, जहाँ उन्होंने एक अत्यंत सुन्दर एवं अद्भुत पुरुष को देखा, जो मेघ के समान श्याम वर्ण के थे। शंख, चक्र, गदा, पद्म अपने चारो हाथों में धारण किये हुए, तथा शेष नाग की शैय्या पर शयन करते हुऐ उन्होंने महा विष्णु को देखा। महा विष्णु को देख, 'ब्रह्मा जी' के मन में चिंता जागृत हुई और वे आदि शक्ति की सहायता हेतु स्तुति करने लगे, जिनकी तपस्या में वे सदा निमग्न रहते थे। परिणाम स्वरूप निद्रा स्वरूपी, आदि शक्ति महामाया, महा विष्णु के शरीर से अलग हुई तथा दिव्य अलंकारों, आभूषणो तथा वस्त्रो से युक्त हो, आकाश में विराजमान हुई। तदनंतर महा विष्णु ने निद्रा का त्याग किया और जागृत हुऐ, तत्पश्चात् उन्होंने पाँच हजार वर्षों तक मधु-कैटभ नमक महा दैत्यों से युद्ध किया तथा आद्या शक्ति महामाया की कृपा से अपनी जंघा पर उन महा दैत्यों का मस्तक रख कर, उन दैत्यों का वध किया। वध करने के परिणाम स्वरूप शंकर जी भी वहाँ उपस्थित हुए, जो संहार के प्रतिक हैं।

Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.

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