Thursday 17 April 2014

कार्तिकेय स्तोत्रे || श्रीसुब्रह्मण्याष्टकम् ||

कार्तिकेय स्तोत्रे || श्रीसुब्रह्मण्याष्टकम् ||
हे स्वामीनाथ करूणाकर दीनबन्धो श्रीपार्वतीशमुखपङ्कज पद्मबन्धो |
श्रीशादिदेवगणपूजितपादपद्म वल्लीश नाथ मम देहि करावलम्बम् ||१||
देवाधिदेवसुत देवगणादिनाथ देवेन्द्रवन्द्य मृदुपङ्कजमञ्जुपाद |
देवर्षिनारदमुनीन्द्रसुगीतकीर्ते वल्लीश नाथ मम देहि करावलम्बम् ||२||
नित्यान्नदाननिरताखिलरोगहारिन् भाग्यप्रदानपरिपूरितभक्तकाम |
श्रुत्यागमप्रणववाच्यनिजस्वरूप वल्लीश नाथ मम देहि करावलम्बम् ||३||
क्रौञ्चासुरेन्द्रपरिखण्डनशक्तिशूलचापादिशस्त्रपरिमण्डितदिव्यपाणे |
श्रीकुण्डलीशधृततुण्डशिखीन्द्रवाह वल्लीश नाथ मम देहि करावलम्बम् ||४ ||
देवाधिदेवरथमण्डलमध्यमेत्य देवेन्द्रपीठनगरं दृढचापहस्त |
शूरं निहत्य सुरकोटिभिरीड्यमान वल्लीश नाथ मम देहि करावलम्बम् ||५||
हीरादिरत्नवलयुक्तकिरीटहार केयूरकुण्डललसत्कवचाभिराम |
हे वीर तारक जयामरबृन्दवन्द्य वल्लीश नाथ मम देहि करावलम्बम् ||६||
पञ्चाक्षरादिमनुमन्त्रितगाङ्गतोयै: पञ्चामृतै: प्रमुदितेन्द्रमुखैर्मुनिन्द्रै: |
पट्टाभिषिक्त हरियुक्त परासनाथ वल्लीश नाथ मम देहि करावलम्बम् ||७||
श्रीकार्तिकेय करूणामृतपूर्णदृष्ट्या कामादिरोगकलुषीकृतदुष्टचित्तम् |
सिक्त्वा तु मामव कलाधर कान्तिकान्त्या वल्लीश नाथ मम देहि करावलम्बम् ||८||
सुब्रह्मण्याष्टकं पुण्यं ये पठन्ति द्विजोत्तमा: |ते सर्व मुक्तिमायान्ति सुब्रमण्य प्रसादत: ||९||
सुब्रह्मण्याष्टकमिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय य: पठेत् |कोटिजन्मकृतं पापं तत्क्षणात्तस्य नश्यति ||१०||

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