Thursday, 24 April 2014

लक्ष्मी नरसिंह स्तोत्रं ,, श्री लक्ष्मी नरसिंह स्तोत्रं

श्री लक्ष्मी नरसिंह स्तोत्रं श्री मत्वयोनिधिनिकेतन चक्रपाणे भोगींद्र भोगमणिरंजित पुण्यमूर्ते योगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपोत लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्ब्र ह्मेद्र रुद्र मरुदर्ककिरीटकोटि- संघट्टितांघ्र्‍इ कमलामलकांत लक्ष्मीलसत्कुच सरोरुह राजहंस लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्संसारदाव दहनातुर भीकरोरु-
ज्वालावलीभिरतिदग्धतनूरुहस्
त्वत्वाद पद्मसरसिरुह मागतस्य
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
संसारजाल पतितस्य जगन्निवास
सर्वेंद्रियार्थ बडिशाग्र झ पोपमस्य
प्र्‍ओत्कंटित प्रचुरतालुकमस्तकस्य
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
संसारकूपमति घोरमगाध मूलं
संप्राप्य दुःखशतसर्प समाकुलस्य
दीनस्यदेव कृपया पदमागतस्य
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
संसारभीकर करींद्र कराभिघात-
निष्षिष्षमर्मवपुषः सकालार्तिनाश
प्राणप्रयाण भवभीति समाकुलस्य
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
संसार सर्पघनवक्त्र भयोग्रतीव्र
दंष्ष्राकराल विषदग्ध विनष्षमूर्ते
नागारिवाहन सुधाब्दि निवास शौरे
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
संसारवृक्ष मघबीजमनंत कर्म
शाखाशतं करणपत्र मनंग पुष्पं
अरुह्य दुःख दलितं पततो दयालो
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
संसार सागर विशाल कराल घोर
नक्रग्रहग्रसन निग्रहविग्रहस्य
व्यग्रस्य रागनिचयोर्मिनि पीडितस्य
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
संसार सागर निमज्जनमुह्य मानं
दीनं विलोकय विभो करुणानिधे माम्
प्रह्लाद खेद परिहार परावतार
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
संसार घोरगहने चरतो मुरारे
मारोग्र भीकर मृग प्रचुरार्दि तस्य
आर्तस्य मत्सर निदाघ निपीडितस्य
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
बद्द्वागले यमभटा बहुतर्जयंतः
कर्षंति यत्र भवपाशतैर्युतं मां
एकाकिनं परवशं चकितं दयालो
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
लक्ष्मीपते कमलनाभ सुरेश विष्णो
यज्ञेश यज्ञ मधुसूदन विश्वरूप
ब्रह्मण्य केशव जनार्धन वासुदेव
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
एकेन चक्रमपरेण करेण शंख
मन्येन सिंधुतनयामवलंब्य तिष्ठन्
वामे करेण वरदाभयपद्म चिह्नं
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
अंधस्य मे हृत विवेकमहाधनस्य
चोरै प्रभो बलिभिरिंद्रिय नामधेयैः
मोहांधकूप कुहरे विनिपातितस्य
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
प्रह्लाद नारद पराशर पुंडरीक
व्यासांबरीश शुकशौनक हृन्निवास
भक्तानुरक्त परिपालन पारिजात
लक्ष्मीनरसिंह ममदेहि करावलंबम्
लक्ष्मीनरसिंह चरणाब्ज मधुव्रतेन
स्तोत्रं कृतं शुभकरं भुवि शंकरेण
ये यत्पठंति मनुजा हरिभक्ति युक्ता-
स्तेप्रयांति तत्पदसरोजमखंड रूपं

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