नरक चतुर्दशी व्रत और दीपदान। नरक चतुर्दशी दीपावली के एक दिन पूर्व मनाई जाती है। यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी होती है।
वैसे तो कार्तिक मास में शरीर पर तेल लगाने का निषेद्ध है परन्तु इस दिन जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व उठकर अपने शरीर के तेल लगाकर व अपामार्ग से दाँत माँज कर स्नान करता है उसके सभी पापों का नाश होता है और उसकी सद्गति का मार्ग खुलता है। उसे नरक से भी छुटकारा मिलता है। अपामार्ग से प्रकार का पौधा है। अपमार्ग प्रोक्षणका मंत्र - सितालोउसमायुक्तं सकण्ट कदलान्वितम् । हर पापममार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:। चतुर्दशी को लगाए जाने वाले तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में माँ गंगा का वास रहता है। तेल और अपामार्ग की पत्तियों से युक्त जल से स्नान करने से शरीर से अच्छी सुगन्ध आने लगती है और व्यक्ति का स्वरूप तेजोमय होकर उसका रूप भी निखर आता है इस लिये उसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। यमलोक से मुक्ति व यमराज की प्रसन्नता के लिए स्नान के पश्चात यमराज की दक्षिणाभिमुख होकर तिलयुक्त जल से जलाञ्जलि देकर यमराज का तर्पण किया जाता है। इसके बाद विभिन्न नाम मंत्रों से चार बत्तियों वाला दीप घर पर तथा प्रदोषकाल में अन्य दीप सभी देवताओं सहित यमराज के निमित्त भक्ति भाव दीपदान करना चाहिए। सभी पवित्र स्थानों पर भी दीप जलाना चाहिए। जो व्यक्ति इस पर्व पर दीपदान करता है उसे प्रेत बाधा कभी नहीं सताती है इस लिए इसे प्रेत चतुर्दशी भी कहते हैं। वैसे तो पंच दिवसात्मक पर्व दीपावली के पांचों दिन ही किसी न किसी घटना के कारण रामराज को समर्पित है चाहे वह धनतेरस हो या भाई दूज (यम द्धितीया) सभी पांचों दिन यमराज के निमित्त विभिन्न दीप दान का महत्व है परन्तु नरक चतुर्दशी का महत्व इससे कहीं अधिक है।
नरक चतुर्दशी के पीछे वामन पुराण में एक आख्यान है राजा बलि के यज्ञ को भंग करके वामन भगवान ने पृथ्वी से सम्पूर्ण ब्रहाण्ड को नाप लिया था और राजा बली को पाताल में शरण दी। बली के द्वारा मांगे वर के अनुसार जो मनुष्य इस पर्व पर दीप दान करेगा उसके यहाँ स्थिर लक्ष्मी का वास होगा और वह यम यातना से दूर रहेगा। इसी संदर्भ में एक अन्य आख्यान मिलता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध करके तीनों लोकों को भयमुक्त किया और उस उपलक्ष्य में लोगों ने घी के दीप जलाये थे। इस लिये इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। अत: यम यातना से मुक्ति और स्थिर लक्ष्मी की प्राçप्त के लिए इस दिन प्रदोष काल में घर के मुख्य द्वार के बाहर चार बत्तियों वाला दीपक जलाना चाहिए और लोक कल्याणार्थ घर पर दीपदान करना चाहिए। दीप सायंकाल में जब सूर्य अस्त हो रहे हों, उस समय प्रज्ज्वलित करने चाहिए।
यमराज या यम भारतीय पौराणिक कथाओं में मृत्यु के देवता को कहा गया है। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य के पुत्र यमराज, श्राद्धदेव मनु और पुत्री यमुना हुईं। यमराज परम भागवत, द्वादश भागवताचार्यों में हैं। यमराज जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिये, जो अशुभकर्मा है, बड़ी भयप्रद है। दीपावली से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यमराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा का सम्पादन करता है। ये निर्णेता हम से सदा शुभकर्म की आशा करते हैं। दण्ड के द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है।
अन्य नाम
यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त- इन चतुर्दश नामों से इन महिषवाहन दण्डधर की आराधना होती है। इन्हीं नामों से इनका तर्पण किया जाता है।
वैसे तो कार्तिक मास में शरीर पर तेल लगाने का निषेद्ध है परन्तु इस दिन जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व उठकर अपने शरीर के तेल लगाकर व अपामार्ग से दाँत माँज कर स्नान करता है उसके सभी पापों का नाश होता है और उसकी सद्गति का मार्ग खुलता है। उसे नरक से भी छुटकारा मिलता है। अपामार्ग से प्रकार का पौधा है। अपमार्ग प्रोक्षणका मंत्र - सितालोउसमायुक्तं सकण्ट कदलान्वितम् । हर पापममार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:। चतुर्दशी को लगाए जाने वाले तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में माँ गंगा का वास रहता है। तेल और अपामार्ग की पत्तियों से युक्त जल से स्नान करने से शरीर से अच्छी सुगन्ध आने लगती है और व्यक्ति का स्वरूप तेजोमय होकर उसका रूप भी निखर आता है इस लिये उसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। यमलोक से मुक्ति व यमराज की प्रसन्नता के लिए स्नान के पश्चात यमराज की दक्षिणाभिमुख होकर तिलयुक्त जल से जलाञ्जलि देकर यमराज का तर्पण किया जाता है। इसके बाद विभिन्न नाम मंत्रों से चार बत्तियों वाला दीप घर पर तथा प्रदोषकाल में अन्य दीप सभी देवताओं सहित यमराज के निमित्त भक्ति भाव दीपदान करना चाहिए। सभी पवित्र स्थानों पर भी दीप जलाना चाहिए। जो व्यक्ति इस पर्व पर दीपदान करता है उसे प्रेत बाधा कभी नहीं सताती है इस लिए इसे प्रेत चतुर्दशी भी कहते हैं। वैसे तो पंच दिवसात्मक पर्व दीपावली के पांचों दिन ही किसी न किसी घटना के कारण रामराज को समर्पित है चाहे वह धनतेरस हो या भाई दूज (यम द्धितीया) सभी पांचों दिन यमराज के निमित्त विभिन्न दीप दान का महत्व है परन्तु नरक चतुर्दशी का महत्व इससे कहीं अधिक है।
नरक चतुर्दशी के पीछे वामन पुराण में एक आख्यान है राजा बलि के यज्ञ को भंग करके वामन भगवान ने पृथ्वी से सम्पूर्ण ब्रहाण्ड को नाप लिया था और राजा बली को पाताल में शरण दी। बली के द्वारा मांगे वर के अनुसार जो मनुष्य इस पर्व पर दीप दान करेगा उसके यहाँ स्थिर लक्ष्मी का वास होगा और वह यम यातना से दूर रहेगा। इसी संदर्भ में एक अन्य आख्यान मिलता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध करके तीनों लोकों को भयमुक्त किया और उस उपलक्ष्य में लोगों ने घी के दीप जलाये थे। इस लिये इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। अत: यम यातना से मुक्ति और स्थिर लक्ष्मी की प्राçप्त के लिए इस दिन प्रदोष काल में घर के मुख्य द्वार के बाहर चार बत्तियों वाला दीपक जलाना चाहिए और लोक कल्याणार्थ घर पर दीपदान करना चाहिए। दीप सायंकाल में जब सूर्य अस्त हो रहे हों, उस समय प्रज्ज्वलित करने चाहिए।
यमराज या यम भारतीय पौराणिक कथाओं में मृत्यु के देवता को कहा गया है। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य के पुत्र यमराज, श्राद्धदेव मनु और पुत्री यमुना हुईं। यमराज परम भागवत, द्वादश भागवताचार्यों में हैं। यमराज जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिये, जो अशुभकर्मा है, बड़ी भयप्रद है। दीपावली से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यमराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा का सम्पादन करता है। ये निर्णेता हम से सदा शुभकर्म की आशा करते हैं। दण्ड के द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है।
अन्य नाम
यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त- इन चतुर्दश नामों से इन महिषवाहन दण्डधर की आराधना होती है। इन्हीं नामों से इनका तर्पण किया जाता है।
आज रुप चौदस है. इस पर्व का संबंध स्वच्छता से है. इसीलिए इस दिन लोग घरों की सफाई कर कूड़ा-कचरा बाहर फेंकते हैं तथा लिपाई-पुताई कर स्वच्छ करते हैं.
इस दिन शारीरिक स्वच्छता का भी विशेष महत्व है. अतः सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल-उबटन लगाकर भली-भाँति स्नान करना चाहिए. कहा जाता है कि जो लोग इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान नहीं करते, वर्षभर उनके शुभ कार्यों का नाश होता है अर्थात दरिद्रता और संकट वर्षभर उनका पीछा करते रहते हैं.
पौराणिक महत्व
भगवान वामन ने राजा बलि की पृथ्वी तथा शरीर को तीन पगों में इसी दिन नाप लिया था.
आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने नरकासुर नामक राक्षस को मारकर पृथ्वी को भार मुक्त किया था.
इस व्रत को करने से नरक की प्राप्ति नहीं होती.
रामभक्त हनुमानजी का जन्म भी आज ही हुआ था.
रूप चतुर्दशी स्नान
चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्दशी को प्रातः शौच, दंत धावन से निवृत्त होकर निम्न मंत्र का संकल्प कर शरीर में तिल का तेल आदि का उबटन लगाएँ-
यमलोकदर्शनाभावकामोऽहमभ्यंगस्नानं करिष्ये.
हल से उखड़ी हुई मिट्टी का ढेला और अपामार्ग (ऊंगा) वनस्पति को अपने मस्तक पर से घुमाकर शुद्ध स्नान करें.
यम दीपदान एवं यम तर्पण
दीपदान
सायंकाल प्रदोष समय तिल्ली के तेल से भरकर 14 दीपक एक थाल में सजाएँ.
फिर हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प बोलें-
यम-मार्ग अंधकार निवारणार्थे चतुर्दश दीपानाम् दानं करिष्ये .
संकल्प जल छोड़ दें.
अब दीपक प्रज्वलित कर पुष्प-अक्षत से पूजन करें.
सके पश्चात उन दीपकों को सूने अथवा सार्वजनिक स्थान या किसी मंदिर में लगाएँ.
यम तर्पण
सायंकाल के ही समय एक पात्र में जल भरकर काली एवं सफेद तिल व कुशा डालें.
यज्ञोपवीत को कंठी की तरह धारण करें.
निम्न मंत्र बोलते हुए हाथ में जल भरकर उँगलियों की ओर से उसी पात्र में जल छोड़ते हुए जलांजलि दें-
(1) यमाय नमः (2) धर्मराजाय नमः (3) मृत्यवे नमः (4) अनन्ताय नमः (5) वैवस्वताय नमः (6) कालाय नमः (7) सर्वभूतक्षयाम नमः (8) औदुम्बराय नमः (9) दघ्नाय नमः (10) नीलाय नमः (11) परमेष्ठिने नमः (12) वृकोदराय नमः (13) चित्राय नमः (14) चित्रगुप्ताय नमः.
यमराज पूजन इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखें.रात को घर की स्त्रियाँ दीपक में तेल डालकर चार बत्तियाँ जलाएँ.
जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यम का पूजन करें