हर हर महादेव ॐ जय शिवशंकर भगवान शंकर परात्पर परम तत्व हैं। वे सर्वत्र अनुस्यूत हैं, सभी कारणों के कारण हैं। वे जगन्नियन्ता जगदीश्वर हैं। सृष्टि के पूर्व न सत् ही था और न असत्, किंतु केवल शिव ही थे, 'न सन्न चासच्छिव एव केवल:।' यह बात सर्व सम्मत है कि जो वस्तु सृष्टि के पूर्व हो, वही जगत का कारण है, और जो जगत का कारण है, वही ब्रह्म है। ब्रह्म ही जगत के जन्मादि का कारण है। कार्य की उत्पत्ति के पूर्व जो नियमन रहता है, वही कारण है। अर्थात सदसद् वस्तुओं की उत्पत्ति के पूर्व 'शिव' था। 'शिव एव केवल:', 'शिवमद्वैतम' 'शिवं प्रशान्तममृतं ब्रह्मयोनिम', 'तस्मात सर्वगत: शिव:' इत्यादि श्रुतियों में शिव स्वयं अति परिशुद्ध, आश्रितों के कल्याणदाता, सबके साथ समता रखने वाले और भक्तों के सिद्धिप्रद हैं। 'उमासहायं परमेश्वरं प्रभुं त्रिलोचनं नीलकण्ठं प्रशान्तमं' इत्यादि। श्रुति वाक्यों से भी वही प्रतिपादित होता है कि उमारूपी शक्ति के विशिष्ट ही परम शिव ब्रह्म है। शिव शब्द नित्य, विज्ञानानन्द धन परमात्मा का वाचक है। वे कीट से लेकर हिरण्य गर्भ पर्यंत सब में एक रस होकर अनुस्यूत हैं। वे सबके अधिष्ठान, मूलाधार और अभिन्न निमित्तोपादान कारण हैं। वे ही परमात्मा हैं। वह एक, अद्वितीय, परम पुरुष हैं। वही एक मात्र सत्यवस्तु हैं। वे योग विद्या के प्रवर्तक, नृत्य विद्या के उत्पादक, व्याकरण शास्त्र के संचालक, आशुतोष, नित्य अजन्मा और परमाराध्य हैं। भगवती पार्वती उन्हें अपना पति बनाने के लए कठोर तप करती हैं। क्योंकि, वह जानती है कि 'तथा विधं प्रेम पतिश्च ताद्वश:' अन्य विधि से अप्राप्य है।
श्रुति का कथन है कि मुक्तिप्रदाता शिव को जानकर मानव परमशांति प्राप्त करता है, 'ज्ञात्वा शिवं शान्तिमत्यन्तमेति।' भगवान शिव के न तो कोई जनक है और न कोई अधिपति। उनके कोई समकक्ष भी नहीं है। वही सर्वदेवों में श्रेष्ठ हैं, ज्येष्ठ हैं
श्रुति का कथन है कि मुक्तिप्रदाता शिव को जानकर मानव परमशांति प्राप्त करता है, 'ज्ञात्वा शिवं शान्तिमत्यन्तमेति।' भगवान शिव के न तो कोई जनक है और न कोई अधिपति। उनके कोई समकक्ष भी नहीं है। वही सर्वदेवों में श्रेष्ठ हैं, ज्येष्ठ हैं