Sunday 25 May 2014

वो काला एक बांसुरी वाला सुध बिसरा गया मोरी रे

वो काला एक बांसुरी वाला सुध बिसरा गया मोरी रे
सुध बिसरा गया मोरी माखन चोर वो नंदकिशोर
कर गयो रे, कर गयो मन की चोरी रे
सुध बिसरा गया मोरी
पनघट पे मोरी, बैंया मरोड़ी
मैं बोली तो मेरी मटकी फोडी
पैयां पडू करू विनती मैं पर
माने ना एक मोरी रे
सुध  .वो काला एक
छुप गयो फिर एक तान सूना के
कहाँ गयो एक बाण चला के
गोकुल ढुंढा मैंने मथुरा ढुंढी
कोई नगरिया ना छोडी रे सुध

Krishna Lullaby by VISHNU108

जय श्री कृष्णा श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम

 जय श्री कृष्णा श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम
लोग करें मीरा को यूँही बदनाम
सांवरे की बंसी को बजने से काम
राधा का भी श्याम वो तो मीरा का भी श्याम
जमुना की लहरें बंसी बजती सैयां,
किसका नहीं है कहो कृष्ण कन्हैया
श्याम का दीवाना तो सारा ब्रिजधाम
लोग करें मीरा को यूँही बदनाम
सांवरे की बंसी को बजने से काम
राधा का भी श्याम वो तो मीरा का भी श्याम
कौन जाने बांसुरिया किसको बुलाये
जिसके मन भाए वो तो उसी के गुण गाए
कौन नहीं बंसी की धुन का गुलाम
राधा का भी श्याम वो तो मीरा का भी श्याम
श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम
लोग करें मीरा को यूँही बदनाम

माखन चोर , नन्द किशोर, मन मोहन, घनश्याम रे ,,

माखन चोर , नन्द किशोर, मन मोहन, घनश्याम रे
कितने तेरे रूप रे कितने तेरे नाम रे
देवकी माँ ने जनम दिया और मैया यशोदा ने पाला
तू गोकुल का ग्वाला बिंद्रा बन गया बंसरी वाला
आज तेरी बंसी फिर बाजी मेरे मन के धाम रे
कितने तेरे रूप रे कितने तेरे नाम रे
माखन चोर , नन्द किशोर, मन मोहन, घनश्याम रे
कितने तेरे रूप रे कितने तेरे नाम रे
काली नाग के साथ लड़ा तू ज़ालिम कंस को मारा
बाल अवस्था में ही तुने खेला खेल ये सारा
तेरा बचपन तेरा जीवन जैसे एक संग्राम रे
कितने तेरे रूप रे कितने तेरे नाम रे
माखन चोर , नन्द किशोर, मन मोहन, घनश्याम रे
कितने तेरे रूप रे कितने तेरे नाम रे
तुने सब का चैन चुराया ओ चितचोर कन्हैया
जाने कब घर आए देखे राह यशोदा मैया
व्याकुल राधा ढूंढे श्याम न आया हो गई शाम रे
कितने तेरे रूप रे कितने तेरे नाम रे
माखन चोर , नन्द किशोर, मन मोहन, घनश्याम रे
कितने तेरे रूप रे कितने तेरे नाम रे

GOPAL KRISHNA by VISHNU108

जय श्री राधे कृष्णा जय श्री राधे कृष्णा

जय श्री राधे कृष्णा जय श्री राधे कृष्णा
राधिका गोरी से बृज की छोरी से
मैया करा दे मेरा व्याह

जो नहीं व्याह करावे तेरी गैया नहीं चरावु
आज के बाद मोरी मैया तेरी देहली पर न आवु
आएगा रे - २  मजा रे मजा अब जीत हार का 

चन्दन की चौकी पर मैया तुझे बैठाऊ
अपनी राधिका से मै चरण तोरे दबवाऊ
भोजन बनवाऊंगा -२  मै छत्तीस प्रकार के

छोटी सी दुलहनिया जब आँगन में डोलेगी
तेरे सामने मैया वो घुंघट न खोलेगी
दाऊ से जा कहो -२  वो बैठेगे द्वार पे

सुन कर बातें लल्ला की मैया बैठी मुस्कराए
लेकर बलैया मैया, हिवडे से अपने लगाये 
नजर कहीं न लगे - २ न लगे मेरे लाल को

RADHA GOPINATH by VISHNU108

जय श्री कृष्णा श्री कृष्ण:शरणम् मम:

जय श्री कृष्णा  श्री कृष्ण:शरणम् मम:
दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी अंखियाँ प्यासी रे
मन मंदिर की ज्योत जगा दो, घाट घाट वासी रे

मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी न दिखे सूरत तेरी 
यह शुभ बेला आई, मिलन की पूरनमासी रे 

द्वार दया का जब तू खोले, पञ्च स्वर में गंगा बोले
अँधा देखे, लंगड़ा चलकर, पहुचें काशी रे

पानी पीकर प्यास बुझाऊ, नैनन को कैसे समझाऊ 
आँख मिचोली छोड़ दे आब तो मन के वासी रे

लाज न लुट जाए मेरी, नाथ करो न दया में देरी
तीनो लोक छोड़ के आवो, गगन विलासी रे

द्वार खड़ा कब से मतवाला, माँगा तुमसे हाथ तुम्हारा 
"बासु" की प्रभु विनती सुनलो, भक्त विलासी रे 

File:RADHE KRISHNA.gif

बड़ा नटखट है रे कृष्णा कन्हैया जय श्री कृष्णा

 जय श्री कृष्णा  बड़ा नटखट है रे कृष्णा कन्हैया का करे यशोदा मैयाढूंढे री अखिया उसे चहू ओर,जाने कहाँ छुप गया नंदकिशोर। उड़ गया ऐसे जैसे पुरवईया,का करे यशोदा मैया॥ आ तोहे मैं गले से लगा लूँ,लागे ना किसी की नज़र, मन में छुपा लूँ।धुप जगत है रे ममता है छईया,का करे यशोदा मैया॥ मेरे जीवन का तू एक ही सपना,जो कोई देखे तोहे, समझा वो अपना।सबका है प्यारा, बंसी बजयिया,का करे यशोदा मैया॥
YASHODA KRISHNA by VISHNU108

जय श्री कृष्णा jay shri krishna

सुप्रभात श्री कृष्ण:शरणम् मम: जय श्री  कृष्णा भोर भये जागे गिरिधारी।सगरी निसि रस बस कर बितई, कुंज-महल सुखकारी।पट उतारि तिय-मुख अवलोकत चंद-बदन छवि भारी।बिलुलित केस पीक अरु अंजन फैली बदन उज्यारी।नाहिं जगावत जानि नींद बहु समुझि सुरति-श्रम भारी।छबि लखि मुदित पीत पट कर लै रहे भँवर निरुवारी।संगम धुनि मधुरै सुर गावत चौंकि उठी तब प्यारी।रही लपटाइ जंभाइ पिया उर
KRISHNA OM by VISHNU108

Friday 23 May 2014

शिवाष्टक ,,,shivashtak

 शिवाष्टक ,,, shivashtak
जय शिवशंकरजय गंगाधरकरुणा-कर करतार हरे, जय कैलाशीजय अविनाशीसुखराशिसुख-सार हरे 
जय शशि-शेखर
जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे, जय त्रिपुरारीजय मदहारीअमित अनन्त अपार हरे,

निर्गुण जय जयसगुण अनामयनिराकार साकार हरे। पार्वती पति हर-हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे॥
जय रामेश्वर
जय नागेश्वर वैद्यनाथकेदार हरे, मल्लिकार्जुनसोमनाथजयमहाकाल ओंकार हरे,
त्र्यम्बकेश्वर
जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे, काशी-पतिश्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नील-कण्ठ जय
भूतनाथ जयमृत्युंजय अविकार हरे। पार्वती पति हर-हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे॥
जय महेश जय जय भवेश
जय आदिदेव महादेव विभो, किस मुख से हे गुरातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकार
तारकहारक पातक-दारक शिव शम्भो, दीन दुःख हर सर्व सुखाकरप्रेम सुधाधर दया करो,
पार लगा दो भव सागर से
बनकर कर्णाधार हरे। पार्वती पति हर-हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे॥
जय मन भावन
जय अति पावनशोक नशावन, विपद विदारनअधम उबारनसत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो
, मदन-कदन-कर पाप हरन-हरचरन-मननधन शिव शम्भो,
विवसन
विश्वरूपप्रलयंकरजग के मूलाधार हरे। पार्वती पति हर-हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे॥
भोलानाथ कृपालु दयामय
औढरदानी शिव योगीसरल हृदय, अतिकरुणा सागरअकथ-कहानी शिव योगीनिमिष में देते हैं,
नवनिधि मन मानी शिव योगी
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकरबने मसानी शिव योगीस्वयम्‌ अकिंचन,जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे। 
पार्वती पति हर-हर शम्भो
पाहि पाहि दातार हरे॥ आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषम-वेदना
से विषयों की मायाधीश छड़ा देना, रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना
,

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एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे। पार्वती पति हर-हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे॥ 
दानी हो
दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो, शक्तिमान होदो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो, 
त्यागी हो
दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो, परमपिता होदो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो, 
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।
 पार्वती पति हर-हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे॥
तुम बिन 
बेकल’ हूँ प्राणेश्वरआ जाओ भगवन्त हरे, चरण शरण की बाँह गहोहे उमारमण प्रियकन्त हरे,
विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे
, आओ तुम मेरे हो जाओआ जाओ श्रीमंत हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
 पार्वती पति हर-हर शम्भोपाहि पाहि दातार हरे॥
SHIVA YOGA by VISHNU108

शिव के 108 नाम

शिव के 108 नाम ,,,,१- ॐ भोलेनाथ नमः२-ॐ कैलाश पति नमः३-ॐ भूतनाथ नमः४-ॐ नंदराज नमः५-ॐ नन्दी की सवारी नमः६-ॐ ज्योतिलिंग नमः७-ॐ महाकाल नमः८-ॐ रुद्रनाथ नमः९-ॐ भीमशंकर नमः१०-ॐ नटराज नमः११-ॐ प्रलेयन्कार नमः१२-ॐ चंद्रमोली नमः१३-ॐ डमरूधारी नमः१४-ॐ चंद्रधारी नमः१५-ॐ मलिकार्जुन नमः१६-ॐ भीमेश्वर नमः१७-ॐ विषधारी नमः१८-ॐ बम भोले नमः१९-ॐ ओंकार स्वामी नमः२०-ॐ ओंकारेश्वर नमः२१-ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः२२-ॐ विश्वनाथ नमः२३-ॐ अनादिदेव नमः२४-ॐ उमापति नमः२५-ॐ गोरापति नमः२६-ॐ गणपिता नमः२७-ॐ भोले बाबा नमः२८-ॐ शिवजी नमः२९-ॐ शम्भु नमः३०-ॐ नीलकंठ नमः३१-ॐ महाकालेश्वर नमः३२-ॐ त्रिपुरारी नमः३३-ॐ त्रिलोकनाथ नमः३४-ॐ त्रिनेत्रधारी नमः३५-ॐ बर्फानी बाबा नमः३६-ॐ जगतपिता नमः३७-ॐ मृत्युन्जन नमः३८-ॐ नागधारी नमः३९- ॐ रामेश्वर नमः४०-ॐ लंकेश्वर नमः४१-ॐ अमरनाथ नमः४२-ॐ केदारनाथनमः४३-ॐ मंगलेश्वर नमः४४-ॐ अर्धनारीश्वर नमः४५-ॐ नागार्जुन नमः४६-ॐ जटाधारी नमः४७-ॐ नीलेश्वर नमः४८-ॐ गलसर्पमाला नमः४९- ॐ दीनानाथ नमः५०-ॐ सोमनाथ नमः५१-ॐ जोगी नमः५२-ॐ भंडारी बाबा नमः५३-ॐ बमलेहरी नमः५४-ॐ गोरीशंकर नमः५५-ॐ शिवाकांत नमः५६-ॐ महेश्वराए नमः५७-ॐ महेश नमः५८-ॐ ओलोकानाथ नमः५४-ॐ आदिनाथ नमः६०-ॐ देवदेवेश्वर नमः६१-ॐ प्राणनाथ नमः६२-ॐ शिवम् नमः६३-ॐ महादानी नमः६४-ॐ शिवदानी नमः६५-ॐ संकटहारी नमः६६-ॐ महेश्वर नमः६७-ॐ रुंडमालाधारी नमः६८-ॐ जगपालनकर्ता नमः६९-ॐ पशुपति नमः७०-ॐ संगमेश्वर नमः७१-ॐ दक्षेश्वर नमः७२-ॐ घ्रेनश्वर नमः७३-ॐ मणिमहेश नमः७४-ॐ अनादी नमः७५-ॐ अमर नमः७६-ॐ आशुतोष महाराज नमः७७-ॐ विलवकेश्वर नमः७८-ॐ अचलेश्वर नमः७९-ॐ अभयंकर नमः८०-ॐ पातालेश्वर नमः८१-ॐ धूधेश्वर नमः८२-ॐ सर्पधारी नमः८३-ॐ त्रिलोकिनरेश नमः८४-ॐ हठ योगी नमः८५-ॐ विश्लेश्वर नमः८६- ॐ नागाधिराज नमः८७- ॐ सर्वेश्वर नमः८८-ॐ उमाकांत नमः८९-ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः९०-ॐ त्रिकालदर्शी नमः९१-ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः९२-ॐ महादेव नमः९३-ॐ गढ़शंकर नमः९४-ॐ मुक्तेश्वर नमः९५-ॐ नटेषर नमः९६-ॐ गिरजापति नमः९७- ॐ भद्रेश्वर नमः९८-ॐ त्रिपुनाशक नमः९९-ॐ निर्जेश्वर नमः१०० -ॐ किरातेश्वरनमः१०१-ॐ जागेश्वर नमः१०२-ॐ अबधूतपति नमः१०३ -ॐ भीलपति नमः१०४-ॐ जितनाथ नमः१०५-ॐ वृषेश्वर नमः१०६-ॐ भूतेश्वर नमः१०७-ॐ बैजूनाथ नमः१०८-ॐ नागेश्वर नमः'Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557. Gems For Everyone,
SHIVA MOON by VISHNU108

शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी मनोकामना पूरी होती है।

  शिवलिंग  पर बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी मनोकामना पूरी होती है।
'शिका अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिवकहलाते हैं।
वेदप्रकृति रूप ईश्वर की अपार महिमा व शक्तियां उजागर करते हैं। धर्मग्रंथों में वेद भगवान शिव का स्वरूप भी पुकारे गए हैं। यानी प्रकृति का कण-कण शिव रूप ही माना गया है। इसी कड़ी में बिल्व वृक्ष साक्षात शिव का ही रूप माना गया है।
शिवपुराण में तो बिल्ववृक्ष की जड़ में सभी तीर्थस्थान माने गए हैं। इसलिए बिल्ववृक्ष की पूजा शिव उपासना ही मानकर कई देवताओं की पूजा का पुण्य देने वाली मानी गई है। खासतौर पर हिन्दू धर्म परंपराओं में महाशिवरात्रि को भगवान शिव की उपासना की शुभ घड़ी में बिल्ववृक्ष पूजा के कई अचूक उपाय सांसारिक जीवन की कई इच्छाओं को पूरा करने वाले माने गए हैं।
जानिए शिवपुराण में बताए बिल्ववृक्ष पूजा के ये खास उपाय किन-किन मुरादों को पूरा करते हैं-
बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती है।
बिल्व की जड़ का जल अपने सिर पर लगाने से उसे सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य पा जाता है।
गंधफूलधतूरे से जो बिल्ववृक्ष की जड़ की पूजा करता हैउसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं।
बिल्ववृक्ष के बिल्वपत्रों से पूजा करने पर सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।
बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता हैवह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता।
क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है। यानी इसमें देवी लक्ष्मी का भी वास होता है |
SHIVA CHAKRA by VISHNU108

हनुमान साठिका ,,,Hanuman Satika

हनुमान साठिका ,,,Hanuman Satika
।। चौपाईयाँ ।।जय जय जय हनुमान अडंगी, महावीर विक्रम बजरंगी ।
जय कपीश जय पवन कुमारा, जय जगवंदन शील आगारा ॥
जय आदित्य अमर अविकारी, अरि मर्दन जय जय गिरधारी ।
अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा, जय जयकार देवतन कीन्हा ॥
बाजै दुन्दुभि गगन गम्भीरा, सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ।
कपि के डर गढ़ लंक सकानी, छुटि बंदि देवतन जानी ॥
ॠषि समुह निकट चलि आये, पवनतनय के पद सिर नाये ।
बार बार अस्तुति करि नाना, निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥
सकल ॠषिन मिलि अस मत ठाना, दीन बताय लाल फल खाना ।
सुनत वचन कपि मन हरषाना, रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥
रथ समेत कपि कीनि अहारा, सुर्य बिना भयौ अति अंधियारा ।
विनय तुम्हार करैं अकुलाना, तब कपीरा की अस्तुति ठाना ॥
सकल लोक वृतांत सुनावा, चतुरानन तब रवि उगलावा ।
कहा बहोरि सुनो बलशीला, रामचन्द्र करि हैं बहु लीला ॥
तब तुम उन कर करव सहाई, अबहीं बराहु कानन में जाई
अस कहि विधि निज लोक सिधारा, मिले सखा संग पवनकुमारा ॥
खेलें खेल महा तरु तोरें, ढेर करें बहु पर्वत फोरें ।
जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई, गिरि समेत पातालहिं जाई ॥
कपि सुग्रीव बालि को त्रासा, निरख रहे राम धनु आसा ।
मिले राम तहाँ पवन कुमारा, अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥
मणि मुँदरी रघुपति सो पाई, सीता खोज चले सिर नाई ।
शत योजन जलनिधि विस्तारा, अगम अपार देवतन हारा ॥
जिमि सर गोखुर सरिस कपीशा, लांघि गये कपि कहि जगदीशा ।
सीता चरण सीस तिन नाये, अजर अमर के आशिष पाये ॥
रहे दनुज उपवन रखवारी, एक से एक महाभट भारी ।
जिन्हें मारि पुनि गयेउ कपीशा, दहेउ लंक कोप्यो भुजबीसा ॥
सिया बोध दैं पुनि फिर आये, रामचन्द्र के पद सिर नाये ।
मेरु उपारि आपु छिन माहीं, बाँधे सेतु निमिष इक माहीं ॥
लक्ष्मण शक्ति लागी जबहीं, राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ।
भवन समेत सुखेण लै आये, तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥
मग महं कालनेमि कहं मारा, अमित सुभट निशिचर संहारा ।
आनि सजीवन गिरि समेता, धरि दीन्हीं जहं कृपानिकेता ॥
फनपति केर शोक हरि लीन्हा, वरषि सुमन सुर जय जय कीन्हा ।
अहिरावण हरि अनुज समेता, ले गयो तहां पाताल निकेता ॥
जहां रहे देवि अस्थाना , दीन चहै बलि काढ़ि कृपाणा ।
पवनतनय प्रभु कीन गुहारी, कटक समेत निशाचर मारी ॥
रीछ कीशपति सबै बहोरी, राम लखन कीने इक ठोरी ।
सब देवतन की बंदि छुड़ाये ,सो कीरति मुनि नारद गाये ॥
अक्षयकुमार दनुज बलवाना, सानकेतु कहं सब जगजाना ।
कुम्भकरण रावण कर भाई, ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥
मेघनाद पर शक्ति मारा, पवनतनय तब सों बरियारा ।
रहा तनय नारान्तक जाना, पल महं ताहि हते हनुमाना ॥
जहं लगि मान दनुज कर पावा , पवनतनय सब मारि नसावा ।
जय मारुतसुत जय अनुकुला, नाम कृशानु शोक सम तुला॥
जहं जीवन पर संकट होई, रवि तम सम सों संकट खोई ।
बन्दि परै सुमिरे हनुमाना, संकट कटै धरै जो ध्याना ॥
जाको बांध वाम पद दीन्हा, मारुतसुत व्याकुल बहु कीन्हा ।
जो भुजबल का कीन कृपाला, आछत तुम्हें मोर यह हाला ॥
आरत हरन नाम हनुमाना, सादर सुरपति कीन बखाना ।
संकट रहै न एक रती को, ध्यान धरै हनुमान जती को ॥
धावहु देखि दीनता मोरि, कहौं पवनसुत युगकर जोरि ।
कपिपति बेगि अनुग्रह करहु, आतुर आई दुसह दुख हरहु ॥
रामशपथ मैं तुमहिं सुनाया, जवन गुहार लाग सिय जाया ।
पैज तुम्हार सकल जग जाना , भव बंधन भंजन हनुमाना ॥
यह बंधन कर केतिक बाता, नाम तुम्हार जगत सुख दाता ।
करौ कृपा जय जय जगस्वामी, बार अनेक नमामि नमामि ॥
भौमवार कर होम विधाना, सुन नर मुनि वाछिंत फल पावै ।
जयति जयति जय जय जग स्वामी, समरथ पुरुष सुअंतरयामी ॥
अंजनि तनय नाम हनुमाना, सो तुलसी के प्राण समाना ॥,,,(jyotish aur ratna paramarsh karta)08275555557 ,,
।। दोहा ।।जय कपीश सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
रामलखन सीता सहित, सदा करौ कल्यान ॥
बन्दौ हनुमत नाम यह, मंगलवार प्रमाण ।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढै यह साठिका, तुलसी कहै विचारि ।
रहै न संकट ताहि को , साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥

।। सवैया ।।आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।।
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।
HANUMAN LOTUS by VISHNU108

देवउठनी एकादशी व्रत कथा,, कार्तिक शुक्ल एकादशी

देवउठनी एकादशी व्रत कथा कार्तिक शुक्ल एकादशी
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। 

एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था।

एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।

उस व्यक्ति ने उस समय 'हाँ' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊँगा। मुझे अन्न दे दो।
राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुँचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। 

पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। 

बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुँचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।

पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।

यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ, पूजा करता हूँ, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।

राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूँगा।

लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। 

यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ। 
इति शुभम्।
,,,एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता था। सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला और सुंदरी को देख चकित रह गया। उसने पूछा- हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहाँ क्यों बैठी हो?

तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोले- मैं निराश्रिता हूँ। नगर में मेरा कोई जाना-पहचाना नहीं है, किससे सहायता माँगू? राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह बोला- तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो।

सुंदरी बोली- मैं तुम्हारी बात मानूँगी, पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊँगी, तुम्हें खाना होगा।
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राजा उसके रूप पर मोहित था, अतः उसने उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन एकादशी थी। रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। उसने घर में मांस-मछली आदि पकवाए तथा परोसकर राजा से खाने के लिए कहा। यह देखकर राजा बोला-रानी! आज एकादशी है। मैं तो केवल फलाहार ही करूँगा। 

तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली- या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट लूँगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली- महाराज! धर्म न छोड़ें, बड़े राजकुमार का सिर दे दें। पुत्र तो फिर मिल जाएगा, पर धर्म नहीं मिलेगा।

इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया। माँ की आँखों में आँसू देखकर वह रोने का कारण पूछने लगा तो माँ ने उसे सारी वस्तुस्थिति बता दी। तब वह बोला- मैं सिर देने के लिए तैयार हूँ। पिताजी के धर्म की रक्षा होगी, जरूर होगी।

राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर असली बात बताई- राजन! तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर माँगने को कहा तो राजा बोला- आपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धार करें।

उसी समय वहाँ एक विमान उतरा। राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परम धाम को चला गया।
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