Saturday, 30 September 2017

विजयादशमी के दिन नीलकंठ का दर्शन शुभ माना जाता हैं

विजयादशमी के दिन नीलकंठ का दर्शन शुभ माना जाता हैं। ।भगवान राम के आराध्य शिव के प्रिय पक्षी नीलकंठ का विजयदशमी के दिन आपने दर्शन किया क्या।। नीले रंग की अनुपम छटा वाले इस पक्षी का विजय दशमी के दिन दर्शन करने मात्र से साल भर हर कार्य में विजय मिलती है। इसी मनोकामना के चलते इस बेहद खूबसूरत पक्षी को देखने के लिए विजयादशमी के दिन राजधानी लखनऊ के लोग सुबह-सुबह चंद्रिका देवी मंदिर के आसपास और कुकरैल पिकनिक स्पॉट जैसी जगहों पर जुट जाते हैं।
दशहरा पर दर्शन शुभ

नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो। विजयदशमी के दिन इस गीत से वातावरण गुंजायमान हो उठता है। जनश्रुति के अनुसार नीलकंठ भगवान का प्रतिनिधि है। इसीलिए दशहरा पर्व पर इस पक्षी से मिन्न्त कर लोगों ने अपनी बात शिव तक पहुंचाने की फरियाद की। माना जाता है कि विजय दशमी के दिन भगवान राम ने भी नीलकंठ के दर्शन किए थे।

ऐसा कहा जाता है कि, इस दिन नीलकंठ का दर्शन अत्यंत शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है। इसीलिए विजयादशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन की परम्परा रही है। ताकि साल भर उनके कार्य शुभ हों।
नीलकंठ का दर्शन मतलब श्री का आगमन

दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन होने पर धन-धान्य में वृद्धि होती है। फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवर‌त होते रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो शुभ होता है।

पौराणिक कथा
अवध में प्रचलित एक पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान श्रीराम ने नीलकंठ का दर्शन करके ही रावण का वध किया था। लंका जीत के बाद जब भगवान राम को ब्रह्मण हत्या का पाप लगा था। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की ओर शिव पूजा पर ब्रह्मण हत्या के पाप से खूद को मुक्त कराया। ऐसी मान्यता है कि उस वक्त भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रुप में ही धरती पर आये थे। नीलकंठ पक्षी भगवान शिव का ही एक रुप है। माना जाता है कि भगवान शिव नीलकंठ पक्षी का रूप धारण कर ही धरती पर विचरण करते हैं।
विजयदशमी में क्यों पान खाने-खिलाने और नीलकंठ के दर्शन है जरूरी
जीत तो जीत है। इसका जश्न मनाना स्वाभाविक है। फिर चाहे बुराइयों पर अच्छाई की जीत हो या फिर असत्य पर सत्य की। विजय दशमी का पर्व भी जीत का पर्व है। अहंकार रूपी रावण पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम की विजय से जुड़े पर्व का जश्न पान खाने-खिलाने और नीलकंठ के दर्शन से जुड़ा है। इस दिन हम सन्मार्ग पर चलने का बीड़ा उठाते हैं। दशहरे में रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की परम्परा है।

ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की जीत की खुशी को व्यक्त करते हैं और यह बीड़ा उठाते हैं कि वह हमेशा सत्य के मार्ग पर चलेंगे। इस विषय पर ज्योतिषाचार्य पंडित राम प्रसाद का कहना है कि पान का पत्ता मान और सम्मान का प्रतीक है। इसलिए हर शुभ कार्य में इसका उपयोग किया जाता है।
नीलकंठ
वैज्ञानिकों के अनुसार नीलकंठ भाग्य विधाता होने के साथ-साथ किसानों का मित्र भी है। नीलकंठ किसानों के खेतों में कीड़ों को खाकर फसलों की रखवाली करता है। राहत की बात यह है कि अभी भी यह पक्षी खात्मे की राह पर नहीं है मगर इसका दिखना कुछ कम जरुर हुआ है। भारतीय महाद्वीप में यह हिमालय से लेकर श्रीलंका ,पाकिस्तान आदि सभी जगह मिलता है। इसके अलावा बिहार,कर्नाटक,ओडिशा और आन्ध्रप्रदेश का यह राज्य पक्षी भी है।

ऋतु परिवर्तन
दशहरे के दिन पान खाने की परम्परा पर वैज्ञानिकों का मानना है कि चैत्र एवं शारदेय नवरात्र में पूरे नौ दिन तक मिश्री, नीम की पत्ती और काली मिर्च, खाने की परम्परा है। इनके सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन का समय होता है। इस समय संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में यह परम्परा लोगों की बीमारियों से रक्षा करती है। ठीक उसी प्रकार नौ दिन के उपवास के बाद लोग अन्न ग्रहण करते हैं जिसके कारण उनकी पाचन की प्रकिया प्रभावित होती है। पान का पत्ता पाचन की प्रक्रिया को सामान्य बनाए रखता है। इसलिए दशहरे के दिन शारीरिक प्रक्रियाओं को सामान्य बनाए रखने के लिए पान खाने की परम्परा है।
नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध भात के भोजन करियो।
हमार बात राम से कहियो, जगत् हिये तो जोर से कहियो।
सोअत हिये तो धीरे से कहियो, नीलकंठ तुम नीले रहियो।
!!!! Astrologer Gyanchand Bundiwal. Nagpur । M.8275555557 !!!


Latest Blog

शीतला माता की पूजा और कहानी

 शीतला माता की पूजा और कहानी   होली के बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इसे बसौड़ा पर्व भी कहा जाता है  इस दिन माता श...