Saturday 23 September 2017

नव-नौ दुर्गा उत्सव में जगन-माता आदि शक्ति के नाना अवतारों की आराधना।

नव-नौ दुर्गा उत्सव में जगन-माता आदि शक्ति के नाना अवतारों की आराधना।

नवरात्र दो शब्दों के मेल से बना हैं, 'नव एवं रात्र', 'नव या नौ' शब्द संख्या वाचक हैं तथा 'रात्र' का अर्थ काल विशेष रात्रियों के समूह से हैं। परंपरा के अनुसार, हिन्दुओं में नौ रात्रियों का समूह विशेष वर्ष में चार बार होता हैं, जिस अवधी में शक्ति साधना की जाती हैं। वर्ष में चार बार नवरात्र उत्सव पौष, चैत्र, आषाढ़, अश्विन, प्रतिपद से नवमी तिथि तक मनाया जाता हैं। इन नौ दिनों में सर्व कारण रूपा आदि शक्ति के भिन्न-भिन्न रूपों की पूजा-साधना की जाती हैं, जिन्हें नौ देवियों के नाम से जाना जाता हैं; प्रथम-शैलपुत्री, द्वितीय-ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चन्द्रघण्टा, चतुर्थ-कूष्माण्डा, पंचम-स्कन्दमाता, षष्ठं-कात्यायनी, सप्तम-कालरात्रि, अष्टम-महागौरी, नवमं-सिद्धिदात्री। यह नौ दिन ३-३ दिन युक्त, तीन भागों में विभक्त हैं तथा विभक्त ३ काल अवधि में तीन महा-देवियों की पूजा की जाती हैं। प्रथम तीन दिन की अवधि! प्रतिपद, द्वितीय, तृतीया तिथि महा-लक्ष्मी जी को समर्पित हैं, दूसरी तीन दिन की अवधि चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी तिथि महा-सरस्वती जी को समर्पित हैं तथा अंत के तीन दिन की अवधि सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तिथि महा-काली देवी को समर्पित हैं | शक्ति परायण साधकों हेतु यह नौ दिन तथा रात्रि विशेष महत्त्वपूर्ण हैं, नाना प्रकार की शक्तियां या सिद्धियां को प्राप्त करने हेतु यह नौ दिन तथा रात्रों की काल अवधी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं।
साथ ही नव रात्रों के नौ रात्रियों में आदि शक्ति महामाया के निम्न शक्तिओं की साधना की जाती हैं :
प्रथम रात्रि में दक्षिणा या आद्या काली शक्ति की पूजा की जाती हैं, इसी शक्ति स्वरूप में आदि शक्ति देवी ने मधु-कैटभ नामक दैत्यों का वध कर, ब्रह्मा जी की रक्षा की थीं।
द्वितीय रात्रि, महिष नामक असुर का मर्दन कर, तीनों लोकों को दैत्य-राज के अत्याचार से मुक्त कर, महा-लक्ष्मी या महिषासुरमर्दिनी नाम से विख्यात देवी की पूजा की जाती हैं।
तृतीय रात्रि, शुंभ-निशुम्भ नामक दैत्य भ्राताओं के वध करने वाली महा-सरस्वती स्वरूप की साधना की जाती हैं।
चतुर्थ रात्रि, मथुरा पति कंस के कारगर में भगवान कृष्ण के जन्म धारण के साथ ही गोकुल में यशोदा के गर्भ से योगमाया परा शक्ति देवी ने जन्म धारण किया, चतुर्थ रात्रि में इन्हीं योगमाया शक्ति की साधना की जाती हैं।
पंचम रात्रि, वैप्रचिति नामक असुर के परिवार का नाश करने के हेतु आदि शक्ति माता ने रक्तदंतिका नाम से अवतार धारण किया तथा इन असुरों के वध करने के निमित्त रक्त का पान करती रही, पंचम रात्रि में रक्तदंतिका देवी की पूजा की जाती हैं।
षष्ठम रात्रि, शाकंभरी देवी की पूजा की जाती हैं, दुर्गमासुर नामक दैत्य ने ब्रह्मा जी से समस्त वेदों को आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त कर, लुप्त कर दिया, परिणामस्वरूप पृथ्वी में १०० वर्षों तक वर्षा का लोप हो गया। ऋषि-मुनियों तथा ब्राह्मणों द्वारा सहायता हेतु निवेदन करने पर आदि शक्ति, शाकंभरी नाम से, अपने हाथों में नाना प्रकार के शाक-मूल इत्यादि ले कर प्रकट हुई तथा मानवों की रक्षा की।
सप्तम रात्रि, दुर्गा देवी की पूजा साधना की जाती हैं, इसी रूप में आदि शक्ति दुर्गमासुर नामक दैत्य का वध किया था।
अष्टम रात्रि, में देवी भ्रामरी की पूजा की जाती हैं, जब देवताओं के पत्नियों की सतीत्व नष्ट करने हेतु दानव उद्धत हुए, असंख्य भ्रमरों के रूप में प्रकट हो आदि शक्ति ने अरुण नामक तथा अन्य असुरों का वध किया।
नवम रात्रि, अंतिम रात्रि में देवी चामुंडा की पूजा आराधना की जाती हैं, चण्ड तथा मुण्ड नामक दो दैत्य भ्राताओं के वध करने हेतु आदि शक्ति चामुंडा नाम से विख्यात हैं।Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557

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