Friday 12 December 2014

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र 12 Shiv Jyotirling

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र   

सौराष्टेदेशे विशदेअतिरम्ये ज्योतिर्मयं चंद्रकलावतंसम् । 
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपघे ॥ 1 ॥ 
   https://goo.gl/maps/N9irC7JL1Noar9Kt5   
भावार्थ – जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिये अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र देश (काथियावाड़)- में दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं, चन्द्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है, उन ज्योतिलिङ्ग्स्वरूप भगवान श्री सोमनाथ जी की शरण में जाता हूँ ।
श्रीशैलक्षृङ्गे विबुधातिसङ्गे 
तुलाद्रितुङ्गेअपि मुद्रा वासन्तम् । 
तमर्जुनं      मल्लिकपूर्वमेकं 
नमामि  संसारसमुद्रसेतुम् ॥ 2 ॥ 

भावार्थ – जो ऊँचाई के आदर्शभूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैल के शिखर पर, जहाँ देवताओं का अत्यन्त समागम होता रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास कराते हैं तथा जो संसार-सागर से पार कारने के लिये पुल के समान हैं उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूँ ।
अवन्तिकायां  विहितावतारं 
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् । 
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं 
वन्दे  महाकालमहासुरेशम् ॥ 3॥ 

भावार्थ – संतजनों के मोक्ष देने के लिये जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है, उन महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं अकालमृत्यु से बचाने के लिये नमस्कार करता हूँ ।
कावेरिकानर्मदायो: पवित्रे 
समागमे सज्जनतारणाय । 
सदैव मान्धातृपुरे वसन्त- 
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥4॥ 

भावार्थ – जो सत्यपुरुषों को संसार-सागर से पार उतारने के लिये कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मांधाता के पुर में सदा निवास कराते हैं , उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान् ॐकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ ।
पूर्वोतरे  प्रज्वलिकानिधाने 
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् । 
सुरासुराराधितपादपघं 
श्रीवैधनाथं तमहं नमामि ॥5॥ 

भावार्थ – जो पूर्वोतर दिशा में चिताभूमि (वैधनाथ-धाम) – के भीतर सदा हि गिरिजा के साथ वास करते हैं, देवता और असुर जिनके चरण-कमलों की अराधना करते हैं, उन श्रीवैधनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ ।
याम्ये  सदङ्गे नगरेअतिरम्ये 
विभूषिताङ्ग विविधैक्ष्च भोगै: । 
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकंग 
श्रीनागनाथं शरण प्रपघे ॥6॥ 

भावार्थ – जो दक्षिण के अत्यन्त रमणीय सदंग नगर में विविध भोगों से सम्पन्न होकर सुन्दर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं, जो एकमात्र सद्-भक्ति और मुक्ति को देनेवाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथ की मैं शरण में जाता हूँ । 
महाद्रिपार्श्र्वे च तटे रमन्तं 
संपूज्यमानं सततं मुनीन्द्र/दै: । 
सु रा सु रै र्य क्ष म हो र गा घै : 
केदारमीशं   शिवमेकमीडे ॥7॥ 

भावार्थ – जो महागिरी हिमालय के पास केदारक्षृंग के तटपर सदा निवास करते हुए मनीश्वरों द्वारा पूजित होते हैं तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं, उन एक कल्याणकारक भगवान् केदारनाथ का मैं स्तवन करता हूँ ।
सहयाद्रिशिर्षे  विमले वसन्तं 
गो दा व री ती र प वि त्र दे शे । 
यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं 
प्रयाति तं त्र्यंबकमीशमीडे  ॥ 8 ॥

भावार्थ – जो गोदावरी तट के पवित्र देश में सह्यपर्वत के विमल शिखर पार वास करते हैं, जिनके दर्शन से तुरंत हि पातक नष्ट हो जाता है, उन श्रीत्र्यंबकेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ ।
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे 
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै : । 
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं 
निषेव्यमाणं पिशिताशनैक्ष्च॥9॥ 

भावार्थ – जो भगवान् श्रीरामचन्द्र जी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम पर अनेक बाणों द्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गये हैं, उन श्रीरामेश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ ।
यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे 
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च । 
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं 
तं शंङ्करं भक्तहितं नमामि ॥10॥ 

भावार्थ – जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्त हितकारी भगवान्भीमशंकर को मैं प्राणम करता हूँ । 
सानन्दमानन्दवने वसन्त- 
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् । 
वाराणसीनाथमनाथनाथं 
श्रीविश्वनाथं शरण प्रपघे ॥ 11 ॥ 

भावार्थ –जो स्वयं आनंदकन्द हैं और आनंदपूर्वक आनंदवन (काशीक्षेत्र) मे वास करते हैं, जो पापसमूह के नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथ की शरण में जाता हूँ ।
इलापुरे रम्यविशालकेअस्मिन् 
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्। 
वन्दे महोदारतरस्वभावं 
घृष्णेक्ष्वराख्यं शरणप्रपघे ॥ 12 ॥ 

भावार्थ – जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत् के अराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा हि उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिव की शरण में मैं जाता हूँ ।
ज्योतिर्मयद्वादशलिंगकानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रां पठित्वा मनुजोअतिभक्त्या
फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥13॥
भावार्थ – यदि मनुष्य क्रमश: कहे गये इन बारहों ज्योतिर्मय शिवलिंग के स्तोत्र भक्तिपूर्वक पाठ करे तो इनके दर्शन से होने वाले फल को प्राप्त कर सकता है ।
12 Shiv Jyotirling Mantra :-
Somanath in Saurashtra and Mallikarjunam in Shri-Shail. (सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्).
Mahakaal in Ujjain and Amleshwar in Omkareshwar. (उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्).
Vaidyanath in Paralya and Bhimashankaram in Dakniya. (परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्).
Rameshem (Rameshwaram) in Sethubandh and Nageshem (Nageshwar) in Darauka-Vana. (सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने).
Vishwa-Isham (Vishvanath) in Vanarasi and Triambakam at bank of Gautami River. (वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे)).
Kedar (Kedarnath) in Himalayas and Gushmesh (Gushmeshwar) in Shivalaya (Shiwar). (। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये).
One who recites these Jyotirlingas every evening and morning. (एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।).
He is relieved of all sins committed in past seven lives.(सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति)
One who visits these, gets all his wishes fulfilled (एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति)
(कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः



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