Wednesday 17 December 2014

मंगल दोष अथवा ,,प्रभाव तथा दोष निवारण हेतु सरल उपाय,,,

मंगल दोष अथवा ,,प्रभाव तथा दोष निवारण हेतु सरल उपाय,,,
मंगल दोष एक ऐसी ज्योतिषीय स्थिति है, जो जिस किसी जातक की कुंडली में बन जाये तो उसे बड़ी ही अजीबोगरीब परिस्थिति का सामना करना पड़ता है, खासकर कन्याओ को तो कही जादा....उनके जीवन में या उनके आस पास किसी भी प्रकार की अशुभ घटना को उनसे जोड़ कर देखा जाता है...तरह तरह के ताने दिए जाते है.... आइये समझे के मंगल दोष है क्या....? और बनता कैसे है...?
यह सम्पूर्णत: ग्रहों की स्थति पर आधारित है | वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक के जन्म चक्र के 1, 4, 7, 8 और 12 वे घर में मंगल हो तो ऐसी स्थिति में पैदा हुआ जातक मांगलिक कहा जाता है | यह स्थति विवाह के लिए अत्यंत विनाशकारी और अशुभ मानी जाती है | संबंधो में तनाव व बिखराव, कुटुंब में कोई अनहोनी व अप्रिय घटना, कार्य में बाधा और असुविधा तथा किसी भी प्रकार की क्षति और दंपत्ति की असामायिक मृत्यु का कारण मांगलिक दोष को माना जाता है | ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में एक मांगलिक को दुसरे मांगलिक से ही विवाह करना चाहिए | यदि वर और वधु मांगलिक होते है तो दोनों के मंगल दोष एक दुसरे से के योग से समाप्त हो जाते है | मूल रूप से मंगल की प्रकृति के अनुसार ऐसा ग्रह योग हानिकारक प्रभाव दिखाता है, लेकिन वैदिक पूजा-प्रक्रिया के द्वारा इसकी भीषणता को नियंत्रित कर सकते है | मंगल ग्रह की पूजा के द्वारा मंगल देव को प्रसन्न किया जाता है, तथा मंगल द्वारा जनित विनाशकारी प्रभावों, सर्वारिष्ट को शांत व नियंत्रित कर सकारात्मक प्रभावों में वृद्धि की जा सकती है |
मंगल दोष शांति के विशेष दान ,,,,शास्त्रानुसार लाल वस्त्र धारण करने से व किसी ब्रह्मण अथवा क्षत्रिय को मंगल की निम्न वास्तु का दान करने से जिनमे - गेहू, गुड, माचिस, तम्बा, स्वर्ण, गौ, मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य तथा भूमि दान करने से मंगल दोष दूर होता है | लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल जनित अमंगल दूर होता है |
आइये मंगल दोष शांति के कुछ सरल उपाय जानते है
1,, - चांदी की चौकोर डिब्बी में शहद भरकर हनुमान मंदिर या किसी निर्जन वन, स्थान में रखने से मंगल दोष शांत होता है |
2,, - मंगलवार को सुन्दरकाण्ड एवं बालकाण्ड का पाठ करना लाभकारी होता है |
3,, - बंदरों व कुत्तों को गुड व आटे से बनी मीठी रोटी खिलाएं |
4 ,,- मंगल चन्द्रिका स्तोत्र का पाठ करना भी लाभ देता है |
5 ,,- माँ मंगला गौरी की आराधना से भी मंगल दोष दूर होता है |
6 ,,- कार्तिकेय जी की पूजा से भी मंगल दोष के दुशप्रभाव में लाभ मिलता है |
7,, - मंगलवार को बताशे व गुड की रेवड़ियाँ बहते जल में प्रवाहित करें |
8,, - आटे की लोई में गुड़ रखकर गाय को खिला दें |
9 ,,- मंगली कन्यायें गौरी पूजन तथा श्रीमद्भागवत के 18 वें अध्याय के नवें श्लोक का जप अवश्य करें |
10,, - मांगलिक वर अथवा कन्या को अपनी विवाह बाधा को दूर करने के लिए मंगल यंत्र की नियमित पूजा अर्चना करनी चाहिए।
11 ,,- मंगल दोष द्वारा यदि कन्या के विवाह में विलम्ब होता हो तो कन्या को शयनकाल में सर के नीचे हल्दी की गाठ रखकर सोना चाहिए और नियमित सोलह गुरूवार पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाना चाहिए |
12,, - मंगलवार के दिन व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से व हनुमान जी को सिन्दूर एवं चमेली का तेल अर्पित करने से मंगल दोष शांत होता है |
13 ,,- महामृत्युजय मंत्र का जप हर प्रकार की बाधा का नाश करने वाला होता है, महामृत्युजय मंत्र का जप करा कर मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक व दांपत्य जीवन में मंगल का कुप्रभाव दूर होता है |
14,,,- यदि कन्या मांगलिक है तो मांगलिक दोष को प्रभावहीन करने के लिए विवाह से ठीक पूर्व कन्या का विवाह शास्त्रीय विधि द्वारा प्राण प्रतिष्ठित श्री विष्णु प्रतिमा से करे, तत्पश्चात विवाह करे |
15,,, - यदि वर मांगलिक हो तो विवाह से ठीक पूर्व वर का विवाह तुलसी के पौधे के साथ या जल भरे घट (घड़ा) अर्थात कुम्भ से करवाएं।
16,,, - यदि मंगली दंपत्ति विवाहोपरांत लालवस्त्र धारण कर तांबे के पात्र में चावल भरकर एक रक्त पुष्प एवं एक रुपया पात्र पर रखकर पास के किसी भी हनुमान मन्दिर में रख आये तो मंगल के अधिपति देवता श्री हनुमान जी की कृपा से उनका वैवाहिक जीवन सदा सुखी बना रहता है |
मांगलिक दोष का परिहार
मांगलिक दोष के परिणाम: जन्मपत्रिका में मांगलिक दोष विवाह संबंधी परेशानियां जैसे विलंब, मुश्किल, गलतफहमी आदि का संकेत है। यह वैवाहिक जीवन में भी आने वाली परेशानियों का संकेत है। मांगलिक दोष का परिहार: (
1) वर-वधू दोनों की कुण्डली में मांगलिक दोष होने से मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।
(2) दूसरे भाव में मंगल यदि मिथुन या कन्या में हों तो भी मंगल दोष का निवारण हो जाता है।
(3) यदि द्वादश भाव में वृषभ और तुला के मंगल हों तो मंगल दोष का निवारण हो जाता है।
(4) चतुर्थ में मेष या वृश्चिक के मंगल हों तो भी परिहार होता है।
(5) सप्तम भाव में मकर या कर्क राशि में मंगल मांगलिक दोष का परिहार करते हैं।
(6) अष्टम भाव में यदि धनु या मीन राशि में मंगल हों।
(7) कुंभ, सिंह और कर्क राशि में होने पर मंगल का किसी प्रकार का दोष नहीं होता।
(8) बृहस्पति या चन्द्रमा का मंगल से युति करना भी मांगलिक दोष का परिहार करता है।
(9) अस्त मंगल किसी भी प्रकार का दोष उत्पन्न नहीं करते। शास्त्रों के अनुसार कुज दोष का परिहार पूरी तरह नहीं हो सकता केवल कम हो सकती है। यह शोध का विषय है।
कन्या की कुंडली मै मांगलिक दोष का परिहार नही हो रहा हो तो उपाय के रूप मे कन्या का प्रथम विवाह \सात फेरे किसी घट (घडे) या पीपल के वृक्ष साथ कराए जाने का विधान है ।इस प्रकार के उपाय के पीछे तर्क यह है कि मंगली दोष का मारक प्रभाव उस घट या वृक्ष पर होता हे ,जिससे कन्या का प्रथम विवाह किया जाता है । वर दूसरा पति होने के कारण उस प्रभाव से सुरक्षित रह जाता है ॥घट विवाह शुभ विवाह मुहूर्त और शुभ लग्न मे पुरोहित द्वारा सम्पन्न कराया जाना चाहिये । कन्या का पिता पूर्वाभिमुख बैठकर अपने दाहिने तरफ कन्या को बिठाऐ॥ कन्या का पिता घट विवाह का सकल्प ले ।नवग्रह,गौरी गणेशादि का पूजन ,शांति पाठ इत्यादि करे ।घट कि षोडषोचार से पूजा करे ।शाखोचार,हवन,सात फेरे और विवाह कि अन्य रश्म निभाये ।बाद मे कन्या घट को उठाकर ह्र्दय से सटाकर भुमि पर छोड दे जिससे घट फूट जाये ।इसके बाद देवताओ का विसर्जन करे और ब्राह्मणो को दक्षिणा दे बाद मे चिरंजीवी वर से कन्या का विवाह करे॥ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,
यदि कन्या मांगलिक है तो मांगलिक दोष को प्रभावहीन करने के लिए विवाह से ठीक पूर्व कन्या का विवाह शास्त्रीय विधि द्वारा प्राण प्रतिष्ठित श्री विष्णु प्रतिमा से करे, तत्पश्चात विवाह करे |
15 – यदि वर मांगलिक हो तो विवाह से ठीक पूर्व वर का विवाह तुलसी के पौधे के साथ या जल भरे घट (घड़ा) अर्थात कुम्भ से करवाएं।
16 – यदि मंगली दंपत्ति विवाहोपरांत लालवस्त्र धारण कर तांबे के पात्र में चावल भरकर एक रक्त पुष्प एवं एक रुपया पात्र पर रखकर पास के किसी भी हनुमान मन्दिर में रख आये तो मंगल के अधिपति देवता श्री हनुमान जी की कृपा से उनका वैवाहिक जीवन सदा सुखी बना रहता है |
मंगल दोष शांति के विशेष दान :-
शास्त्रानुसार लाल वस्त्र धारण करने से व किसी ब्रह्मण अथवा क्षत्रिय को मंगल की निम्न वास्तु का दान करने से जिनमे – गेहू, गुड, माचिस, तम्बा, स्वर्ण, गौ, मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य तथा भूमि दान करने से मंगल दोष दूर होता है | लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल जनित अमंगल दूर होता है |
मंगल के लिए वैदिक मंत्र | ॐ अग्निमूर्धादिव: ककुत्पति: पृथिव्यअयम। अपा रेता सिजिन्नवति ।
मंगल के लिए तांत्रोक्त मंत्र | ॐ हां हंस: खं ख:
ॐ हूं श्रीं मंगलाय नम:
ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
मंगल का नाम मंत्र | ॐ अं अंगारकाय नम: ॐ भौं भौमाय नम:"
मंगल का पौराणिक मंत्र ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम । कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम ।।
मंगल गायत्री मंत्र | ॐ क्षिति पुत्राय विदमहे लोहितांगाय धीमहि-तन्नो भौम: प्रचोदयात
मंगल का विचार करना
लग्ने व्यये च पाताले यामित्रे चाष्टमे कुजे . कन्या भर्तु विनाशाय भर्तु कन्या विनाशकृत ॥
जन्म लग्न मे (1,4,7,8,12)स्थानो मंगल होने से वर – कन्या मंगली होते है॥
मंगल दोष के परिहार
मांगलिक कुंडलियो मे दो तरह के परिहार मिलते है। (1) स्वय की कुंडली मे-जैसे शुभ ग्रहो का केन्द्र मे होना,शुक्र द्वितीय भाव मे हो,गुरू मंगल साथ हो या मंगल पर गुरू की दृष्टिे हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है। (2) वर-कन्या की कुन्डली मे आपस मांगलिक दोष का काट –जैसे एक के मांगलिक स्थान मे मंगल हो और दूसरे के इन्ही स्थानो मे सूर्य,शनि,राहु,केतु मे से कोई एक ग्रह हो तो दोष नष्ट हो जाता है।पापक्रांत शुक्र और सप्तम भाव के स्वामी की नेष्ट स्थिति को भी मंगल तुल्य ही समझे।मंगल दोष परिहार के कुछ शास्त्र वचन निम्न प्रकार है।इनके आधार पर यदि मांगलिक दोष भंग हो जाता है तो विवाह के बाद उनका दाम्पत्य जीवन सुख और प्रसन्नता पूर्वक व्यतीत होगा॥
अंजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके कुजे। वृषे जाए घटे रन्ध्रे भौमदोषो न विद्यते॥
मेष का मंगल लग्न मे, धनु का द्वादश भाव मे वृश्चिक का चौथे भाव मे,वृष का सप्तम मे कुम्भ का आठवे भाव मे हो तो भौम दोष नही रहता ॥
अर्केन्दु क्षेत्रजातां कुज दोषो न विद्यते । स्वोच्चमित्रभ जातानां तद् दोषो न विद्यते ॥
सिंह लग्न और कर्क लग्न मे भी लग्नस्थ मंगल का दोष नही होता है
नीचस्थो रिपुराशिस्थः खेटो भाव विनाशकः । मूलस्वतुंगा मित्रस्था भावबृद्धि करोत्यलमः ॥
कुंडली मे मंगल यदि स्व-राशि (मेष,बृश्चिक )मूलत्रिकोण,उच्चराशि (मकर)मित्र राशि (सिंह,धनु,मीन )मे हो तो भौम दोष नही रहता है शनि भौमोथवा कश्चित्पापो वा तादृशो भवेत् । तेष्वेव भवनेष्वेव भौम दोष विनाशकृत ॥
शनि मंगल या कोई भी पाप ग्रह जैसे राहु,सूर्य,केतु अगर मंगलिक भावो(1,4,7,8,12)मे कन्या कि कुंडली हो और उन्ही भावो मे वर के भी हो तो भौम दोषनष्ट होता है ।यानि यदि एक कुंडली मे मांगलिक स्थान मे मंगल हो तथा दूसरे की मे इन्ही स्थानो मे शनि,सूर्य,मंगल,राहु,केतु मे से कोई एक ग्रह हो तो उअस दोष को काटता है।
केन्द्रे कोणे शुभाढ्याश्चते् च त्रिषडा़येप्य सद्ग्रहाः । तदा भौमस्य दोषो न मदने मदपस्तथा ॥
यानी 3,6,11वे भावो मे अशुभ ग्रह हो और केन्द्र (1,4,7,10)व त्रिकोण (5,9) मे शुभ ग्रह हो,सप्तमेष सातवे भाव मे हो तो मंगल दोष नही रहता है ।
वाचस्पतौ नवपंच केन्द्र संस्थे जातांगना भवति पूर्णविभूतियुक्ता । साध्वी सुपुत्रजननी सुखिनीगुढ्यां सप्ताष्टके यदि भवेदशुभ ग्रहोपि ॥
कन्या की कुंडली मे गुरू यदि केन्द्र या त्रिकोण मे हो तो मांगलिक दोष नही लगता अपितु उसके सुख-सौभाग्य को बढाने वाला होता है । त्रिषट्‍ एकादशे राहु त्रिषड़कादशे शनिः। त्रिषड़कादशे भौमः सर्वदोष विनाशकृतः॥
यदि एक कुंडली मे मांगलिक योग हो और दूसरे कि कुंडली के (3,6,11)वे भाव मे से किसी भाव मे राहु ,मंगल या शनि मे से कोई ग्रह हो तो मांगलिक दोष नष्ट हो जाता है ।
द्वितीय भौमदोषस्तु कन्यामिथुन योर्विना, चतुर्थ कुजदोषःस्याद्‍ तुलाबृषभयोर्विना। अष्टमो भौमदोषस्तु धनु मीनद्व योर्विना, व्यये तु कुजदोषःस्याद् कन्यामिथुन योर्विना॥
द्वितीय भाव मे यदि बुध राशि (मिथुन,कन्या) का मंगल हो तो मांगलिक दोष नही लगेगा ऐसा बृष व सिंह लग्न की कुंडली मे ही होगा ।चतुर्थ भाव मे शुक्र राशि (बृष,तुला) का मंगल दोषकृत नही है, ऐसा कर्क व कुम्भ लग्न मे होगा।अष्टम भाव मे गुरू राशि (धनु,मीन) का मंगल दोष पैदा नही करेगा ।ऐस बृष और सिंह लग्न मे ही सम्भव है और बारहवे भाव मे मंगल का दोष बुध कि राशि (मिथुन,कन्या) मे नही होगा ।ऐसा कर्क और तुला लग्नो मे ही होगा तथा 1,4,7,8,12 वे भाव मे मंगल यदि चर राशि मेष कर्क ,तुला और मकर मे हो तो भी मांगलिक दोष नही लगता है
भौमेन सदृषो भौमः पापोवा तादृशो भवेत। विवाह शुभदः प्रोक्ततिश्चरायुः पुत्र पौत्रदः ॥
मंगल के समान ही कोई पापग्रह (सूर्य,शनि,राहु,केतु) दूसरे कि कुंडली के मांगलिक स्थान मे हो तो दोनो का विवाह करना चाहिए ,ऐसे दाम्पत्ति आयु,पुत्र,पौत्रादि से सम्पन्न होकर सुखी जीवन व्यतीत करेगे । यामित्रे च यदा सौरि लग्ने वा हिबूकेथवा । अष्टमे द्वादशे चैव- भौम दोषो न विद्यते
जिस वर –कन्या के (1,4,7,8,12) इन स्थनो मे शनि हो तो मंगली दोष मिट जाता ह
गुरु भौम समायुक्तश्च भौमश्च निशाकरः केन्द्रे वा वर्तते चन्द्र एतद्योग न मंगली । गुरु लग्ने त्रिकोणेवा लाभ स्थाने यदा शनिः, दशमे च यदा राहु मंगली दोष नाश कृत॥
गुरु भौम के साथ पडने से अथवा चन्द्रमा भौम एक साथ और केन्द्र मे (1,4,7,10) इन स्थानो मे चन्द्रमा होवे तो भी मंगली दोष मिट जाता है , जिसके लग्न मे गुरु बैठा हो अथवा त्रिकोण स्थान (5,9) मे गुरु बैठा और 11 भाव शनि हो 10 वे स्थान राहु बैठा हो तो भी मंगली दोष मिट जाता है ॥

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