Monday, 29 December 2014

शुभ रात्रि हे जगन्नाथ!जग के प्यारे! हे देवकीनंदन! जगत -प्रिये

शुभ रात्रि  हे जगन्नाथ!जग के प्यारे! हे देवकीनंदन! जगत -प्रिये! हे पुरुषोत्तम!हे नीलांजन! हे मुरली मनोहर! निर्मल मन! हे बालसखा! हे पद्मनाभ! हे दामोदर! निर्मल स्वाभाव! सुन लो मेरी तुम करुण पुकार जीवन को दो नूतन आधार हर लो मन का तुम शोक हरि माधव-मुकुंद,तुम गिरधारी। हे राधा-वल्लभ! राजगोपाल! मैं शरण गहूँ इस दुःख के काल! हे जगतगुरु ! वैकुंठनाथ! सब कुछ तो है,बस तुम हो साथ हे आदिदेव! अत्च्युत,अचल! है शीश झुका,हैं नेत्र सजल हे आनंद सागर,अनंतजीत! बन जाओ बस तुम मन के मीत हे ज्ञानेश्वर,हे कमलनयन!हे योग्योगेश्वर!मनमोहन!हे पारब्रह्म!हे परमात्मन!भिक्षा में दो भक्ति सघन हे सत्यसनातन सर्वेश्वर!तुम ही हो जग के परमेश्वर हे हिरण्य गर्भे अनंतजीत! तुझसे लगी है जीवन की प्रीत हे केशव,कुंज, बिहारी,ईश है गुरु दक्षिणा,मेरा शीश हे प्राणप्रिये,हे मधुसुदन बस आन बसों अब मेरे मन

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