Saturday 2 December 2017

त्रिपुर भैरवी जयंती,

त्रिपुर भैरवी जयंती,,मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन ‘त्रिपुर भैरवी जयंती’ मनाई जाती है। इस दिन माँ त्रिपुर भैरवी की उत्पत्ति हुई थी। माँ त्रिपुर भैरवी की उपासना से मनुष्य सभी भव बंधनों से मुक्त हो जाता है। इसलिए इनकी उपासना को ‘भव-बन्ध-मोचन’ कहा जाता है। माँ त्रिपुर भैरवी की उपासना से सफलता एवं सुख-संपदा की प्राप्ति होती त्रिपुर भैरवी जयंती 3 दिसंबर 2017 के दिन मनाई जाएगी।

देवी महाकाली के उग्र और सौम्य दो रुपों में अनेक रुप धारण करने वाली दस महा,विद्याएँ हुई हैं। इनके किसी भी स्वरुप की साधना साधक को सार्थक कर देती है। माँ का स्वरूप सृष्टि के निर्माण और संहार के क्रम को जारी रखे हुए है। माँ भैरवी के विभिन्न स्वरूपों में से एक हैं, ‘माँ त्रिपुर भैरवी’। इन्हें ऊर्ध्वान्वय की देवी माना गया है। माँ त्रिपुर भैरवी में तमोगुण एवं रजोगुण दोनों ही समाहित हैं। माँ त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किये हुए हैं। माँ की चार भुजाएं हैं, ऊपरी दायां हाथ वरद मुद्रा (वरदान देने की मुद्रा) में है और बायें हाथ में रुद्राक्ष की माला है। निचला दायां हाथ अभय मुद्रा में है और बायें हाथ में पुस्तक है। माँ ने लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं, इसी कारण माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग किया जाना विशेष रूप से लाभदायक माना जाता है।
त्रिपुर भैरवी अवतरण कथा...नारद-पाञ्चरात्र’ के अनुसार, एक बार देवी काली के मन में आया कि वह पुनः अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें तो वे अन्तर्धान हो गईं। भगवान् शिव देवी को अपने समक्ष न पाकर व्याकुल हो उठे और उन्हें खोजने लगे। उन्होंने महर्षि नारद से देवी के विषय में पूछा। तब नारद मुनि बोले ,,“प्रभु, देवी शक्ति के दर्शन आपको सुमेरु के उत्तर में हो सकते हैं, वहीं देवी की प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात संभव हो सकेगी।” तब भोलेनाथ की आज्ञानुसार महर्षि नारद उस स्थान पर पहुँचे और देवी शक्ति के समक्ष भगवान् शिव के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव सुनकर देवी क्रोधित हो गईं और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह की उत्पत्ति हुई और उससे छाया,विग्रह “त्रिपुर.भैरवी” का प्राकट्य हुआ।
त्रिपुर भैरवी मंत्र , “हंसै हसकरी हसै” और “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः” के जाप एवं उच्चारण द्वारा सभी प्रकार के कष्ट एवं संकटों का नाश हो जाता है। सच्ची निष्ठा और भक्ति,भाव से मन्त्र.जप, पूजा, होम आदि करने से भगवती त्रिपुर भैरवी प्रसन्न होती हैं, और उनकी प्रसन्नता से साधक की समस्त मनोकामनाएं भी पूर्ण हो जाती हैं।
माँ का स्वरूप सृष्टि के निर्माण और संहार क्रम को जारी रखे हुए है. माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं. माँ भैरवी के अन्य तेरह स्वरुप हैं इनका हर रुप अपने आप अन्यतम है. माता के किसी भी स्वरुप की साधना साधक को सार्थक कर देती है. माँ त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किये हुए हैं. माँ ने अपने हाथों में माला धारण कर रखी है. माँ स्वयं साधनामय हैं उन्होंने अभय और वर मुद्रा धारण कर रखी है जो भक्तों को सौभाग्य प्रदान करती है. माँ ने लाल वस्त्र धारण किया है, माँ के हाथ में विद्या तत्व है. माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग किया जाना लाभदायक है.
भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि. त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं. भागवत के अनुसार महाकाली के उग्र और सौम्य दो रुपों में अनेक रुप धारण करने वाली दस महा-विद्याएँ हुई हैं. भगवान शिव की यह महाविद्याएँ सिद्धियाँ प्रदान करने वाली होती हैं.
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