Sunday 17 December 2017

श्री शिव रुद्राष्टकम हिंदी shri Shiv Rudrashtakam Hindi

श्री शिव रुद्राष्टकम हिंदी shri Shiv Rudrashtakam Hindi
नमामीशमीशान निर्वाणरूपम्।
विभुम् व्यापकम् ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजम् निर्गुणम् निर्विकल्पम् निरीहम्।
चिदाकाशमाकाशवासम् भजेऽहम् ॥१॥

निराकारमोङ्कारमूलम् तुरीयम्।
गिराज्ञानगोतीतमीशम् गिरीशम्।
करालम् महाकालकालम् कृपालम्।
गुणागारसंसारपारम् नतोऽहम् ॥२॥
तुषाराद्रिसङ्काशगौरम् गभीरम्।
मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारुगङ्गा।
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥३॥
चलत्कुण्डलम् भ्रूसुनेत्रम् विशालम्।
प्रसन्नाननम् नीलकण्ठम् दयालम्।
मृगाधीश चर्माम्बरम् मुण्डमालम्।
प्रियम् शङ्करम् सर्वनाथम् भजामि ॥४॥
प्रचण्डम् प्रकृष्टम् प्रगल्भम् परेशम्।
अखण्डम् अजम् भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रयः शूलनिर्मूलनम् शूलपाणिम्।
भजेऽहम् भवानीपतिम् भावगम्यम् ॥५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी।
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारि।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारि।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि ॥६॥
न यावद् उमानाथपादारविन्दम्।
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखम् शान्ति सन्तापनाशम्।
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥७॥
न जानामि योगम् जपम् नैव पूजाम्।
नतोऽहम् सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानम्।
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥८॥
रुद्राष्टकमिदम् प्रोक्तम् विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषाम् शम्भुः प्रसीदति॥
॥ इति श्री रुद्राष्टकम् सम्पूर्णम् ॥

हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित), गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ।॥१॥

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।॥२॥

जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।॥३॥

जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ।॥४॥

प्रचण्ड (रुद्र रूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दु:खों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ।॥५॥

कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत(प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।॥६॥

हे पार्वती के पति, जबतक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इसलोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है। अत: हे समस्त जीवों के अंदर (हृदय में) निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये।॥७॥

मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। हे प्रभो, बुढ़ापा व जन्म [मृत्यु] दु:खों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें। हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।॥८॥
,,,,Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557
भगवान रुद्र का यह अष्टक उन शंकर जी की स्तुति के लिये है। जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं, श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं।

Latest Blog

शीतला माता की पूजा और कहानी

 शीतला माता की पूजा और कहानी   होली के बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इसे बसौड़ा पर्व भी कहा जाता है  इस दिन माता श...