Sunday, 26 May 2013

वामन का स्वण धारण किया।


देवताओं की कार्य सिद्धि के लिये भगवान ने वामन का स्वण धारण किया। इसलिये यह पुराण वामन पुराण कहलाया। वामन के दो अर्थ हैं, पहला-ब्राह्मण एवं दूसरा-छोटा, अर्थात् बावन उंगल। भगवान ने ब्राह्मण बालक का बौना स्वरूप बनाया इसलिये वे वामन कहलाये। वामन पुराण में 10 हजार श्लोक तथा दो भाग - पूर्व भाग एवं उत्तर भाग हैं। जिसमें से वर्तमान में केवल एक भाग पूर्व भाग ही प्राप्त होता है। जिसमें 6 हजार श्लोकों का वर्णन है।
पुराने समय की बात है जब राजा बलि ने स्वर्ग पर आक्रमण कर न केवल स्वर्ग पर अपितु पूरे त्रिलोकी को अपने अधीन कर लिया। देवराज इन्द्र व समस्त देवता स्वर्ग से भयभीत होकर भागते हुये गुरू बृहस्पति के पास पहूँचे एवं अपना पूरा हाल सुनाया। गुरू बृहस्पति ने बताया कि बलि को भृगुवंशाी ब्राह्ममणों ने अजेय बना दिया है। लेकिन जब भी वह अपने गुरू का अपमान करेगा तब वह अपने परिवार के साथ पाताल लोक को चला जायेगा, तब तक तुम प्रतीक्षा करो।
देवगण निराशा होकर माता अदिती की शरण में आये। माता अदिति महर्षि कश्यप की धर्मपत्नी हुयी। माता अदिति ने महर्षि कश्यप से एक बुद्धिमान पुत्र की कामना की तत्पश्चात् महर्षि कश्यप ने माता अदिति को पयोव्रत नामक व्रत बताया और कहा कि इस व्रत को करने से तुम्हें नारायण के समान तेजस्वी पुत्र प्राप्त होगा। माँ अदिति ने फाल्गुन मास में बड़ी श्रद्धा व नियम से इस व्रत को किया। जिसके प्रभाव से भाद्र पद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि श्रवण नक्षत्र अविचित मुहुर्त की पावन मंगलमय बेला पर भगवान विष्णु माता अदिति के सामने प्रकट हो गये। उनका यह स्वरूप बड़ा अलौकिक था। उनकी चार भुजायें थी। जिसमें शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किये हुये थे। शरीर पीताम्बरी शोभायमान हो रहा था। गले में वनमाला सुशोभित हो रही थी। माँ अदिति ने भगवान को प्रणाम किया और बालक का स्वरूप धारण करने को कहा। तब भगवान ने वटोवामन का स्वरूप धारण कर लिया और वामन स्वरूप धारण कर बलि महाराज के यज्ञ-मण्डप पर जा पहूँचे।
भगवान वामन का शरीर बड़ा सुन्दर लग रहा था। छोटा-सा उनका शरीर केवल लंगोट धारण किये हुये है, एक हाथ में छाता है, एक हाथ में कमण्डलु है। कान्धे में जनेऊ धारण किया है, पाँव में खड़ाऊ हैं। इतना सुन्दर स्वरूप देखकर बलि महाराज बड़े गदगद होने लगे एवं कहा इतना तेजस्वी ब्राह्मण तो मैंनें अपने जीवन में कभी नहीं देखा। और आकर भगवान के चरणों में गिर पड़े व कहने लगे, ‘‘ब्राह्मण देव, मेरे यहाँ यज्ञ चल रहा है। इस अवसर मैं आपको दान करना चाहता हूँ। आप कुछ भी माँग लीजिये। तब भगवान बोले हे राजन, मुझे धन-सम्पदा कुछ नहीं चाहिये। यदि देना चाहते हो तो मुझे केवल तीन पग भूमि मेरे पाँव से नाप कर दे दीजिये।
गजाश्व भूहिरण्यादि तदार्थिभ्यः प्रद्रीयताम्।
एतावतां त्वहं चार्थी देहि राजन् पदत्रयम्।।
भगवान वामन के कहने पर बलि ने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प लिया। तब भगवान ने विराट स्वरूप धारण कर दो पगों में ही पूरे त्रिलोक को नाप लिया एवं तीसरे पग के पूर्ण न होने पर सर्वव्यापी भगवान विष्णु बलि के निकट आकर क्रोधवश बलि से बोले, हे बलि, अब तुम ऋणी हो गये हो क्योंकि तुमने तीन पग भूमि देने का संकल्प लिया है और मुझे केवल दो पग ही भूमि दे पाये हो, बताओ तीसरा पग कहाँ रखूँ?
तब बलि ने कहा प्रभु, अभी आपने मेरे धन और राज्य ही को तो नापा है, आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजियेगा। भगवान के नेत्रों से आँसू छलक आये, और बलि से बोले मैं तुम से बहुत प्रसन्न हूँ और आर्शीवाद दिया, तुम अपने पूरे परिवार के साथ सुतल लोक में एक कल्प तक राज्य करो। मैं वहाँ सदा तुम्हें दर्शन देता रहूँगा। भगवान ने दैत्य राज बलि को पुत्र-पत्नी सहित वहाँ से विदा किया और देवताओं को स्वर्ग का राज्य वापिस दिलवाया।
वामन पुराण में भगवान की बहुत सी लीलायें हैं। प्रह्लाद तथा श्रीदामा आदि भक्तों के अद्भूत चरित्रों का वर्णन है तथा सुदर्शन चक्र की कथा, जीमूत वाहन आख्यान, कामदेव दहन, गंगा महत्तम्, ब्रह्मा का मस्तिष्क छेदन, प्रह्लाद एवं भगवान नारायण का युद्ध इत्यादि कथाओं का श्रवण करने से जीव के सिर से समस्त पाप दूर हो जाते हैं।
वामन पुराण कथा सुनने का फल:-
वामन पुराण की कथा सुनने से स्वाभाविक पूण्य लाभ तथा अन्तःकरण की शुद्धि हो जाती है। साथ ही मनुष्य को ऐहिक और पारलौकिक हानि-लाभ का भी यर्थाथ ज्ञान हो जाता है। जीवन से घोर सन्ताप्त को मिटाने वाली अशान्ति, चिन्ता, पाप एवं दुर्गति को दूर करने वाली तथा मोक्ष को प्रदान करने वाली यह अद्भूत वामन पुराण की कथा है।..
'Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.

नृसिंह जयंती ,, नरसिंह जयंती,,, Narasimha Jayanthi


 नृसिंह जयंती,पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी पावन दिवस को भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में अवतार लिया था. जिस कारणवश यह दिन भगवान नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम और हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है. भगवान नृसिंह जयंती की कथा इस प्रकार से है-कथानुसार अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए राक्षसराज हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न कर उनसे अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया. उसने बरदान में माँगा कि उसे कोई मनुष्य या देवता राक्षस या फिर जानबर न मार सके, उसकी मृत्यु न दिन में हो न रात में,नाग, असुर, गन्धर्व, किन्नर आदि से अभय मिले, ऐसा वरदान प्राप्त करते ही अहंकारवश वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा और उन्हें तरह-तरह के यातनाएं और कष्ट देने लगा. उसने ये घोषणा कर ली कि वो स्वम भगवान है, आज से सभी उसकी पूजा करेंगे और उसे भगवान् न मानने वाले को मिलेगा कठोर दंड, हिरण्यकशिपु नें ऋषि मुनियों सहित सभी ईश्वर भक्तों पर अत्याचार शुरू भी कर दिये, जिससे प्रजा अत्यंत दुखी रहती थी. इन्हीं दिनों हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु गर्भवती हुई और उनहोंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रहलाद रखा गया. राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी बचपन से ही श्री हरि भक्ति से प्रहलाद को गहरा लगाव था. हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद का मन भगवद भक्ति से हटाने के लिए कई असफल प्रयास किए तरह तरह की कठोर यातनाएं दी, पर्वत पर से फिकवा दिया, हाथियों से कुचलवाना चाहा,कारागार और कालकोठरी का भय दिखाने का प्रयास भी किया, परन्तु वह सफल नहीं हो सका. एक बार उसने अपनी बहन होलिका की सहायता से उसे अग्नि में जलाने के प्रयास किया, परन्तु प्रहलाद पर भगवान की असीम कृपा होने के कारण उहोलिका तो जल गयी लेकिन प्रल्हाद सुरक्षित रहे, अंततः एक दिन अत्यंत क्रोधित हो कर हिरण्यकशिपु नें स्वयं अपने दरवार में प्रहलाद को तलवार से मारने का प्रयास किया, तब भगवान नृसिंह पापी के विनाश के लिए और अपने भक्त की रक्षा के लिए महल में ही स्थित खम्भे से प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और अपने भक्त की रक्षा की. शास्त्रों के अनुसार इस दिन यदि कोई व्रत रखते हुए श्रद्धा और भक्तिपूर्वक भगवान नृसिंह की सेवा-पूजा करता है तो वह सभी जन्मों के पापों से मुक्त होकर पृथ्वी पर अपनी मनोकामनाओं को पूरा करते हुये, प्रभु के परमधाम को प्राप्त करता है. नरसिंह भगवान को उग्रवीर भी कहा जाता है, जो भी भगवान् नरसिंह जी की भक्ति पूजा करता है भगवान् स्वयं उन भक्तों की रक्षा करते हैं, उन्हें जीवन में कोई आभाव रह ही नहीं सकता, शत्रु स्वमेव नष्ट हो जाते हैं, रोग शोक पास भी नहीं फटकते, जीवन सुखमय हो जाता है, तो वो शुभ घडी आ गयी है जब आप भगवान नरसिंह को प्रसन्न कर कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं और पूरी कर सकते हैं जीवन की बड़ी से बड़ी इच्छा
भगवान् नरसिंह की उपासना सौम्य रूप में करनी चाहिए
भगवान नरसिंह के प्रमुख 10 रूप है १) उग्र नरसिंह २) क्रोध नरसिंह ३) मलोल नरसिंह ४) ज्वल नरसिंह ५) वराह नरसिंह ६) भार्गव नरसिंह ७) करन्ज नरसिंह ८) योग नरसिंह ९) लक्ष्मी नरसिंह १०) छत्रावतार नरसिंह/पावन नरसिंह/पमुलेत्रि नरसिंह
दस नामों का उच्चारण करने से कष्टों से मुक्ति और गंभीर रोगों के नाश में लाभ मिलाता है
उनकी प्रतिमा या चित्र की विधिबत पूजा सभी कष्टों का नाश करती है
भगवान नरसिंह जी की पूजा के लिए गूगल,जटामांसी, फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम केसर, नारियल, अक्षत व पीताम्बर रखें
गंगाजल, काले तिल, शहद, पञ्च गव्य, व हवन सामग्री का पूजन में प्रयोग सकल लाभ देता है
मूर्ती या चित्र को लकड़ी के बाजोट या पटड़े पर वस्त्र बिछा कर स्थापित करना चाहिए अखंड दीपक की स्थापना मूर्ती की दाहिनी और करनी चाहिए
भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नरसिंह गायत्री मंत्र का जाप करें
ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्ण दंष्ट्राय धीमहि |तन्नो नरसिंह प्रचोदयात ||
पांच माला के जाप से आप पर भगवान नरसिंह की कृपा होगी
इस महा मंत्र के जाप से क्रूर ग्रहों का ताप शांत होता है
कालसर्प दोष, मंगल, राहु ,शनि, केतु का बुरा प्रभाव नहीं हो पाटा
एक माला सुबह नित्य करने से शत्रु शक्तिहीन हो जाते हैं
संध्या के समय एक माला जाप करने से कवच की तरह आपकी सदा रक्षा होती है
यज्ञ करने से भगवान् नरसिंह शीघ्र प्रसन्न होते हैं
जो बिधि-विधान से पूजा नहीं कर पाते और जो मनो कामना पूरी करना चाहते है, उन्हें बीज मंत्र द्वारा साधना करनी चाहिए
)संपत्ति बाधा नाशक मंत्र
यदि आपने किसी भी तरह की संपत्ति खरीदी है गाड़ी, फ्लेट, जमीन या कुछ और उसके कारण आया संकट या बाधा परेशान कर रही है तो संपत्ति का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान नरसिंह या विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें
धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें
सात दिये जलाएं
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें
मंत्र-ॐ नृम मलोल नरसिंहाय पूरय-पूरय
मंत्र जाप संध्या के समय करने से शीघ्र फल मिलता है
2)ऋण मोचक नरसिंह मंत्र
है यदि आप ऋणों में उलझे हैं और आपका जीवन नरक हो गया है, आप तुरंत इस संकट से मुक्ति चाहते हैं तो ऋणमोचक नरसिंह मंत्र का जाप करें
भगवान नरसिंह की प्रतिमा का पूजन करें
पंचोपचार पूजन कर फल अर्पित करते हुये प्रार्थना करें
मिटटी के पात्र में गंगाजल अर्पित करें
हकीक की माला से छ: माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें
मंत्र-ॐ क्रोध नरसिंहाय नृम नम:
रात्रि के समय मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
3)शत्रु नाशक नरसिंह मंत्र
यदि आपको कोई ज्ञात या अज्ञात शत्रु परेशान कर रहा हो तो शत्रु नाश का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें
धूप दीप पुष्प सहित जटामांसी अवश्य अर्पित कर प्रार्थना करें
चौमुखे तीन दिये जलाएं
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें
मंत्र-ॐ नृम नरसिंहाय शत्रुबल विदीर्नाय नमः
रात्री को मंत्र जाप से जल्द फल मिलता है
4)यश रक्षक मंत्र
यदि कोई आपका अपमान कर रहा है या किसी माध्यम से आपको बदनाम करने की कोशिश कर रहा है तो यश रक्षा का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान नरसिंह जी की प्रतिमा का पूजन करें
कुमकुम केसर गुलाबजल और धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें
सात तरह के अनाज दान में दें
हकीक की माला से सात माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें
मंत्र-ॐ करन्ज नरसिंहाय यशो रक्ष
संध्या के समय किया गया मंत्र शीघ्र फल देता है

अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्


अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्,,आदिलक्ष्मी सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवि चन्द्र सहोदरि हेममये मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायिनि मञ्जुळभाषिणि वेदनुते पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद्गुणवर्षिणि शान्तियुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि सदा पालय माम् १ धान्यलक्ष्मी अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि वैदिकरूपिणि वेदमये क्षीरसमुद्भव मङ्गलरूपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम् २ धैर्यलक्ष्मी जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते भवभयहारिणि पापविमोचनि साधुजनाश्रित पादयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदा पालय माम् ३ गजलक्ष्मी जयजय दुर्गतिनाशिनि कामिनि सर्वफलप्रद शास्त्रमये रथगज तुरगपदादि समावृत परिजनमण्डित लोकनुते हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित तापनिवारिणि पादयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ४ सन्तानलक्ष्मी अहिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि स्वरसप्त भूषित गाननुते सकल सुरासुर देवमुनीश्वर मानववन्दित पादयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि त्वं पालय माम् ५ विजयलक्ष्मी जय कमलासनि सद्गतिदायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर- भूषित वासित वाद्यनुते कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्कर देशिक मान्य पदे जयजय हे मधुसूदन कामिनि विजयलक्ष्मि सदा पालय माम् ६ विद्यालक्ष्मी प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये मणिमयभूषित कर्णविभूषण शान्तिसमावृत हास्यमुखे नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ७ धनलक्ष्मी धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि धिंधिमि दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये घुमघुम घुंघुम घुंघुम घुंघुम शङ्खनिनाद सुवाद्यनुते वेदपुराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि धनलक्ष्मि रूपेण पालय माम्,,

नारद जयन्ती,

देवर्षि नारद जयन्ती,हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास के प्रथम दिन
देवर्षि नारद ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए। नारद मुनि, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों मे से एक हैं । उन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है । वे भगवान विष्णु के प्रिय भक्तों में से एक माने जाते है।
महायोगी नारद जी ब्रह्मा जी के मानसपुत्र हैं। वे प्रत्येक युग में भगवान की भक्ति और उनकी महिमा का विस्तार करते हुए लोक-कल्याण के लिए सर्वदा सर्वत्र विचरण किया करते हैं।
भक्ति तथा संकीर्तन के ये आद्य-आचार्य हैं। इनकी वीणा भगवज्जप-महती के नाम से विख्यात है। उससे 'नारायण-नारायण' की ध्वनि निकलती रहती है। इनकी गति अव्याहत है। ये ब्रह्म-मुहूर्त में सभी जीवों की गति देखते हैं और अजर–अमर हैं। भगवद-भक्ति की स्थापना तथा प्रचार के लिए ही इनका आविर्भाव हुआ है।
भक्ति का प्रसार करते हुए वे अप्रत्यक्ष रूप से भक्तों का सहयोग करते रहते हैं। ये भगवान् के विशेष कृपापात्र और लीला-सहचर हैं। जब-जब भगवान का आविर्भाव होता है, ये उनकी लीला के लिए भूमिका तैयार करते हैं। लीलापयोगी उपकरणों का संग्रह करते हैं और अन्य प्रकार की सहायता करते हैं इनका जीवन मंगल के लिए ही है।
देवर्षि नारद, व्यास, बाल्मीकि तथा महाज्ञानी शुकदेव आदि के गुरु हैं। श्रीमद्भागवत, जो भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य का परमोपदेशक ग्रंथ-रत्न है तथा रामायण, जो मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के पावन, आदर्श चरित्र से परिपूर्ण है, देवर्षि नारदजी की कृपा से ही हमें प्राप्त हो सकें हैं। इन्होंने ही प्रह्लाद, ध्रुव, राजा अम्बरीष आदि महान भक्तों को भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया। ये भागवत धर्म के परम-गूढ़ रहस्य को जानने वाले- ब्रह्मा, शंकर, सनत्कुमार, महर्षि कपिल, स्वायम्भुव मनु आदि बारह आचार्यों में अन्यतम हैं। देवर्षि नारद द्वारा विरचित 'भक्तिसूत्र' बहुत महत्वपूर्ण है। नारदजी को अपनी विभूति बताते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण श्रीमद् भागवत् गीता के दशम अध्याय में कहते हैं- अश्वत्थ: सर्ववूक्षाणां देवर्षीणां च नारद:।
नारद के भक्तिसूत्र के अलावा
नारद-महापुराण,
बृहन्नारदीय उपपुराण-संहिता-(स्मृतिग्रंथ),
नारद-परिव्राज कोपनिषद नारदीय-शिक्षा के साथ ही अनेक स्तोत्र भी उपलब्ध होते हैं। देविर्षि नारद के सभी उपदेशों का निचोड़ है- सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितै: भगवानेव भजनीय:।
अर्थात सर्वदा सर्वभाव से निश्चित होकर केवल भगवान का ही ध्यान करना चाहिए।
देवर्षि नारद भगवान के भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हैं। ये भगवान की भक्ति और माहात्म्य के विस्तार के लिये अपनी वीणा की मधुर तान पर भगवद्गुणों का गान करते हुए निरन्तर विचरण किया करते हैं। इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इनके द्वारा प्रणीत भक्तिसूत्र में भक्ति की बड़ी ही सुन्दर व्याख्या है। अब भी ये अप्रत्यक्षरूप से भक्तों की सहायता करते रहते हैं। भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष, ध्रुव आदि भक्तों को उपदेश देकर इन्होंने ही भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया। इनकी समस्त लोकों में अबाधित गति है। इनका मंगलमय जीवन संसार के मंगल के लिये ही है। ये ज्ञान के स्वरूप, विद्या के भण्डार, आनन्द के सागर तथा सब भूतों के अकारण प्रेमी और विश्व के सहज हितकारी हैं।..

जय श्री गणेश विघ्न हरण, मंगल करण,

विघ्न हरण, मंगल करण, गणनायक गणराज|रिद्धि सिद्धि सहित पधारजो, म्हारा पूरण करजो काज,,,श्री गणेश प्रार्थना जय जय श्री गणेश दिव्य शारीरम् lजय जय श्री गणेश अज्ञान विनाशंम् lजय जय श्री गणेश सर्व दुख़हरणंम् lजय जय शक्तिपुत्र नम:स्तुते ll

विठ्ठल विठ्ठल विठ्ठल विठ्ठल श्री विठ्ठल,जय श्री रुक्मिणी,

श्री विठ्ठल,जय श्री रुक्मिणी,जय श्री विठ्ठल,जय श्री रुक्मिणी,
केशवा माधवा तुझ्या नामात रे गोडवा ||
तुझ्या सारखा तूच देवा | तुला कुणाचा नाही हेवा
वेळोवेळी संकटातुनी तारिसी मानवा ||
वेडा होऊनी भक्तीसाठी | गोप गड्यांसह यमुनाकाठी
नंदाघरच्या गाई हाकीशी गोकुळी यादवा ||
वीर धनुर्धर पार्थासाठी | चक्र सुदर्शन घेऊनी हाती
रथ हाकुनिया पांडवांचा पळविशी कौरवा ||

सरस्वती मंत्र:


सरस्वती मंत्र:या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता ।या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मसना ।।या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता । सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा ॥१॥
भावार्थ: जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह श्वेत वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर अपना आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती आप हमारी रक्षा करें।
सरस्वती मंत्र तन्त्रोक्तं देवी सूक्त से :या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेणसंस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
विद्या प्राप्ति के लिये सरस्वती मंत्र: घंटाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दघतीं धनान्तविलसच्छीतांशु तुल्यप्रभाम्‌। गौरीदेहसमुद्भवा त्रिनयनामांधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वती मनुमजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम्‌॥
भावार्थ: जो अपने हस्त कमल में घंटा, त्रिशूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण को धारण करने वाली, गोरी देह से उत्पन्ना, त्रिनेत्रा, मेघास्थित चंद्रमा के समान कांति वाली, संसार की आधारभूता, शुंभादि दैत्य का नाश करने वाली महासरस्वती को हम नमस्कार करते हैं। माँ सरस्वती जो प्रधानतः जगत की उत्पत्ति और ज्ञान का संचार करती है।
अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र प्रयोग:
प्रतिदिन सुबह स्नान इत्यादि से निवृत होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें। अपने सामने मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें । अब चित्र या यंत्र के ऊपर श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प व अक्षत (चावल) भेंट करें और धूप-दीप जलाकर देवी की पूजा करें और अपनी मनोकामना का मन में स्मरण करके स्फटिक की माला से किसी भी सरस्वती मंत्र की शांत मन से एक माला फेरें।
सरस्वती मूल मंत्र:,ॐ ऎं सरस्वत्यै ऎं नमः।
सरस्वती मंत्र:ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।
सरस्वती गायत्री मंत्र: १ – ॐ सरस्वत्यै विधमहे, ब्रह्मपुत्रयै धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात। २ – ॐ वाग देव्यै विधमहे काम राज्या धीमहि । तन्नो सरस्वती: प्रचोदयात।
ज्ञान वृद्धि हेतु गायत्री मंत्र :ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
परीक्षा भय निवारण हेतु:ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम् भय निवारय निवारय अभयम् देहि देहि स्वाहा।
स्मरण शक्ति नियंत्रण हेतु:ॐ ऐं स्मृत्यै नमः।
विघ्न निवारण हेतु: ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय स्वाहा।
स्मरण शक्ति बढा के लिए :ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।
परीक्षा में सफलता के लिए :१ – ॐ नमः श्रीं श्रीं अहं वद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वत्यै नमः स्वाहा विद्यां देहि मम ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा।
२ -जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी, कवि उर अजिर नचावहिं बानी।
मोरि सुधारिहिं सो सब भांती, जासु कृपा नहिं कृपा अघाती॥
हंसारुढा मां सरस्वती का ध्यान कर मानस-पूजा-पूर्वक निम्न मन्त्र का २१ बार जप करे-” ॐ ऐं क्लीं सौः ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद वाग्-वादिनि सौः क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नमः।” विद्या प्राप्ति एवं मातृभाव हेतु:
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्तिः॥
अर्थातः- देवि! विश्वकि सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे हो।
उपरोक्त मंत्र का जप हरे हकीक या स्फटिक माला से प्रतिदिन सुबह १०८ बार करें, तदुपरांत एक माला जप निम्न मंत्र का करें।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं महा सरस्वत्यै नमः।
देवी सरस्वती के अन्य प्रभावशाली मंत्र
एकाक्षरः
“ऐ”।
द्वियक्षर:
१ “आं लृं”,।
२ “ऐं लृं”।
त्र्यक्षरः
“ऐं रुं स्वों”।
चतुर्क्षर:
“ॐ ऎं नमः।”
नवाक्षरः
“ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः”।
दशाक्षरः
१ – “वद वद वाग्वादिन्यै स्वाहा”।
२ – “ह्रीं ॐ ह्सौः ॐ सरस्वत्यै नमः”।
एकादशाक्षरः
१ – “ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”।
२ – “ऐं वाचस्पते अमृते प्लुवः प्लुः”
३ – “ऐं वाचस्पतेऽमृते प्लवः प्लवः”।
एकादशाक्षर-चिन्तामणि-सरस्वतीः
“ॐ ह्रीं ह्स्त्रैं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”।
एकादशाक्षर-पारिजात-सरस्वतीः
१ – “ॐ ह्रीं ह्सौं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”।
२ – “ॐ ऐं ह्स्त्रैं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”।
द्वादशाक्षरः
“ह्रीं वद वद वाग्-वादिनि स्वाहा ह्रीं”
अन्तरिक्ष-सरस्वतीः
“ऐं ह्रीं अन्तरिक्ष-सरस्वती स्वाहा”।
षोडशाक्षरः
“ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा”।
अन्य मंत्र
• ॐ नमः पद्मासने शब्द रुपे ऎं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्दादिनि स्वाहा।
• “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा”।
• “ऐंह्रींश्रींक्लींसौं क्लींह्रींऐंब्लूंस्त्रीं नील-तारे सरस्वति द्रांह्रींक्लींब्लूंसःऐं ह्रींश्रींक्लीं सौं: सौं: ह्रीं स्वाहा”।
• “ॐ ह्रीं श्रीं ऐं वाग्वादिनि भगवती अर्हन्मुख-निवासिनि सरस्वति ममास्ये प्रकाशं कुरु कुरु स्वाहा ऐं नमः”।
• ॐ पंचनद्यः सरस्वतीमयपिबंति सस्त्रोतः सरस्वती तु पंचद्या सो देशे भवत्सरित्।
उपरोक्त आवश्यक मंत्र का प्रतिदिन जाप करने से विद्या की प्राप्ति होती है।
नोट :
स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ कपडे पहन कर मंत्र का जप प्रतिदिन एक माला करें।
ब्राह्म मुहूर्त मे किये गए मंत्र का जप अधिक फलदायी होता हैं। इस्से अतिरीक्त अपनी सुविधाके
अनुशार खाली में मंत्र का जप कर सकते हैं।
मंत्र जप उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके करें।
जप करते समय शरीर का सीधा संपर्क जमीन से न हो इस लिए ऊन के आसन पर बैठकर जप
करें। Astrologer Gyanchand Bundiwal M. 0 8275555557.
जमीन के संपर्क में रहकर जप करने से जप प्रभाव हीन होते हैं।

Tuesday, 21 May 2013

महाकाल

सुप्रभात जागो हे महाकाल, जागो जीवन आधार,भसम करो पापी के पाप को,
धरती पुकारे प्रभु आपको ।तुम को जगा रहा नीला गगन ।
तुम को जगाये प्रभु पूरा पवन ॥कंदों पे नुसत धरो , डमरू पे ताल दो ।
तीसरे नयन की आज ज्वाला निकाल दो ॥फूंक दो यह कष्टों की कालिमा ।
भरदो कानो में नयी लालिमा ॥,,सुप्रभात,,

सोमनाथ की जय

सोमनाथ की जय जय सोमनाथ की जय 
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जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा कर्पूरगौरं करुणावतारम संसार सारं भुजगेंद्रहारं। सदा वसन्तं हृदयार्विंदे भावं भवानी सहितं नमामि॥ जय शिव ओंकारा, भज शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा॥ जय एकानन, चतुरानन, पंचानन राजै हंसासन, गरुडासन, वृषवाहन साजै॥ जय ॥ दो भुज चार चतुर्भुज, दशभुज ते सोहे तीनो रूप निरखता, त्रिभुवन-जन मोहे॥ जय ॥अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमालाधारी त्रिपुरारी, कंसारी, करमाला धारी॥ जय ॥श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे सनकादिक, गरुडादिक, भूतादिक संगे॥ जय ॥कर मध्ये सुकमण्डलु, चक्र शूलधारी सुखकारी, दुखहारी, जग पालनकारी॥ जयब्रह्माविष्णु सदाशिव जानत अविवेका प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनो एका॥ जय कशी में विश्नाथ विराजत नंदी ब्रह्मचारी नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी॥ जय ॥ त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावै कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावै॥ जय

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की जय

 मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की जय
 मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की जय जय शिव शंकर !! जय भोले नाथ !! हर हर महादेवमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (श्रीशैलम आंध्र प्रदेश)MALLIKARJUNA jyotirlinga,,जय देव जगन्नाथ, जय शंकर शाश्वत। जय सर्व-सुराध्यक्ष, जय सर्व-सुरार्चित ! जय सर्व-गुणातीत, जय सर्व-वर-प्रद ! जय नित्य-निराधार, जय विश्वम्भराव्यय ! ।। जय विश्वैक-वेद्येश, जय नागेन्द्र-भूषण ! जय गौरी-पते शम्भो, जय चन्द्रार्ध-शेखर ! ।। जय कोट्यर्क-संकाश, जयानन्त-गुणाश्रय ! जय रुद्र-विरुपाक्ष, जय चिन्त्य-निरञ्जन ! ।। जय नाथ कृपा-सिन्धो, जय भक्तार्त्ति-भञ्जन ! जय दुस्तर-संसार-सागरोत्तारण-प्रभो ! ।।प्रसीद मे महा-भाग, संसारार्त्तस्य खिद्यतः। सर्व-पाप-भयं हृत्वा, रक्ष मां परमेश्वर ! ।।महा-दारिद्रय-मग्नस्य, महा-पाप-हृतस्य च। महा-शोक-विनष्टस्य, महा-रोगातुरस्य च।।ऋणभार-परीत्तस्य, दह्यमानस्य कर्मभिः। ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य, प्रसीद मम शंकर !

राम भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं

श्रीराम भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में विख्यात श्रीराम का नाम हिन्दुओं के जन्म से लेकर मरण तक उनके साथ रहता है। अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम ने असुर राज रावण और अन्य आसुरी शक्तियों के प्रकोप से धरती को मुक्त कराने के लिए ही इस धरा पर जन्म लिया था। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से नैतिकता, वीरता, कर्तव्यपरायणता के जो उदाहरण प्रस्तुत किये वह बाद में मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक का काम करने लगे।
महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य श्रामायणश् और संत तुलसीदास जी ने भक्ति काव्य श्श्रीरामचरितमानसश् में भगवान श्रीराम के जीवन का विस्तृत वर्णन बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। हिन्दू धर्म के कई त्योहार श्रीराम के जीवन से जुड़े हुए हैं जिनमें रामनवमी के रूप में उनका जन्मदिवस मनाया जाता है तो दशहरा पर्व भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध करने की खुशी में मनाया जाता है। श्रीराम के वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने की खुशी में हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व दीपावली मनाया जाता है। राम प्रजा को हर तरह से सुखी रखना राजा का परम कर्तव्य मानते थे। उनकी धारणा थी कि जिस राजा के शासन में प्रजा दुरूखी रहती है, वह अवश्य ही नरक का अधिकारी होता है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में रामराज्य की विस्तृत चर्चा की है। राम अद्वितीय महापुरुष थे। वे अतुल्य बलशाली तथा उच्च शील के व्यक्ति थे। युवा श्रीराम के जीवनकाल में तब बड़ा परिवर्तन आया जब वह अपने छोटे भाई लक्ष्मण तथा मुनि विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंचे और वहां श्रीराम ने जनकजी द्वारा प्रतिज्ञा के रूप में रखे शिव−धनुष को तोड़ दिया। जिसके बाद राजा ने साक्षात् लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न सीता का विवाह राम के साथ कर दिया तथा दूसरी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ कर दिया। इसके बाद महाराज दशरथ ने अपने बड़े पुत्र राम को राज्य करने योग्य देखकर उन्हें राज्य भार सौंपने का मन में निश्चय किया। राजतिलक संबंधी सामग्रियों का प्रबंध हुआ देखकर महाराज दशरथ की तीसरी पत्नी रानी कैकेयी ने अपनी वशीभूत महाराज दशरथ से पूर्व कल्पित दो वरदान मांगे। उन्होंने पहले वरदान के रूप में अपने पुत्र भरत के लिये राज तथा दूसरे वरदान के रूप में श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मांगा। कैकेयी का वचन मानकर श्रीरामचन्द्र जी सीता तथा लक्ष्मण के साथ द.डक वन चले गये, जहां राक्षस रहते थे। इसके बाद पुत्र के वियोग जनित शोक से संतप्त पु.यात्मा दशरथ ने पूर्व काल में एक व्यक्ति द्वारा प्रदत्त शाप का स्मरण करते हुए अपने प्राण त्याग दिये। वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था। रावण राक्षस तथा लंका का राजा था। सौ योजन का समुद्र लांघकर हनुमान जी ने सीता का पता लगाया। समुद्र पर सेतु बना। रणभूमि के महायज्ञ में श्रीराम के बाणों ने राक्षसों के साथ कुम्भकर्ण और रावण के प्राणों की आहुति ले ली। भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। श्रीराम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे और वहां सबसे मिलने के बाद श्रीराम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ।.

 Photo: श्रीराम भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में विख्यात श्रीराम का नाम हिन्दुओं के जन्म से लेकर मरण तक उनके साथ रहता है। अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम ने असुर राज रावण और अन्य आसुरी शक्तियों के प्रकोप से धरती को मुक्त कराने के लिए ही इस धरा पर जन्म लिया था। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से नैतिकता, वीरता, कर्तव्यपरायणता के जो उदाहरण प्रस्तुत किये वह बाद में मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक का काम करने लगे।
महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य श्रामायणश् और संत तुलसीदास जी ने भक्ति काव्य श्श्रीरामचरितमानसश् में भगवान श्रीराम के जीवन का विस्तृत वर्णन बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। हिन्दू धर्म के कई त्योहार श्रीराम के जीवन से जुड़े हुए हैं जिनमें रामनवमी के रूप में उनका जन्मदिवस मनाया जाता है तो दशहरा पर्व भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध करने की खुशी में मनाया जाता है। श्रीराम के वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने की खुशी में हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व दीपावली मनाया जाता है। राम प्रजा को हर तरह से सुखी रखना राजा का परम कर्तव्य मानते थे। उनकी धारणा थी कि जिस राजा के शासन में प्रजा दुरूखी रहती है, वह अवश्य ही नरक का अधिकारी होता है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में रामराज्य की विस्तृत चर्चा की है। राम अद्वितीय महापुरुष थे। वे अतुल्य बलशाली तथा उच्च शील के व्यक्ति थे। युवा श्रीराम के जीवनकाल में तब बड़ा परिवर्तन आया जब वह अपने छोटे भाई लक्ष्मण तथा मुनि विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंचे और वहां श्रीराम ने जनकजी द्वारा प्रतिज्ञा के रूप में रखे शिव−धनुष को तोड़ दिया। जिसके बाद राजा ने साक्षात् लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न सीता का विवाह राम के साथ कर दिया तथा दूसरी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ कर दिया। इसके बाद महाराज दशरथ ने अपने बड़े पुत्र राम को राज्य करने योग्य देखकर उन्हें राज्य भार सौंपने का मन में निश्चय किया। राजतिलक संबंधी सामग्रियों का प्रबंध हुआ देखकर महाराज दशरथ की तीसरी पत्नी रानी कैकेयी ने अपनी वशीभूत महाराज दशरथ से पूर्व कल्पित दो वरदान मांगे। उन्होंने पहले वरदान के रूप में अपने पुत्र भरत के लिये राज तथा दूसरे वरदान के रूप में श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मांगा। कैकेयी का वचन मानकर श्रीरामचन्द्र जी सीता तथा लक्ष्मण के साथ द.डक वन चले गये, जहां राक्षस रहते थे। इसके बाद पुत्र के वियोग जनित शोक से संतप्त पु.यात्मा दशरथ ने पूर्व काल में एक व्यक्ति द्वारा प्रदत्त शाप का स्मरण करते हुए अपने प्राण त्याग दिये। वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था। रावण राक्षस तथा लंका का राजा था। सौ योजन का समुद्र लांघकर हनुमान जी ने सीता का पता लगाया। समुद्र पर सेतु बना। रणभूमि के महायज्ञ में श्रीराम के बाणों ने राक्षसों के साथ कुम्भकर्ण और रावण के प्राणों की आहुति ले ली। भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। श्रीराम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे और वहां सबसे मिलने के बाद श्रीराम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ।.

ब्रह्मा-विष्णु शिव ,,,,शिव-ब्रह्मा-विष्णु


शिव-ब्रह्मा-विष्णु कहीं भी श्री शिव या श्री विष्णु या श्री ब्रह्मा एक दूसरे की न तो निंदा आदि की है और निंदा आदि करने के किसी से कहा ही है; बल्कि निंदा आदि का निषेध और तीनों को एक मानने की प्रशंसा की है!
शिव पुराण में कहा है——एसे परस्परोत्पन्ना धारयन्ति परस्परम!परस्परेण वर्धन्ते परस्परमनुव्रता:!!क्वचित द्ब्रह्मा क्वचितद्विष्णु: क्वाविद्रुद्र प्रशस्यते!नानेव तेषा माधिक्य मैश्चर्यन्चातिरिच्यते!!अयं परस्त्वयं नेति संम्भा भिनिवेशिन:!यातु भवन्त्येव पिशाचा वा ण संशय:!!
ये तीनों [ ब्रह्मा, विष्णु और शिव] एक दूसरे से उत्पन्न हुए हैं, एक दूसरे को धारण करते हैं, एक दूसरे के द्वारा वृद्विन्गत होते हैं और एक दूसरे के अनुकूल आचरण करते हैं! कहीं ब्रह्मा कि प्रशंसा की जाती है, कहीं विष्णु कि और कहीं महादेव कि! उनका उत्कर्ष एवं ऐश्वर्य एक दूसरे की अपेक्षा इस प्रकार अधिक कहा है मानो वे अनेक हों! जो संशयात्मा मनुष्य यह विचार करते हैं कि अमुक बड़ा है और अमुक छोटा है, वे अगले जन्म में राक्षस अथवा पिशाच होते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है!
स्वयं भगवान शिव जी विष्णु जी से कहते है मद्दर्शने फलं यद्वै तदेव तव दर्शने! ममैव हृदये विष्णुर्विष्नोश्च हृदये ह्यहम!! उभयोरन्तरं यो वै ण जानाति मतों मम!
मेरे दर्शन का जो फल है वही आपके दर्शन का है! आप मेरे ह्रदय में निवास करते हैं और मैं आपके ह्रदय में रहता हूँ! जो हम दोनों में भेद नहीं समझता, वही मुझे मान्य है!
भगवान श्रीराम भगवान श्रेशिव जी से कहते हैं ममास्ति हृदये शर्वो भवतो हृदये त्वहम ! आवयोरन्तरं नास्ति मूढ़ा: पश्यन्ति दुर्धिय:!! ये भेदन विदधत्यद्धा आवयोरेकरूपकम ! कुम्भीपाकेषु पच्यते नरा: कल्पसह्त्रकम!! ये त्वद्भक्ता: सदासंस्ते मद्भक्ता धर्मसंयुक्ता:! मद्भक्ता अपि भूयस्या भवत्या नातिन्करा:!!
आप [शंकर] मेरे ह्रदय में रहते हैं और मैं आपके ह्रदय में रहता हूँ! हम दोनों में कोई भेद नहीं है! मूर्ख एवं दुर्बुद्धि मनुष्य ही हमारे अन्दर भेद समझते हैं! हम दोनों एकरूप हैं, जो मनुष्य हमारे अन्दर भेद-भावना करते हैं, वे हजार कल्पपर्यंत कुम्भीपाक नरक में यातना सहते हैं! जो आपके भक्त हैं वे धार्मिक पुरुष सदा ही मेरे भक्त रहे हैं और जो मेरे भक्त हैं वे प्रगाढ़ भक्ति से आपको भी प्रणाम करते हैं!
इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण भी भगवान् श्रीशिव जी से कहते हैं!
त्वत्परो नास्ति मे प्रेयांस्त्वं मदीयात्मन: पर:! ये त्वां निदन्ति पापिष्ठा ज्ञानहीना विचेतस:!! पच्यन्ते कालसूत्रेण यावच्चंद्रदिवाकरौ! कृत्वा लिंगं सकृत्पूज्य वसेत कल्पायुतं दिवे! प्रजावान भूमिवान विद्वान पुत्रबान्धववांस्तथा!! ज्ञानवान मुक्तिमान साधु: शिवलिंगार्चनाद्भवेत! कोटिजन्मार्जितात पापान्मुक्तो मुक्तिं प्रयाति स:!
मुझे आपसे बढ़ कर कोई प्यारा नहीं है, आप मुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं! जो पापी, अज्ञानी एवं बुद्धिहीन पुरुष आपकी निंदा करते हैं, वे जब तक चन्द्र और सूर्य का अस्तित्व रहेगा, तब तक काल सूत्र में [नरक में][ पचाते रहेंगे! जो शिवलिंग का निर्माण कर एक बार भी उसकी पूजा कर लेता है, वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग में निवास करता है! शिन्लिंग के अर्चन से मनुष्य को प्रजा, भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है! जो मनुष्य "शिव" शब्द का उच्चारण कर शरीर छोड़ता है, वह करोड़ों जन्मों के संचित पापों से छूट कर मुक्ति को प्राप्त होता है!
भगवान विष्णु श्री मद्भागवत [४/७/५४] में दक्षप्रजापति के प्रति कहते हैं!
त्रयाणामेकभावानां यो न पश्यति वै भिदाम! सर्वभूतात्मनां ब्रह्मन स शान्तिमधिगच्छति !!
हे विप्र! हम तीनों एकरूप हैं और समस्त भूतों की आत्मा हैं, हमारे अन्दर जो भेद-भावना नहीं करता, नि:संदेह वह शान्ति [मोक्ष] को प्राप्त होता है!
श्रीरामचरितमानस में भगवान श्री राम ने कहा है!—
संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास! ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुं बॉस!! औरउ एक गुपुत मत सबहि कहऊँ कर जोरि! संकर भजन बिना नर भगति ण पावई मोरि!!
शांताकरम भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णँ शुभांगम।लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगभिर्ध्यानिगम्यम।वंदे विष्णु भवभयहरणम् सर्वलोकैकनाथम ।।,,


शुभ रात्रि जय जय नारायण नारायण हरि हरि





शुभ रात्रि जय जय नारायण नारायण हरि हरि,जय जय नारायण नारायण हरि हरि, नारायण नारायण हरि हरि। हरि ॐ नारायण नारायण हरि हरि। भगवन नारायण नारायण हरि हरि...शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम् । लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिध्यार्नगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्

मोहिनी एकादशी वैसाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी मोहिनी एकादशी कहलाती है

मोहिनी एकादशी,,वैसाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी मोहिनी एकादशी कहलाती है|  | आपको बता दें कि इस दिन भगवान पुरुषोत्तम श्रीराम की पूजा की जाती है| व्रत के दिन भगवान की प्रतिमा को श्वेतवस्त्र पहनाये जाते हैं|
मोहिनी एकादशी व्रत विधि===इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है| व्रत का संकल्प लेने के बाद ही इस व्रत को शुरु किया जाता है| संकल्प लेने के लिये इन दोनों देवों के समक्ष संकल्प लिया जाता है| देवों का पूजन करने के लिये कुम्भ स्थापना कर, उसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बांध कर पहले कुम्भ का पूजन किया जाता है, इसके बाद इसके ऊपर भगवान की तस्वीर या प्रतिमा रखी जाती है| प्रतिमा रखने के बाद भगवान का धूप, दीप और फूलों से पूजन किया जाता है| तत्पश्चात व्रत की कथा सुनी जाती है|
मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व===मोहिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप और दु:ख नष्ट होते है| इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य़ मोह जाल से छूट जाता है, अत: इस व्रत को सभी दु:खी मनुष्यों को अवश्य करना चाहिए| मोहिनी एकादशी के व्रत के दिन इस व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए|
मोहिनी एकादशी व्रत कथा===युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन! वैशाख मास के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? उसका क्या फल होता है? उसके लिए कौन सी विधि है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले : धर्मराज! पूर्वकाल में परम बुद्धिमान श्रीरामचन्द्रजी ने महर्षि वशिष्ठजी से यही बात पूछी थी, जिसे आज तुम मुझसे पूछ रहे हो।
श्रीराम ने कहा : भगवन्! जो समस्त पापों का क्षय तथा सब प्रकार के दु:खों का निवारण करनेवाला, व्रतों में उत्तम व्रत हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ।
वशिष्ठजी बोले : श्रीराम! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है। मनुष्य तुम्हारा नाम लेने से ही सब पापों से शुद्ध हो जाता है। तथापि लोगों के हित की इच्छा से मैं पवित्रों में पवित्र उत्तम व्रत का वर्णन करुँगा। वैशाख मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका नाम ‘मोहिनी’ है। वह सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है। उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पा जाते हैं।
सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भद्रावती नाम की सुन्दर नगरी है। वहाँ धृतिमान नामक राजा, जो चन्द्रवंश में उत्पन्न और सत्यप्रतिज्ञ थे, राज्य करते थे। उसी नगर में एक वैश्य रहता था, जो धन धान्य से परिपूर्ण और समृद्धशाली था। उसका नाम था धनपाल। वह सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था। दूसरों के लिए पौसला (प्याऊ), कुआँ, मठ, बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता था। भगवान विष्णु की भक्ति में उसका हार्दिक अनुराग था। वह सदा शान्त रहता था। उसके पाँच पुत्र थे : सुमना, धुतिमान, मेघावी, सुकृत तथा धृष्टबुद्धि। धृष्टबुद्धि पाँचवाँ था। वह सदा बड़े बड़े पापों में ही संलग्न रहता था। जुए आदि दुर्व्यसनों में उसकी बड़ी आसक्ति थी। वह वेश्याओं से मिलने के लिए लालायित रहता था। उसकी बुद्धि न तो देवताओं के पूजन में लगती थी और न पितरों तथा ब्राह्मणों के सत्कार में। वह दुष्टात्मा अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बरबाद किया करता था। एक दिन वह वेश्या के गले में बाँह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया। तब पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बन्धु बान्धवों ने भी उसका परित्याग कर दिया। अब वह दिन रात दु:ख और शोक में डूबा तथा कष्ट पर कष्ट उठाता हुआ इधर उधर भटकने लगा। एक दिन किसी पुण्य के उदय होने से वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम पर जा पहुँचा। वैशाख का महीना था। तपोधन कौण्डिन्य गंगाजी में स्नान करके आये थे। धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़ सामने खड़ा होकर बोला : ब्रह्मन्! द्विजश्रेष्ठ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो।’

रत्न परामर्श के लिए सम्पर्क करे ज्ञानचंद बूंदीवाल M.8275555557 ..For more information visit 
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कौण्डिन्य बोले : वैशाख के शुक्लपक्ष में ‘मोहिनी’ नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो। ‘मोहिनी’ को उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किये हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं ।’
वशिष्ठजी कहते है : श्रीरामचन्द्रजी! मुनि का यह वचन सुनकर धृष्टबुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया। उसने कौण्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक ‘मोहिनी एकादशी’ का व्रत किया। नृपश्रेष्ठ! इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरुढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णुधाम को चला गया। इस प्रकार यह ‘मोहिनी’ का व्रत बहुत उत्तम है। इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है।’







ॐ नम: शिवाय

ॐनम: शिवाय

शिव साक्षात् कल्याण हैं। शिव शुद्ध ब्रह्म हैं। सूर्य की आभा शिव हैं। शिव और शक्ति के प्रभाव से ही सूर्य प्रकाश और ऊष्मा बिखेरने में सक्षम होता है। शिव पराशक्ति हैं। पूरे ब्रह्माण्ड को दो भागों में बांटा गया है-अपरा प्रकृति और परा प्रकृति। अपरा प्रकृति के आठ स्वरूप हैं-भूमि, आप (जल), अनल, वायु, नभ, मन, बुद्धि तथा अहंकार। परा प्रकृति प्राण को कहते हैं, जो आत्मा है और अमर है। इसमें प्रभा-प्रभाकर, शिवा-शिव, नारायणी-नारायणआते हैं, जो परा प्रकृति को जानते हैं। अपरा प्रकृति किसी को नहीं जानती। शिव निराकार हैं, शंकर साकार हैं। शिव जब साकार हो जाते हैं तो गंगाधर, चंद्रशेखर, त्रिलोचन, नीलकंठ एवं दिगंबर कहलाते हैं। ओम का अर्थ है कल्याण रूपी ओंकार परमात्मा। जो शिव निर्गुण निराकार रूप में रोम-रोम में ओम बिराजते, उसी शिव का ध्यान भक्तगण शंकर के रूप में करते हैं। शिव जब सगुण साकार हो कर शंकर बनते हैं तो स्वयं ओम का जाप करते हैं स्वयं की शक्ति में ओज के निमित्त। जैसे सूर्य अपनी आभा में सारी सृष्टि को देखता है, उसी तरह शिव अपनी शिवा में पूरी सृष्टि को देखते हैं। विद्वान संत शिवानन्द स्वामी ने कहा है-
ब्रह्मा विष्णु सदाशिवजानतअविवेका।
प्रणवाक्षरमध्य तीनों ही एका॥
गोस्वामी तुलसीदास ने भी शिव और शक्ति को इस रूप में देखा है-
भवानी शंकरौवंदे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यांविनान पश्यंतिसिद्धास्वांतस्थमीश्वर:॥
अर्थात् मैं श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप भवानी और शंकर की वंदना करता हूं, जिनकी कृपादृष्टि के बिना कोई भी सिद्ध योगी अपने अंतकरणमें अवस्थितईश्वर को देख नहीं सकता।
शिव की आराधना से आत्मबल में वृद्धि होती है। शिवाराधनमें शुद्धता को महत्व दिया जाता है, जिसका आधार फलाहार है। फलाहार से व्यवहार शुद्ध होता है। हर जीव शिव का ही अंश है और जब वह इसकी आराधना करता है तो अंत:सुखकी प्राप्ति होती है। शिव पूजा के लिए बेलपत्र,धूप, पुष्प, जल की महत्ता तो है ही, मगर शिव-श्रद्धा से अति प्रसन्न होते हैं, क्योंकि श्रद्धा जगज्जननीपार्वती हैं और सदाशिवभगवान शंकर स्वयं विश्वास हैं। श्रावण में शिवलिंगकी पूजा का काफी महत्व है, क्योंकि शिवलिंगभी अपने आप में भगवान शिव का ही एक विग्रह है। इसे सर्वतोमुखी भी कहा गया है, क्योंकि इसके चारों ओर मुख होते हैं। हमारे सतानतधर्म में जो 33करोड देवता हैं, उनकी पूजा शिवलिंगमें बिना आह्वान के ही मान्य हो जाती है। शिव की पूजा वस्तुत:आत्मकल्याण के लिए ही किया जाना चाहिए, न कि सांसारिक वैभव के लिए।
SHIVA HIMALAYA by VISHNU108

महिमा ॐ नमः शिवायः की

महिमा ॐ नमः शिवायः की

कल्याणकारी मंत्र ॐ नमः शिवायः जप सम्पदा, शक्ति, सर्वव्याधि, विनाशिनी, दुखहरिणी, भायानाशिनी, सर्वफल्दयिनी,से परिपूर्ण है I  भगवन शिव का ध्यान और जप समस्त फल प्राप्ति का अनुपम कार्य है I  देवाधिदेव महादेव सभी कार्यों के साक्षी और विराटस्वरुप के स्वामी है I  इनका नाम और जप अति आनंद दायक और सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाला है I  इनके शिव, शंकर, हर, महेश, परम, देव, महादेव, जगदीश, परमात्मा, गिरीश, शम्भू, सदाशिव, परमेश्वर, पार्वतीपति, त्रिशूलधारी, इश्वर, कल्यानेश्वर, सुखदाता, जैसे अनंत  नाम है I  जो भी सच्चे मन हर्दय से समर्पित हो कर भोले नाथ की ध्यान जप करते है उनका कल्याण अवस्य होता है I  भोलेनाथ परम दयालु और रक्षक है I  महाकवि तुलसीदास ने भी कहा है, कलयुग में श्रधा और आस्था से शिव का नाम लेना ही काफी है I भगवन शिव शंकर का नाम और ध्यान सांसारिक जीवन यात्रा को आसानी से पर लगाने वाला अमृत सा फलदायक है I  भगवन शिव  के नाम में अद्भुत सामर्थ्य है लेकिन इसका लाभ तभी फलीभूत होता है जब उत्तम उद्देश्य और निर्मल हिर्दय से बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के लिए किया जाय I  इसके लिए श्रधा, विश्वास, संयम, एकाग्रता, तत्परता, रखना अनिवार्य है I  ॐ नमः शिवायः का जप समस्त आतंरिक  और बाह्य असुधियों का परिस्कार करने वाला है I  इसे लगातार जप करने वाल शिव सद्रिस्य हो जाता है, क्योंकि यही शिव की सतत इच्छा ही रहती है I  जप से पुरे वातावरण में अद्भुत शक्ति संचार होने लगता है I यहाँ जप मन से या बोल कर या लिख कर सभी रूप  में कल्याणकारी है I   
 

Friday, 17 May 2013

महालक्ष्म्यै नमः। शुक्रवार विशेष श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये

शुक्रवार विशेष : श्री महालक्ष्मी.ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः। .श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये।श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा ।. ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः।स्तुति-पाठ।। ।।ॐ नमो नमः।।पद्मानने पद्मिनि पद्म-हस्ते पद्म-प्रिये पद्म-दलायताक्षि।विश्वे-प्रिये विष्णु-मनोनुकूले, त्वत्-पाद-पद्मं मयि सन्निधत्स्व।।पद्मानने पद्म-उरु, पद्माक्षी पद्म-सम्भवे।त्वन्मा भजस्व पद्माक्षि, येन सौख्यं लभाम्यहम्।।अश्व-दायि च गो-दायि, धनदायै महा-धने।धनं मे जुषतां देवि, सर्व-कामांश्च देह मे।।पुत्र-पौत्र-धन-धान्यं, हस्त्यश्वादि-गवे रथम्।प्रजानां भवति मातः, अयुष्मन्तं करोतु माम्।।धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।धनमिन्द्रा वृहस्पतिर्वरुणो धनमश्नुते।।वैनतेय सोमं पिब, सोमं पिबतु वृत्रहा। सोमं धनस्य सोमिनो, मह्मं ददातु सोमिनि।।न क्रोधो न च मात्सर्यं, न लोभो नाशुभा मतीः। भवन्ती कृत-पुण्यानां, भक्तानां श्री-सूक्तं जपेत्।।... ॐ श्रीं श्रियै नमः। . ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं करीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा । धन लाभ एवं समृद्धि मंत्र ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।अक्षय धन प्राप्ति मंत्र ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ

गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं

भगवान गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं..
आप जब भी भगवान श्री गणेश जी की कोई प्रतिमा देखेंगे तो उसमे पाएंगे कि उनका एक दन्त खंडित है |,उनके एकदंती होने के पीछे एक कथा है | इस कथा के अनुसार तीनों लोकों की क्षत्रिय विहीन करने के पश्चात परशुराम जी अपने गुरुदेव भगवान शिव जी और गुरु माता से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे | उस समय भगवान शिव जी विश्राम कर रहे थे और भगवान श्री गणेश जी द्वार पर पहरेदार के रूप में बैठे थे | द्वार पर भगवान श्री गणेश को देख कर परशुराम जी ने उन्हें नमस्कार किया और अन्दर के ओर जाने लगे , इस पर भगवान श्री गणेशजी ने उनको अन्दर जाने से रोका | धीरे धीरे दोनों के मध्य विवाद बढ़ता चला गया | परशुराम जी ने अपने अमोध फरसे को , जो की उनको श्री शिव भगवान ने दिया था , चला दिया | फरसे के वार से भगवान गणेश जी का एक दन्त खंडित हो गया | तब से भगवान गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं |

Photo: जय श्री गणेश,,प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् भक्तावासं स्मरेनित्यम आयुष्कामार्थ सिध्दये ॥१॥ प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् तृतीयं कृष्णपिङगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम,ॐ वक्रतुन्डाय हुम |ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं गौं ग: श्रींमहागणाधिपतये नमः |ॐ ह्रींश्रींक्लिंगौं वरदमूर्तयेनमः |ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं नमो भगवते गजाननाय |ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं नमो गणेश्वराय ब्रह्मरूपाय चारवे सर्वसिध्दी प्रदेयाय ब्रह्मणस्पतये नमः |ॐ बिजाय भालचंद्राय गणेश परमात्मने | प्रणतक्लेशनाशाय हेरम्बाय नमो नमः |ॐ आपदामपहर्तार | दातारं सुखसंपदाम | क्षीप्रप्रासादन्न देवं | भूयो भूयो नमाम्यहम

सावरिया सेठ की जय

सावरिया सेठ की जय,सावरिया सेठ की जय,सावरिया सेठ की जय
सांवरिया ओळ्यू थारी आवे है रे, सांवरिया ओळ्यू थारी आवे है रे,
म्हारे नैणा म समाओ, घनश्याम,कन्हैया ओळ्यू थारी आवे है रे !!
सांवरिया होद तो चिणाय दीन्यो रे,सांवरिया होद तो चिणाय दीन्यो रे,
म्हारे होदाँ म न्हावण न-२, आओ श्याम, सांवरिया ओळ्यू थारी आवे है रे !!
सांवरिया रसोयाँ बणाय दिनी रे,सांवरिया रसोयाँ बणाय दिनी रे,
म्हारी रसोयाँ जीमण ने आओ श्याम, सांवरिया ओळ्यू थारी आवे है रे !!
सांवरिया बाग़ तो लगाय दिन्या रे, सांवरिया बाग़ तो लगाय दिन्या रे,
म्हारा बागाँ म घूमण न-२, आओ श्याम, सांवरिया ओळ्यू थारी आवे है रे !!
सांवरिया भवन चिणाय दिन्या रे, सांवरिया भवन चिणाय दिन्या रे,
म्हारे आँगणीये खेलण न, आओ श्याम, सांवरिया ओळ्यू थारी आवे है रे !!
सांवरिया महल तो चिणाय दिन्या रे, सांवरिया महल तो चिणाय दिन्या रे,
म्हारे महलां म सोवण न, आओ श्याम, सांवरिया ओळ्यू थारी आवे है रे !!
सांवरिया "लक्ष्मी" करे है विनती, सांवरिया "लक्ष्मी" करे है विनती,
म्हाने भव सूं पार लगाओ,-२, म्हारा श्याम, सांवरिया ओळ्यू थारी आवे है रे !!

त्रीद्लं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम. त्रीजन्म पापसंहारम एक बिल्व शिव अर्पिन.

त्रीद्लं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम. त्रीजन्म पापसंहारम एक बिल्व शिव अर्पिन...(शिवपुरी धाम कोटा राजस्थान)ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। सः जूं ह्रौं ॐ
दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय कणामृताय शशिशेखरधारणाय | कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || १|| गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय | गंगाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || २|| भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय | ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || ३|| चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय | मंझीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || ४|| पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय | आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || ५|| भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय | नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || ६|| रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय | पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || ७|| मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय | मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || ८|| वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणं | सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् | त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् || ९|| || इति श्रीवसिष्ठविरचितं दारिद्र्यदहनशिवस्तोत्रं सम्पूर्णम्,,

गौ माता जय गौ माता

जय गौ माता गाय में तेतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास है,
इसका यही अभिप्रायः है कि जो हमें 33 करोड़ देवी-देवताओं से मिलता है वो सब हमें गाय भी देती है।गाय सहज में अपनी ओर से जो भी देती है वो सब हमारे लिये अमृत है जैसे- दूध, दही, घी, छाछ, गोमूत्र, गोबर आदि।
लाडिली गैया - मैया की सुनलो पुकार !! कान्ह के संग जिन प्रीति बढाई !
उनको मारें दुष्ट कसाई !! जिनके तन सव देव बसे हैं !
काटें दुष्ट उन्हें धिक्कार ! श्री राधे सुनलो भक्त पुकार !!
जिनके मूत्र गंगा जल धारा ! गोबर भी है पवित्र निराला !!
उन्हें काटें दुष्ट मक्कार !! श्री राधे गो जन करें पुकार !!
... रक्षा करो स्वामिनी प्यारी ! ये ही है विनती हमारी !
गिर जाय दुष्ट सरकार !! श्री राधे मिट जाय गौ अत्याचार !!
हरेकृष्ण !! जय गौ माता !!

द्वारिकाधीश जी की जय

श्री द्वारिकाधीश जी की जय,श्री द्वारिकाधीश जी की जय,श्री द्वारिकाधीश जी की जय,यशोमती मैया से बोले नंदलाला,राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला |बोली मुस्काती मैया, ललन को बताया,काली अँधेरी आधी रात को तू आया |लाडला कन्हीया मेरा काली कमली वाला, इसी लिए काला ||
बोली मुस्काती मैया, सुन मेरे प्यारे,गोरी गोरी राधिका के नैन कजरारे |काले नैनो वाली ने ऐसा जादू डाला, इसी लिए काला ||
इतने में राधा प्यारी आई बलखाती,मैंने क्या जादू डाला, बोली इख्लाती |मैया कन्हीया तेरा जग से निराला, इसी लिए काला ||

श्री भगवान वेंकटेश्वर,,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

सुप्रभात ,श्री भगवान वेंकटेश्वर,,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
सुख-वरण प्रभु, नारायण, हे, दु:ख-हरण प्रभु, नारायण, हे,
तिरलोकपति, दाता, सुखधाम, स्वीकारो मेरे परनाम,
प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...
मन वाणी में वो शक्ति कहाँ, जो महिमा तुम्हरी गान करें,
अगम अगोचर अविकारी, निर्लेप हो, हर शक्ति से परे,
हम और तो कुछ भी जाने ना, केवल गाते हैं पावन नाम ,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...
आदि मध्य और अन्त तुम्ही, और तुम ही आत्म अधारे हो,
भगतों के तुम प्राण, प्रभु, इस जीवन के रखवारे हो,
तुम में जीवें, जनमें तुम में, और अन्त करें तुम में विश्राम,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम...
चरन कमल का ध्यान धरूँ, और प्राण करें सुमिरन तेरा,
दीनाश्रय, दीनानाथ, प्रभु, भव बंधन काटो हरि मेरा,
शरणागत के (घन)श्याम हरि, हे नाथ, मुझे तुम लेना थाम,
स्वीकारो मेरे परनाम, प्रभु, स्वीकारो मेरे परनाम

अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्

अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्,,आदिलक्ष्मी सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवि चन्द्र सहोदरि हेममये मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायिनि मञ्जुळभाषिणि वेदनुते पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद्गुणवर्षिणि शान्तियुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि सदा पालय माम् १ धान्यलक्ष्मी अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि वैदिकरूपिणि वेदमये क्षीरसमुद्भव मङ्गलरूपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम् २ धैर्यलक्ष्मी जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते भवभयहारिणि पापविमोचनि साधुजनाश्रित पादयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदा पालय माम् ३ गजलक्ष्मी जयजय दुर्गतिनाशिनि कामिनि सर्वफलप्रद शास्त्रमये रथगज तुरगपदादि समावृत परिजनमण्डित लोकनुते हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित तापनिवारिणि पादयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ४ सन्तानलक्ष्मी अहिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि स्वरसप्त भूषित गाननुते सकल सुरासुर देवमुनीश्वर मानववन्दित पादयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि त्वं पालय माम् ५ विजयलक्ष्मी जय कमलासनि सद्गतिदायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर- भूषित वासित वाद्यनुते कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्कर देशिक मान्य पदे जयजय हे मधुसूदन कामिनि विजयलक्ष्मि सदा पालय माम् ६ विद्यालक्ष्मी प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये मणिमयभूषित कर्णविभूषण शान्तिसमावृत हास्यमुखे नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ७ धनलक्ष्मी धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि धिंधिमि दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये घुमघुम घुंघुम घुंघुम घुंघुम शङ्खनिनाद सुवाद्यनुते वेदपुराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते जयजय हे मधुसूदन कामिनि धनलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ८,,

गौ माता कामधेनु गौ माता

कामधेनु का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी। यह कामधेनु जिसके पास होती थी, उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। इस गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था।
सर्वपालनकर्ता कामधेनु सबका पालन करने वाली है। यह माता स्वरूपिणी है, सब इच्छाएँ पूर्ण करने वाली है। कृष्ण कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। कश्यप ने वरुण से कामधेनु माँगी थी, लेकिन बाद में लौटायी नहीं। अत: वरुण के शाप से वे ग्वाले हुए। जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, भक्तों में नारद, सभी पुरियों में कैलाश, सम्पूर्ण क्षेत्रों में केदार क्षेत्र श्रेष्ठ है, वैसे ही गऊओं में कामधेनु सर्वश्रेष्ठ है।
भगवान विष्णु स्वयं कच्छपरूप धारण करके समुद्र मंथन के समय मन्दराचल पर्वत के आधार बने। इस प्रकार मन्थन करने पर क्षीरसागर से क्रमश: 'कालकूट विष', 'कामधेनु', 'उच्चैश्रवा' नामक अश्व, 'ऐरावत' नामक हाथी, 'कौस्तुभ्रमणि', 'कल्पवृक्ष', 'अप्सराएँ', 'लक्ष्मी', 'वारुणी', 'चन्द्रमा', 'शंख', 'शांर्ग धनुष', 'धनवन्तरि' और 'अमृत' प्रकट हुए।
क्षीर-समुद्र का मन्थन
मथे जाते हुए समुद्र के चारों ओर बड़े ज़ोर की आवाज़ उठ रही थी। इस बार के मन्थन से देवकार्यों की सिद्धि के लिये साक्षात् सुरभि कामधेनु प्रकट हुईं। उन्हें काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गौएँ घेरे हुए थीं। उस समय ऋषियों ने बड़े हर्ष में भरकर देवताओं और दैत्यों से कामधेनु के लिये याचना की और कहा- 'आप सब लोग मिलकर भिन्न-भिन्न गोत्रवाले ब्राह्मणों को कामधेनु सहित इन सम्पूर्ण गौओं का दान अवश्य करें।' ऋषियों के याचना करने पर देवताओं और दैत्यों ने भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिये वे सब गौएँ दान कर दीं तथा यज्ञ कर्मों में भली-भाँति मन को लगाने वाले उन परम मंगलमय महात्मा ऋषियों ने उन गौओं का दान स्वीकार किया। तत्पश्चात सब लोग बड़े जोश में आकर क्षीरसागर को मथने लगे। तब समुद्र से कल्पवृक्ष, पारिजात, आम का वृक्ष और सन्तान- ये चार दिव्य वृक्ष प्रकट हुए।
 
ॐ जय कामधेनु गौ माता,, जय जय गोमाता सुखसागर। जय देवी अमृत की गागर॥जीवनरस सरिता तुम दाता। तेरी महिमा गाएँ विधाता॥वेद-पुराणों ने गुण गाया। ... कामधेनु बन झोली भरती॥ चरणों की रज अति उपकारी। महापापनाशक, सुखकारी॥ जगमाता हो पालनहारी
 

गणेश स्तोत्रम्,, श्री गणेशाय नमः श्री सङ्कष्टनाशन गणेश स्तोत्रम्,,नारद उवाच।


श्री गणेशाय नमः  श्री सङ्कष्टनाशन गणेश स्तोत्रम्,,नारद उवाच।
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्रं विनायाकम्। भक्तावासं स्मरेन्नित्यम् आयुष्कामार्थसिद्धये॥१॥
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतर्थकम्॥२॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्॥५॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥७॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥ ८॥ इति श्रीनारदपुराणे सङ्कष्टनाशनं नाम गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥,,

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