Friday, 17 May 2013

श्री सङ्कष्टनाशन गणेश स्तोत्रम् नारद उवाच


श्री सङ्कष्टनाशन गणेश स्तोत्रम्,,नारद उवाच। प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्रं विनायाकम्। भक्तावासं स्मरेन्नित्यम् आयुष्कामार्थसिद्धये॥१॥ प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतर्थकम्॥२॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥ नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥ द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्॥५॥ विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥ जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥७॥ अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥ ८॥ इति श्रीनारदपुराणे सङ्कष्टनाशनं नाम गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥


Photo: सुप्रभात ..भगवान गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं..
आप जब भी भगवान श्री गणेश जी की कोई प्रतिमा देखेंगे तो उसमे पाएंगे कि उनका एक दन्त खंडित है |,उनके एकदंती होने के पीछे एक कथा है | इस कथा के अनुसार तीनों लोकों की क्षत्रिय विहीन करने के पश्चात परशुराम जी अपने गुरुदेव भगवान शिव जी और गुरु माता से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे | उस समय भगवान शिव जी विश्राम कर रहे थे और भगवान श्री गणेश जी द्वार पर पहरेदार के रूप में बैठे थे | द्वार पर भगवान श्री गणेश को देख कर परशुराम जी ने उन्हें नमस्कार किया और अन्दर के ओर जाने लगे , इस पर भगवान श्री गणेशजी ने उनको अन्दर जाने से रोका | धीरे धीरे दोनों के मध्य विवाद बढ़ता चला गया | परशुराम जी ने अपने अमोध फरसे को , जो की उनको श्री शिव भगवान ने दिया था , चला दिया | फरसे के वार से भगवान गणेश जी का एक दन्त खंडित हो गया | तब से भगवान गणेशजी एकदंत के नाम से भी जाने जाते हैं ..

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