Tuesday 7 May 2013

हर हर गंगे, नमामी गंगे


 स्वर्ग में गंगा..‘ब्रह्मा पुराण’ में ऋषि लोमहषर्ण ने गंगा की उत्पत्ति के विषय में बताया कि जब हिमालय पुत्री उमा का विवाह भगवान आशुतोष शिव से होने जा रहा था, तब विवाह मण्डप में उमा के सौंदर्य को देखकर स्वयं ब्रह्मा के मन में विकार उत्पन्न हो गया था। उस पाप से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं विष्णु ने अपने कमण्डल में अपने चरण रखकर जल से धोए और उस जलयुक्त कमण्डल को ब्रह्मा को सौंपते हुए कहा, ‘‘हे ब्रह्मा जी ! यह कमण्डल धरती का रूप है और इसमें पड़ा जल नदी के रूप में परिर्वित हो जाएगा इस नदी के जल से स्नान करने या जलपान करने पर मनुष्य के सभी पापों का विनाश हो जाएगा। यह जल ही पवित्र गंगा है। इसका आचमन करने से आपके मन का विकार भी नष्ट हो जाएगा और जो पाप आपसे हुआ है, वह भी नष्ट हो जाएगा।’’
ब्रह्मा ने उस जल का आचमन किया और जल के छीटें अपने ऊपर छिड़के। इससे उनके मन का पाप नष्ट हो गया।
गंगा का सौंदर्य,,,,ब्रह्मलोक में ब्रह्मा ने उस पवित्र जल से अपनी मानस पुत्री गंगा को नारी का रूप प्रदान किया और कहा, ‘‘पुत्री तू अपनी इच्छा शक्ति से तीनों लोकों में वास करेगी और देव- दानव, पशु-पक्षी, जड़-वनस्पति तथा समस्त जलचरों के पापों का विनाश करके उनमें पवित्र भावों को विकसित करने में सदा सहायक होगी। विष्णु के इस कमण्डल में तेरी उपस्थिति सदैव अक्षुण्ण बनी रहेगी।’’
गंगा ने कहा, हे पिता श्री ! आपने मेरा जो कर्म निश्चित किया है मैं सदैव उसका पालन करूँगी। परन्तु आपके पास से कहीं और जाने का मेरा मन नहीं है। मैं यहीं, आपके पास, स्वर्ग में ही रहना चाहती हूँ।’’
ब्रह्मा ने कहा, ‘‘पुत्री ! तेरा जन्म ही लोक-कल्याण के लिए हुआ है इसलिए तुझे अपना यह घर छोड़कर एक दिन जाना ही होगा। फिर भी तेरा नाता इस स्वर्ग में कभी समाप्त नहीं होगा।,,
 नमामि गंगे तव पादपंकजं सुरासुरैर्वन्दितदिव्यरूपम । भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यं भावानुसारेण सदा नराणाम ॥ हे माता गंगे ! देवता‌ओं और राक्षसों द्वारा वंदित आपके दिव्य चरणकमलों को मैं नमस्कार करता हूँ, जो मनुष्यों को नित्य ही उनके भावानुसार भक्ति और मुक्ति प्रदान करते हैं।’
 हर हर गंगे, नमामी गंगे ,,देवी सुरेश्वरी भगवती गंगे, त्रिभुवन तारिणी तरलतरंगे, शंकरमौलविहारिणी विमले, मममतिरास्तम तवपद कमले । हर हर गंगे, नमामी गंगे

 

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