शुभ रात्रि,,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकेशवाय नमः । नारायणाय नमः
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तन मंडले विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पशं क्षमस्व में।
इस श्लोक के अंर्तगत धरती माँ से माफी की याचना की गई है। कहा गया है, हे धरती माँ मै ना जाने कितने पाप कर रहा हूँ तुझ पर, रोज मैं तेरे उपर चलता हूँ, तुझे मेरे चरणों का स्पर्श होता है, फ़िर भी तू मुझ जैसों का बोझ उठाती है अतः तू मुझे माफ कर दे। यहां धरती माँ को बिष्णु की पत्नि कहा गया है।..
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तन मंडले विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पशं क्षमस्व में।
इस श्लोक के अंर्तगत धरती माँ से माफी की याचना की गई है। कहा गया है, हे धरती माँ मै ना जाने कितने पाप कर रहा हूँ तुझ पर, रोज मैं तेरे उपर चलता हूँ, तुझे मेरे चरणों का स्पर्श होता है, फ़िर भी तू मुझ जैसों का बोझ उठाती है अतः तू मुझे माफ कर दे। यहां धरती माँ को बिष्णु की पत्नि कहा गया है।..